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हिंदी फिल्मों के शहंशाह कहे जाने वाले भारत के सबसे सम्मानित तथा मशहूर सुपरस्टार अभिनेताओं में से एक, अमिताभ बच्चन हमेशा से ही लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं. अपनी सुपरशानदार व्यक्तित्व और गहरी बैरीटोन वाली आवाज़ के लिए विश्व में अपनी पहचान बना चुके श्री बच्चन ने न केवल दशकों तक सिल्वर स्क्रीन पर राज किया है, बल्कि समय-समय पर अपने बृहद ज्ञान और प्रेरक कहानियों से लोगों के दिल और जीवन को भी छुआ है. लोकप्रिय टेलीविज़न शो 'कौन बनेगा करोड़पति (KBC)' में उनके द्वारा सुनाई गई ऐसी ही एक कहानी हाल ही में वायरल हुई है, जिसने लोगों को बहुत ही गहराई से प्रभावित किया है.
यह कहानी महानता के सही पैमाने और उदारता के विचार के इर्द-गिर्द घूमती है. श्री बच्चन ने इस विचार को स्पष्ट करने के लिए पिछले दिनों एक से दस तक की संख्याओं को लेकर एक सुंदर और पावरफुल कहानी सुनाई है. अमिताभ बच्चन ने शो में आए युवाओं को कहानी सुनाते हुए कहा,
एक बार अंक संख्या 9, जो सबसे बड़ी एकल-अंक वाली संख्या है, अपने से छोटी संख्या 8 को धमकाना शुरू कर देती है और उसपर हावी होने लगती है. क्योंकि वह खुद को श्रेष्ठ मानती है और संख्या 8 पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए उसे बेवजह एक थप्पड़ मारती है.
इस पर संख्या 8 को गुस्सा आ जाता है लेकिन वह बड़ी को कुछ नहीं कह पाने के कारण अपने से छोटे संख्या 7 को थप्पड़ मारकर जवाबी कार्रवाई करती है. इससे एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है, जिसमें प्रत्येक बड़ी संख्या अगली छोटी संख्या को थप्पड़ मारना शुरू कर देती है. संख्या 7, संख्या 6 को थप्पड़ मारती है, संख्या 6, फिर 5 को थप्पड़ मारती है, और इसी तरह जब तक वह नंबर 1 तक नहीं पहुंच जाती, थप्पड़ों का सिलसिला चलता रहता है.
छोटी संख्याओं की हालत देखकर सबसे छोटी संख्या शून्य यानी ज़ीरो (0) डर के मारे एक कोने में छिप जाती है, इस डर से कि कहीं अगला निशाना उसे न बनाया जाए. इस मारा मारी गड़बड़ को देखकर, नंबर शून्य यानी 0 खुद को महत्वहीन और डरा हुआ महसूस करती है.
शून्य 0 को डरा हुआ देखकर नंबर 1 उसे कहती है कि वह क्यों डर गई? शून्य बताती है कि सभी बड़े अंक अपने से छोटे अंकों को मार रहे हैं और नंबर 1 उससे बड़ी है इसलिए वह डर रही है. तब नंबर 1 शून्य को दिलासा देकर कहती हैं कि उसे छिपने की कोई जरूरत नहीं है. वह शून्य को बड़ा बनने में मदद करेगी. यह कहते हुए संख्या 1, संख्या 0 यानी शून्य के बगल में बैठ जाती है, और ऐसा करते ही जादुई रूप से सबसे छोटी संख्या शून्य संख्या नौ से भी बड़ी बनकर शक्तिशाली संख्या 10 में बदल जाती है.
जब संख्या शून्य (0) संख्या 1 से पूछती है कि उसे धमकाए जाने के बजाय उसे बड़ा क्यों बना दिया, तो संख्या 1 समझाती है कि सच्ची महानता दूसरों को नीचा दिखाने के बजाय उनका उत्थान करने में निहित है. क्योंकि बड़ा वो नहीं होता है जो खुद को बड़ा समझे, बल्कि बड़ा वो होता है जो दूसरों को बड़ा बनाने में मदद करे.
अमिताभ बच्चन ने इस कहानी के साथ बड़ी खूबसूरती से यह बताया कि "बड़ा" होना शक्ति या प्रभुत्व को नहीं दर्शाता है, बल्कि जब कोई बड़ा किसी छोटे को आगे बढ़ाने में मदद करता या करती है तो सही मायने में वही उसका बढ़प्पन है और तब वह सचमुच बड़ा माना जाता है. उदारता और दूसरों को आगे बढ़ने में मदद करने की क्षमता ही सच्ची ताकत और नेतृत्व को परिभाषित करने में दया और करुणा के महत्व पर प्रकाश डालता है.
यह कहानी अपनी सादगी और गहरे संदेश के कारण दर्शकों के दिलों में उतर गई.
