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16 जनवरी 1959 की फ़िल्म 'Anari' किस-किस की मुस्कुराहटों पे हुई निसार

भारतीय सिनेमा की मायानगरी  में, कुछ फिल्में ऐसी होती है जो साधारण होते हुए भी कालातीत कृतियों में शुमार होकर इतिहास रच देती है. एल बी लछमन निर्मित राज कपूर और नूतन..

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16 जनवरी 1959 की फ़िल्म 'Anari' किस-किस की मुस्कुराहटों पे हुई निसार
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भारतीय सिनेमा की मायानगरी में, कुछ फिल्में ऐसी होती है जो साधारण होते हुए भी कालातीत कृतियों में शुमार होकर इतिहास रच देती है. एल बी लछमन निर्मित राज कपूर और नूतन अभिनीत "अनाड़ी" उन्ही फिल्मों में से एक है जिसने हिन्दी सिनेमा जगत में एक अमिट छाप छोड़ी है. 1959 में रिलीज़ हुई, इस मनोरंजक हिंदी रोमांटिक कॉमेडी फिल्म का निर्देशन प्रतिभाशाली निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी ने किया था. 1998 को जब मेरी मुलाकात फ़िल्म 'झूठ बोले कौआ काटे' के सेट पर ऋषिकेश मुखर्जी के साथ हुई थी तब वे ज्यादातर समय कुर्सी पर बैठे बैठे ही निर्देशन दे रहे थे. पूछने पर उन्होने कहा था "आजकल पैरों में बहुत दर्द रहता है, लेकिन मैं पहले सेट पर एक पल के लिए भी कभी बैठता नहीं था." यही बातें करते हुए उन्होने 1959 की फ़िल्म 'अनाड़ी' की चर्चा की थी कि कैसे उन्होने उस जमाने में तीन अलग अलग जोनर (रोमांस, कॉमेडी, प्रतिशोध) को इस तरह से मिक्स किया था कि वो एक संपूर्ण कथानक बन सके. वे बोले थे, "उन दिनों ज्यादातर एक ही ज़ोनर की फिल्में बनाना सेफ माना जाता था."

आज जब 'अनाड़ी' के बारे में लिख रही हूं तो ऋषिकेश दादू की याद आ रही है जब 1959 को उन्होने उस समय के टॉप स्टार राज कपूर, युवा नूतन, वेटेरन मोतीलाल और सम्मानित कलाकार ललिता पवार को उन किरदारों में सजाया था जो उन स्टार्स ने किसी अन्य फिल्म में नहीं किया था.

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कहानी राज कुमार के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका किरदार राज कपूर ने निभाया. राज एक युवा व्यक्ति है जो बहुत भोला भाला ईमानदार, सुदर्शन, बुद्धिमान लेकिन दुनियादारी की चतुराई से अनजान है. एक आम सादे कॉमन मैन की तरह, वह अपनी जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है. वह एक पेंटर है, लेकिन इतना कम कमाता है कि एक कमरे का किराया भी नहीं दे पाता. उसकी मकान मालकिन श्रीमती एल डी'सा (ललिता पवार)बहुत दयालु महिला हैं और उसे सीधे सादे राज से सहानुभूति है लेकिन वो अक्‍सर राज द्वारा किराया ना दे पाने पर उसके साथ झगड़ा तो करती है फिर भी उसे माफ करती रहती है.

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एक दिन, राज को पैसों से भरा एक बटुआ मिलता है. ईमानदार राज इसे अपने पास रखने के बजाय ढूंढ ढांढ कर बटुए के मालिक श्री रामनाथ को लौटा देता है. ईमानदारी के इस कार्य से श्री रामनाथ राज के चरित्र से इतने प्रभावित होते हैं कि वह उसे अपने कार्यालय में क्लर्क की नौकरी दे देते हैं.

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राज की मुलाकात राजनाथ की भतीजी आरती (नूतन) से होती है, आरती राज को प्यार करने लगती है लेकिन वो जानती है कि अगर राज को पता चल जाए कि वो इतनी अमीर घर की है तो राज उसे प्यार करने की हिम्मत नहीं करेगा इसलिए आरती राज को अपना परिचय अपनी नौकरानी आशा (शुभा खोटे) के नाम से करती है. काफी समय तक राज आरती को नौकरानी आशा समझता है. दोनों में प्यार हो जाता है. आशा उर्फ आरती, अनाड़ी राजकुमार की जिंदगी संवारने लगती है लेकिन जब राज को पता चलता है कि आशा का असली नाम आरती है और वह वास्तव में रामनाथ की भतीजी है तो वह घबराकर आरती से दूर हो जाता है.

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लेकिन जीवन हमेशा सहज यात्रा नहीं है. एक बड़ी मुसीबत तब होती है जब राज की मकान मालकिन श्रीमती डि' सा की मृत्यु, रामनाथ की कम्पनी द्वारा बनाई गई दवा खाने के बाद अप्रत्याशित रूप से हो जाती है. पुलिस को राज पर खून का संदेह होता है और राज को गिरफ्तार कर लिया जाता है. कहानी का यह भाग दर्शकों के लिए बहुत तनाव पूर्ण हो जाता है क्योंकि वे जानते हैं कि राज, एक ईमानदार आदमी है.

