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दिल्ली की गलियों से निकलकर मायानगरी मुंबई तक का सफर आसान होता , लेकिन जब इरादे साफ हों और मकसद मजबूत — तो मंज़िल खुद रास्ता दे देती है. यह वाक्य फिल्म अभिनेता राजकुमार राव (Rajkummar Rao) पर बिल्कुल सटीक बैठता है. उन्होंने अपने अब तक के करियर में हर जोनर की फ़िल्में की है, फिर चाहे वो कॉमेडी- हॉरर फिल्म ‘स्त्री’ हो या सीरियस फिल्म शाहिद’. वे इन दिनों अपनी कॉमेडी फिल्म ‘भूल चूक माफ़’ के प्रमोशन में बिजी है. हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने फिल्म के विषय, अलग-अलग जोनर की फ़िल्में करने, बदलता प्रमोशन ट्रेंड, ‘मैडॉक फिल्म्स’ के साथ काम करने के सफ़र और अलग-अलग भूमिका निभाने सहित कई मुद्दों पर खुलकर बात की. आइये जाने कि उन्होंने क्या कहा...
आप अब नए-नए जोनर एक्सप्लोर कर रहे हैं, तो इस रचनात्मक बदलाव के साथ आप अपने करियर की दिशा को किस नजरिए से देख रहे हैं?
मुझ पर भगवान का बहुत आशीर्वाद रहा है, क्योकि बहुत सारे लोग मुंबई शहर में एक्टर बनने के लिए आते हैं, तो अगर भगवान ने मुझे चुना है तो उसके लिए मेरी तरफ से धन्यवाद. पहली फिल्म से ही मेरी ये कोशिश रही है कि ऐसा काम करूं कि कभी टाइपकास्ट ना हो सकूँ, ना ही कभी खुद को एक ही भूमिका में बांध सकूँ.
आपकी कई फिल्मों में किरदार सरकारी नौकरी के लिए संघर्ष करता नजर आता है, और चूंकि आपके पिता भी सरकारी सेवा में थे, तो क्या आपके निजी जीवन में भी कभी सरकारी नौकरी को लेकर पारिवारिक या सामाजिक दबाव रहा है?
(हँसते हुए) सरकारी जॉब करने का दबाव तो मुझपर कभी नहीं आया, क्योंकि स्कूल के समय से ही मैंने ये सोचा हुआ था कि एक्टिंग करनी है और फिल्मो में जाना है. लेकिन मैं जानता हूँ कि हमारे देश में सरकारी नौकरी की क्या अहमियत है. हमारे देश में सरकारी नौकरी बहुत मायने रखती है. हमारी फिल्म ‘भूल चूक माफ़’ में भी लड़की के पापा कहते हैं कि दो महीने में सरकारी नौकरी ले आओ, लड़की तुम्हारी. तो मैं जानता हूँ कि आम परिवार में सरकारी नौकरी का मिलना कितनी बड़ी बात होता है.
आपकी फिल्म में हल्दी कार्यक्रम का सीन बार- बार रिपीट होता है, क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी घटना या सिचुएशन को देखकर आपको अचानक ऐसा लगा हो कि ये तो पहले भी हो चुका है?
हाँ, मेरे साथ हुआ ऐसा है और मुझे लगता है कि बहुत लोगों के साथ ऐसा होता होगा. उसका एक टर्म ‘देजा वू’ नाम से है, लेकिन हमारी फिल्म उस विषय पर नहीं है. ये टाइम लूप पर है कि एक लड़के की 29 को हल्दी है और 30 को शादी है. वो उस 29 तारीख में फंस कर रह गया और हर रोज जब वह उठता है तो 29 तारीख होती है. ये हमारी फिल्म का कॉन्सेप्ट है. लेकिन मेरे साथ जिदगी में एक-दो बार ऐसा हुआ है, जब मुझे लगता है कि ये सब पहले मेरे साथ हो चुका है.
आजकल फिल्म प्रमोशन का ट्रेंड थोड़ा सीमित होता जा रहा है — मेकर्स कम शहरों में ही प्रमोशन करते हैं. लेकिन आप लगातार देश के अलग-अलग कोनों तक पहुंच रहे हैं. इस अनुभव को आप कैसे देखते हैं? क्या यह आपके लिए सिर्फ प्रमोशन है या लोगों से जुड़ने का एक खास जरिया?