ऐसी कहानियों के ज़रिए लोगों से जोड़ने की अमिताभ बच्चन की क्षमता कोई नई या आश्चर्यजनक बात नहीं है. उनका जीवन अपने आप में प्रेरणा, बुद्धिमत्ता और दृढ़ता का प्रमाण है. प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन के बेटे के रूप में एक साहित्यिक परिवार में जन्म लेने का यही तो संस्कार है.
अमिताभ बच्चन को भी भारतीय सिनेमा जगत में छोटे स्थान से बड़े स्थान बनाने और स्टारडम हासिल करने से पहले कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. अपने करियर की शुरुआत में, उन्हें उनकी लंबाई और आवाज़ के लिए नकार दिया गया था. लेकिन उनकी यही खूबियां बाद में उनके ट्रेडमार्क बन गईं और कई असफलताओं के बावजूद, उन्होंने 'सात हिंदुस्तानी' से अपनी शुरुआत की और 'आनंद' और 'जंजीर, शोले, अभिमान, अमर अकबर एंथनी, डॉन, हम, लावारिस, याराना, काला पत्थर, मुकद्दर का सिकंदर, चुपके चुपके, अग्निपथ, कभी कभी, सौदागर, नसीब, सत्ते पे सत्ता, मिली, कालिया, कूली, हेरा फेरी, नमक हराम, शराबी, सिलसिला, शहंशाह, ब्लैक, चीनी कम, पा, पिंक, भूतनाथ, बागबान, सरकार जैसी ना जाने और कितनी फ़िल्मों से प्रसिद्धि पाई.
हालाँकि, सफलता कठिन और कई बार जानलेवा संघर्षों (कूली का एक्सिडेंट) के बिना उन्हें नहीं मिली.
अमिताभ अक्सर अपने पिता की शिक्षाओं को, जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को आकार देने का श्रेय देते हैं. वह अक्सर जो सीख देते हैं, उनमें से एक है: "मन का हो तो अच्छा, न हो तो ज़्यादा अच्छा" (अगर चीज़ें आपकी इच्छा के अनुसार होती हैं, तो यह अच्छा है, अगर नहीं भी होती हैं, तो यह और भी बेहतर है). उनका यह दृष्टिकोण उच्च स्तर पर स्वीकृति और विश्वास को चिन्हित करता है. उन्होंने यह बिल्कुल सही कहा कि यह सोच ही है जिसने उन्हें जीवन के उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद की है.
KBC जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर अमिताभ बच्चन द्वारा साझा की गई प्रेरक कहानियाँ सिर्फ़ कहने सुनने और भूल जाने वाली कहानियां नहीं होती हैं, वे उनकी अपनी जीवनयात्रा, अनुभव और मूल्यों का प्रतिबिंब हैं. उन्होंने कहा, "विनम्रता और कड़ी मेहनत कभी नहीं छोड़नी चाहिए और असफलताओं से सीख लेनी चाहिए." उनकी ये बात न केवल महत्वाकांक्षी अभिनेताओं के लिए बल्कि कठिन परिस्थितियों से उबरने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए एक आदर्श बनाती है.
अमिताभ को जो चीज़ अलग बनाती है, वह है उनकी अपार सफलता के बावजूद ज़मीन से जुड़े रहने की उनकी क्षमता. वह अक्सर असफलताओं को विकास की सीढ़ी के रूप में स्वीकार करने के बारे में बात करते हैं. एक साक्षात्कार में, उन्होंने टिप्पणी की: "जो हो गया सो हो गया. पिछली गलतियों को भूलने और आत्म-सुधार पर ध्यान केंद्रित करने का यह रवैया कुछ ऐसा है जिससे हम सभी सीख सकते हैं."
अमिताभ बच्चन का जीवन हमें याद दिलाता है कि महानता, धन या प्रसिद्धि से नहीं बल्कि चरित्र और अनुकूलन से मापी जाती है. चाहे वह फिल्मों में उनकी प्रतिष्ठित भूमिकाओं के माध्यम से हो या KBC पर उनकी दिल को छू लेने वाली कहानियों के माध्यम से, वे आशा और सकारात्मकता के संदेशों के साथ पीढ़ियों को प्रेरित करते रहते हैं.
संख्याओं के बारे में वायरल कहानी इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे श्री बच्चन सरल और प्रेरक कथाओं का उपयोग करके गहरे सत्य को व्यक्त करते हैं. उन्होंने हमें याद दिलाया है कि सच्चे लीडर वे होते हैं जो दूसरों को नीचे धकेलने के बजाय ऊपर उठाते हैं - एक ऐसा सबक जो न केवल व्यक्तिगत संबंधों में बल्कि कार्यस्थलों और बड़े पैमाने पर समाज में भी प्रासंगिक है.
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