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जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, राज को पूछताछ के लिए पुलिस कस्टडी में ले लिया जाता है. प्रश्न उठता है कि वह अपनी बेगुनाही कैसे साबित कर सकता है जबकि उसने केवल सादा जीवन जीया है? आखिर राज तब बेगुनाह साबित होता है जब उसका मालिक रामनाथ आगे आते हैं और स्वीकार करते हैं कि दूषित दवा उनकी गलती थी, इसमें राज का कोई दोष नहीं. यह रहस्योद्घाटन न केवल राज को आरोपों से मुक्त करता है बल्कि सच्चाई और ईमानदारी के महत्व पर भी प्रकाश डालता है.

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इन सारी उथल-पुथल के अंत में, आरती राज से कहती है कि डि' सा आंटी ने मृत्यु से पहले आरती से वादा लिया था कि वह जीवन भर राज की देखभाल करेगी और उसने भी आंटी से वादा कर लिया कि वो राज की जीवन भर देखभाल करेगी और उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगी. इसके साथ ही आरती अपने प्यारे राज को याद दिलाती है कि वह "उतना ही बड़ा मूर्ख है जितनी दुनिया चतुर है." यह मनमोहक पंक्ति उनके प्यार और आपसी समझ के सार को दर्शाती है.

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ऋषिकेश मुखर्जी निर्देषित 'अनाड़ी' ईमानदारी, प्रेम और जीवन की सरल खुशियों को रेखांकित करती है. इसके रिलीज़ होने पर, आलोचकों ने इसकी आकर्षक पटकथा और कलाकारों के शानदार प्रदर्शन की प्रशंसा की, जिससे यह 1959 की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई. फिल्म को तमिल में "पासामुम नेसमम" (1964) और तुर्की में देरबेडेर (1960) के नाम से भी बनाया गया था, जिसमें दिखाया गया कि इसका संदेश, भाषा की बाउंड्री और संस्कृति से परे कैसे गूंजता है.

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1959 की फिल्म 'अनाड़ी' के सारे गीत एक से बढ़कर एक सुपर हिट है जिसमें संगीत निर्देशक 'शंकर जयकिशन' और गीतकार 'शैलेंद्र' और 'हसरत जयपुरी' जैसे महान संगीत उस्ताद शामिल है. इस फ़िल्म के ये गीत बहुत प्रसिद्ध है, किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार ( गायक मुकेश), बन के पंछी गाए प्यार का तराना ( लता मंगेशकर), तेरा जाना दिल के अरमानो का लुट जाना (लता मंगेशकर), दिल की नज़र से नज़रों के दिल से (लता मंगेशकर, मुकेश) नाइनटीन फिफ्टी सिक्स (लता मंगेशकर, मन्ना डे),  सब कुछ सीखा हमने (मुकेश) वो चाँद खिला वो तारे हँसे (लता मंगेशकर, मुकेश) 

ललिता पावर ने फिल्मों में अधिकतर नेगेटिव किरदार निभाने के बाद, अनाड़ी में मिसेज डी'सा जैसी प्यारी मकान मालकिन की सकारात्मक भूमिका निभाई और इसके बाद ही ललिता पवार को पॉज़िटिव रोल मिलने लगे. वैसे ललिता पवार ने राज कपूर की श्री 420 में भी सकारात्मक भूमिका निभाई थी... बाद में उन्होंने आनंद में भी एक मैट्रन की भूमिका निभाई... अनाड़ी और आनंद दोनों का निर्देशन हृषिकेश मुखर्जी ने ही किया है. 

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राज कपूर का पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार इसी फिल्म के लिए था. 16 साल बाद राज कपूर के छोटे भाई शशि कपूर ने भी इसी नाम से फिल्म की थी और 36 साल बाद पोती करिश्मा कपूर ने भी इसी नाम (अनाड़ी) से फिल्म किया था. फ़िल्म एन.बी.एस. द्वारा "घातक" करतब, रीफ द लॉस्ट कॉज़ ने "तेरा जाना" गीत का नमूना लिया. फिल्म 'अनाड़ी' में मोतीलाल ने नूतन के चाचा का किरदार निभाया जबकि असल जिंदगी में वह नूतन की मां शोभना समर्थ के करीबी थे और खबरों के मुताबिक दोनों साथ रहते थे. इस फ़िल्म के एक ऑफिस दृश्य में मुकरी कहते हैं, "आज का काम कल करो, कल का काम करो..." इस संवाद को हृषिकेश मुखर्जी ने अपनी 1979 की फिल्म 'गोल माल' में भी दोहराया था. 

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इस फ़िल्म के लिए शंकर जयकिशन को फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार नवाजा गया था.  ललिता पवार को भी इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार मिला था. "सब कुछ सीखा हम ने" के लिए शैलेन्द्र को फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार प्राप्त हुआ था. इसी गीत, 'सब कुछ सीखा हम ने" के लिए मुकेश को भी फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक पुरस्कार नवाजा गया था. 1959 के इस फिल्म को हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रपति का रजत पदक भी दिया गया 'अनाड़ी' एक खूबसूरती से तैयार की गई फिल्म है. यह हमें ईमानदार और प्रेमपूर्ण होने के महत्व की याद दिलाता है. 

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