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भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नई और बेहद अहम पहल होने जा रही है –बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहे जाने वाले आमिर खान और प्रसिद्ध निर्देशक राजकुमार हिरानी ने एक बार फिर हाथ मिलाया है और इस बार इनके साथ आने का कारण और कोई नहीं बल्कि भारतीय ‘सिनेमा के जनक’ कहे जाने वाले दादा साहब ‘फाल्के’ है. दरअसल आमिर और हिरानी एक फिल्म बनाने जा रहे हैं जो ‘फाल्के साहब’ के जीवन पर आधारित है. फिल्म में उनके संघर्ष, असफलता और सफलता की कहानी को दर्शाया जाएगा. यह फिल्म सिर्फ एक बायोपिक नहीं, बल्कि एक श्रद्धांजलि है, उस व्यक्ति के लिए जिसने भारतीय सिनेमा की नींव रखी. फिल्म प्रेमी, इतिहासकार और सिनेमा के छात्र फाल्के के जीवन को परदे पर देखने के लिए बेहद उत्साहित है.
यह समय हिंदी सिनेमा में बायोपिक का है, जिसमें खेलों, विज्ञान, कला, राजनीति या गैंगस्टर जैसी विविध जीवनशैली के प्रसिद्ध व्यक्तियों पर फिल्में बनाई जाती रही हैं. ऐसे में दादा साहब फाल्के जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महापुरुष की जिंदगी पर फिल्म बनाना एक साहसिक और प्रशंसनीय कदम है. यह फिल्म न केवल दर्शकों को भारतीय सिनेमा की शुरुआत के संघर्ष और रचनात्मकता से रूबरू कराएगी, बल्कि यह भी दिखाएगी कि कैसे एक अकेले व्यक्ति ने सीमित संसाधनों के बावजूद, अपने जुनून और दूरदर्शिता के दम पर पूरी फिल्म इंडस्ट्री की नींव खड़ी कर दी.
इस बायोपिक की पटकथा राजकुमार हिरानी, अभिजात जोशी, और दो अन्य लेखक – हिंदुकुश भारद्वाज और आविष्कार भारद्वाज – ने मिलकर लिखी है. खास बात यह है कि इस स्क्रिप्ट पर पिछले चार सालों से कड़ी मेहनत की जा रही है, जो बताती है कि यह कोई जल्दबाजी में बनाई जा रही फिल्म नहीं, बल्कि एक शोध-आधारित, ऐतिहासिक फिल्म है. इसके साथ ही, फाल्के जी के पोते चंद्रशेखर श्रीकृष्ण पुसलकर भी इस प्रोजेक्ट से जुड़े हैं, उन्होंने अपने दादा की जिंदगी के कई महत्वपूर्ण किस्से व घटनाएं लेखकों को उपलब्ध कराए हैं. इससे फिल्म की प्रामाणिकता और गहराई और भी बढ़ गयी है.
इस फिल्म को लेकर आने वाले आमिर खान और राजकुमार हिरानी की यह तीसरी साझेदारी है, इससे पहले दोनों ने 3 इडियट्स (2009) और पीके (2014) जैसी सुपरहिट और संवेदनशील फिल्में सिनेमा को दी हैं. यह जोड़ी दर्शकों को केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि विचारोत्तेजक सिनेमा भी देती रही है. ऐसे में जब यह जोड़ी दादा साहब फाल्के जैसे ऐतिहासिक चरित्र को पर्दे पर लेकर आ रही है, तो स्वाभाविक रूप से दर्शकों की उम्मीदें भी बहुत बढ़ गयी है.
ऐसा नहीं है कि ‘सिनेमा के जनक’ पर पहली बार कोई फिल्म बना रहा है. इससे पहले 2009 में मराठी फिल्म ‘हरिश्चंद्रची फैक्ट्री’ में भी दादा साहब फाल्के के जीवन को दिखाया गया था, लेकिन वह एक सीमित क्षेत्रीय प्रयास था. लेकिन आमिर और हिरानी की दादा साहब फाल्के के जीवन पर आधारित यह फिल्म राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी विरासत को बल देने की क्षमता रखती है.
दादा साहब फाल्के पर बन रही यह बायोपिक सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक पुनर्पाठ है. यह उस महान आत्मा को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, जिन्होंने बिना किसी तकनीकी सहायता, बिना किसी फिल्म इंडस्ट्री के, सिर्फ अपने आत्मबल और दृष्टि के दम पर एक पूरे युग को जन्म दिया. उन्होंने न केवल सिनेमा को जन्म दिया, बल्कि देश को एक ऐसी रचनात्मक औद्योगिक शक्ति दी, जिसने समय के साथ अरबों लोगों को रोज़गार दिया और सरकार को कर राजस्व के रूप में एक नया आर्थिक स्रोत भी प्रदान किया.
फाल्के ने सिर्फ फिल्मों का निर्माण नहीं किया—उन्होंने भारत को एक नई सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान दी और आज, उन्हीं की रखी नींव के कारण भारतीय सिनेमा वैश्विक मंच पर सम्मान और पहचान प्राप्त कर रहा है. भारत की फिल्मों, कलाकारों और कहानियों को विश्वभर में सराहा जा रहा है, और यह दूरदर्शी फाल्के की दूरदर्शिता का ही परिणाम है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा का बीज बोया था.
दादा साहब फाल्के के जीवन पर आधारित आमिर खान और राजकुमार हिरानी की यह ऐतिहासिक फिल्म आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और गर्व का विषय है – क्योंकि जो अपनी जड़ों को जानता है, वही सच में आगे बढ़ सकता है.
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