लोगों से जाकर मिलना, उनसे मिलकर बातें करना, ये काफी अच्छा अनुभव है. लोगों को आपकी फिल्म का ट्रेलर कैसा लगा ये आपको उनके बीच जाकर ही समझ आएगा. आप इंस्टाग्राम पर बैठकर ये चीजें नहीं समझ सकते है.
जब वामिका जैसी प्रतिभाशाली कलाकार आपकी एक्टिंग की तारीफ करती हैं, तो क्या आपको लगता है कि ये कला आपके भीतर जन्मजात है, या समय के साथ अनुभव और अभ्यास ने इसे निखारा है?
देखिये, मैं मानता हूँ कि यह अभ्यास और अनुभव का नतीजा है. रोज काम करना, हर सीन को समझना, हर किरदार की परतों को पकड़ना, ये सब मिलकर आपको निखारते हैं. मैं अपनी हर फिल्म से कुछ नया सीखता हूँ.
आपका ‘मैडॉक फिल्म्स’ के साथ एक लंबा सफर रहा है. इस सफर में आपका क्रिएटिव रिश्ता कैसे परिपक्व हुआ है, और अब आप इस सहयोग को किस नज़र से देखते हैं?
हमारा सफर 2017 में आई हिंदी फिल्म ‘राब्ता’ (Raabta) से शुरू हुआ था, जिसमें मेरा छोटा-सा रोल था. उसके बाद फिर 2018 में 'स्त्री' (Stree) की. 'स्त्री' मेरे लिए बहुत खास रही. मेरे करियर में उस फिल्म ने नया मोड़ दिया तो मुझे लगता है, वो रिश्ता वहीं से बन गया. उसी फिल्म ने मेरी और डिनो की क्रिएटिव जर्नी को एक नया मोड़ दिया. हमारे विचार काफी मिलते हैं. डिनो हर स्टेज पर फिल्म को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं चाहे वो स्क्रिप्ट हो, कास्टिंग हो, या प्रोमोशन. मुझे ये बात बहुत पसंद है कि वो फिल्म को पूरी ईमानदारी से बनाते हैं.
आपके करियर में ऐसा कौन-सा किरदार रहा जिसे निभाने के बाद आपको खुद पर हैरानी हुई — जैसे, ‘वाह! मैं तो ये भी कर सकता हूँ’? क्या उस अनुभव ने आपको एक नए कलाकार के रूप में देखने का नजरिया बदला?
हर किरदार को करने के बाद लगता है कि अरे, मैं तो यह भी कर सकता हूँ, लेकिन कई किरदार काफी कठिन होते हैं जिनमें लगता है कि ये कैसे होगा? जैसे 2024 में आई फिल्म श्रीकांत (Srikanth) हो या बॉस (Bose). क्योंकि इनका कोई रेफ्रैंस प्वाइंट नहीं होता क्योंकि वो जिंदगी मैंने देखी नहीं है, मुझे उसका अनुभव नहीं है. मैं कहना चाहूँगा कि ऐसे किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन मजा आता है.
आप अपनी फिल्म का प्रमोशन करने दिल्ली भी गए थे— इस शहर में आकर कैसा महसूस हुआ? क्या यहां से आपकी कोई खास बात या याद जुड़ी है ,जो हर बार वापस लाती है?
काफी अच्छा लगता है. जब हम बड़े हो रहे थे, उसके मुकाबले तो आज शहर का माहौल काफी बदल गया है. लेकिन दिल तो अभी भी दिल्ली में है और मेरा दिल दिल्ली का ही है, क्योंकि शुरू के 21 साल मैंने यही बिताए है, मैंने मंडी हाउस में खूब थियेटर किया है. बहुत सारी खूबसूरत यादे आईटीओ से मंडी हाउस तक कई चीजें जहन में हैं. मैं इस रूट का चप्पा-चप्पा जानता हूँ.
राजकुमार राव से मिलकर ऐसा लगता है कि आप किसी अभिनेता से नहीं, एक सच्चे इंसान से बात कर रहे हों — जिसने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा और हर किरदार को पूरी सच्चाई से जिया है.
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