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आज की पीढ़ी को नहीं पता होगा कि आज से पचास-साठ साल पहले भी फिल्मों में काम पाने का 'स्ट्रगल' ऐसा ही हुआ करता था जैसा आज है। हम बात कर रहे हैं धर्मेंद्र और मनोज कुमार के स्ट्रगल के शुरुआती दिनों की। तब फिल्मी- संघर्षियों के मिलने जुलने की खास जगह दादर पूर्व (मुम्बई) स्थित रंजीत स्टूडियो हुआ करता था। फिल्म इंडस्ट्री तब दादर, परेल, माटुंगा इलाके के इर्दगिर्द ही हुआ करती थी। रंजीत स्टूडियो से लगा हुआ था श्री साउंड स्टूडियो और थोड़ी दूरी पर परेल में व्ही. शांताराम का राजकमल स्टूडियो था। (Dharmendra early struggle story)
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उसी रेखांश पर अपोजिट दिशा मे चेम्बूर छेत्र में आर.के स्टूडियो, आशा स्टूडियो , एसेल स्टूडियो होते थे। दादर पश्चिम में फिल्म लैब , आगे बढ़कर रामनार्ड लैब और उससे कुछ दूर हटकर ग्रांट रॉड में ज्योति स्टूडियो भी था। कई फिल्मकारों के ऑफिस वाली एयर कंडीशन मार्किट की बिल्डिंग थी। फिल्म डिस्ट्रीव्यूटरों के ऑफिस वाली नाज बिल्डिंग थी और वही से ट्रेड पत्रिकाएं ट्रेड गाइड और कम्प्लीट सिनेमा का प्रकाशन शुरू हुआ था। बहुत से फिल्म कलाकार दादर- परेल इलाके में रहते थे क्योंकि वह सेंटर जगह थी। जाहिर है फिल्मी संघर्षियों के लिए रंजीत स्टूडियो जाना खास अड्डा था। फिल्म राइटर एसोसिएशन का दफ्तार भी रंजीत में ही था और कई फिल्मी ऑफिसेस हुआ करते थे।
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आइए, अब बताते हैं कहानी धर्मेंद्र के एक उधार की, जो रंजीत स्टूडियो के गेट के सामने अपोजिट पटरी पर चलने वाले एक रेस्तरां (रेस्टारेंट) से जुड़ी है। फिल्मी लोग यहां अक्सर लंच किया करते थे। मनोज कुमार, धर्मेंद्र, सीएस दुबे, कन्हैया लाल, लीला मिश्रा, भगवान दादा जैसे लोग यहां प्रायः मिल जाया करते थे। लेखक- निर्देशक बीआर इशारा यहीं बगल में श्री साउंड स्टूडियो के बाहर की कैंटीन में काम करते थे, बर्तन धोते थे। वही बी. आर. इशारा बाद में कई सितारों को अपनी फिल्म में पहला ब्रेक देने वाले साबित हुए थे। रंजीत स्टूडियो के सामने की कैंटीन में धर्मेंद्र और मनोज कुमार के उधार खाना खाने के एक बकाया बिल का किस्सा बहुतों को पता है। (Manoj Kumar Bollywood struggle days)
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धर्मेंद्र उनदिनों माटुंगा में रहते थे। रंजीत स्टूडियो से घूमते घामते मनोज कुमार धर्मेंन्द्र के किराए वाले घर पहुच गए। मालूम पड़ा काम ना मिलने से हताश धर्मेंद्र उसदिन अपने गांव वापस जाने की तैयारी किए बैठे थे।धर्मेंद्र ने कहा- 'क्या करूंगा रुककर, गांव जाकर ट्यूबवेल की नौकरी करूंगा।' मनोज ने उन्हें रुकने के लिए जोर दिया, बोले कुछ दिन और रुककर देखलो। मुझे कल किसी प्रोड्यूसर ने मिलने के लिए बुलाया है, तुम भी चलो शायद कुछ बात बन जाए। संयोग देखिए, मनोज कुमार नहीं पहुंचे और धर्मेंद्र उस फिल्म के लिए फाइनल होगए। जाना रुक गया, लेकिन फिल्म मिलने की खुशी में धर्मेंद्र को पंडित जी (मनोज कुमार) को पार्टी देनी हो गई। उस खाने की पार्टी का उधार आजतक पे नहीं हुआ है। रेस्टोरेंट का मालिक धर्मेंद्र को बहुत पसंद भी करता था। कहता था- 'तुम जरूर एकदिन बनेगा।' (Dharmendra Manoj Kumar friendship journey)
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धर्मेंद्र को फिल्म मिल गयी। माटुंगा का रहना छूट गया। वह कईबार रंजीत स्टूडियो गए। कैंटीन मालिक को मिले।उधार देने की कोशिश किए, वह लेता नहीं था। वह कहता मुझे इस बात की खुशी है कि तुम मेरे यहाँ खाना खाते थे। मैं अपने बच्चों को भी यह बताऊंगा। (Rajkamal Studio V Shantaram legacy)
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समय और बीता।धर्मेंद्र का स्टारडम बढ़ता गया। मनोज कुमार बड़े स्टार से निर्माता-निर्देशक बन गए। धर्मेंद्र उस रेस्टॉरेंट मालिक के लिए कुछ करना चाहते थे किंतु तबतक वह अपनी दुकान बेंचकर कहीं जा चुका था। उसके बाद रेस्टॉरेंट के कई ओनर बदले। जो भी वो रेस्तरां चलाता था, यह किस्सा सबको गर्व से बताता रहा। उस आदमी का पता नहीं चला- जिसके कर्जदार धर्मेंद्र आजीवन रहे! और अबतो वह उधार कभी अदा हो ही नहीं पाएगा।
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FAQ
Q1. धर्मेंद्र और मनोज कुमार का शुरुआती स्ट्रगल कहाँ शुरू हुआ था?
धर्मेंद्र और मनोज कुमार का शुरुआती स्ट्रगल मुंबई के दादर पूर्व स्थित रंजीत स्टूडियो के आसपास शुरू हुआ था, जहाँ फिल्मी संघर्षियों का आना-जाना लगा रहता था।
Q2. उस समय फिल्म इंडस्ट्री मुख्य रूप से किन इलाकों में केंद्रित थी?
पचास–साठ साल पहले फिल्म इंडस्ट्री दादर, परेल और माटुंगा के आसपास ही केंद्रित थी।
Q3. रंजीत स्टूडियो के पास कौन-कौन से अन्य महत्वपूर्ण स्टूडियो थे?
रंजीत स्टूडियो के पास श्री साउंड स्टूडियो था और थोड़ी दूरी पर परेल में वी. शांताराम का मशहूर राजकमल स्टूडियो स्थित था।
Q4. पुराने दौर में स्ट्रगल कैसा होता था?
पुराने जमाने में भी स्ट्रगल लगभग वैसा ही था जैसा आज है—अवसर ढूँढना, निर्माताओं से मिलना, और लगातार मेहनत करते रहना।
Q5. धर्मेंद्र और मनोज कुमार की दोस्ती किस तरह बनी?
स्ट्रगल के दिनों में दोनों अक्सर एक ही इलाकों और स्टूडियो में मिलते थे, जहाँ से उनकी दोस्ती और समझ बढ़ती गई।
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