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आज पूरा देश भक्ति, श्रद्धा और प्रकाश के रंग में डूबा हुआ है, क्योंकि आज ‘देव दिवाली
Diwali) का पर्व मनाया जा रहा है. दिवाली के ठीक 15 दिन बाद आने वाला यह त्योहार केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. इसे देवताओं की दिवाली भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर उतरकर गंगा तट पर दीप जलाते हैं. (Dev Diwali 2025 celebration India)
प्रधानमंत्री मोदी ने दी शुभकामनाएं
इस शुभ अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को देव दिवाली और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं दीं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली पर मैं देश भर में अपने सभी परिवारजनों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ. भारतीय संस्कृति और आध्यात्म से ओतप्रोत यह दिव्य अवसर सभी के जीवन में सुख, शांति, स्वास्थ्य और सौभाग्य लाए. पवित्र स्नान, दान, आरती और पूजा की हमारी पवित्र परंपराएँ सभी के जीवन को प्रकाशित करें."
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काशी में दिव्यता का उत्सव
काशी का आज का नज़ारा वाकई मनमोहक होता है. पूरी नगरी दीपों की रौशनी से जगमगा रही होती है — घाटों से लेकर मंदिरों, गलियों और घरों तक हर ओर दिव्यता का अद्भुत दृश्य नजर आता है. गंगा तट पर जलते दीपों का प्रतिबिंब मानो गंगा मां की आरती बन गया हो. श्रद्धालु भगवान शिव और विष्णु की आराधना में लीन होते हैं और दीपदान के जरिए अपने जीवन को पवित्र बना रहे होते हैं. माना जाता है कि इस दिन किया गया दीपदान पापों से मुक्ति दिलाता है और सौभाग्य, धन व मोक्ष की प्राप्ति कराता है.
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जैसे ही सूरज ढलता है, गंगा किनारे जलते लाखों दीप पूरे शहर को सुनहरी रौशनी से भर देते हैं. हर घाट पर आरती की ध्वनि, शंखनाद और ‘हर हर महादेव’ के जयकारों से वातावरण गूंज उठता है. दूर-दूर से आए श्रद्धालु दीपदान कर इस दिव्यता का हिस्सा बनते हैं.
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सोनभद्र में भी जगमगाई भक्ति की लौ
ऐसा ही नजारा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के घोरावल नगर में भी देखा जा रहा है, जहाँ देव दिवाली का उत्सव पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. इस बार दशमिहवा और थनहवा तालाबों को 5,100 दीयों से सजाया गया है. रात 8 बजे से गंगा आरती और शिव भस्म आरती का आयोजन होगा. इसके बाद कलाकार शिव-तांडव नृत्य और पौराणिक झांकियों की प्रस्तुति दिखेगी, जिनमें शिव-पार्वती विवाह, महिषासुर वध और हनुमान लीला शामिल हैं. कार्यक्रम के समापन पर महाप्रसाद वितरित किया जाएगा. (Dev Diwali festival Varanasi ghats)
देव दिवाली की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, देव दिवाली के पीछे एक रोचक कथा भी जुड़ी हुई है, जिसकी वजह से इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. तो चलिए जानते हैं कि देव दिवाली की पौराणिक कथा के बारे में....
शिवपुराण में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस बहुत ही शक्तिशाली था. कहा जाता है कि राक्षस तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. इन तीनों को मिलाकर ही त्रिपुरासुर राक्षस बना था. ये तीनों अपनी असाधारण शक्ति और अहंकार के कारण देवताओं के लिए संकट बन गए थे. जब भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया, तो उसके इन तीनों पुत्रों ने प्रतिशोध की अग्नि में तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था. ब्रह्मा जी ने उन्हें अमरता छोड़कर कोई भी वरदान मांगने को कहा. तब तीनों ने चतुराई से ऐसा वरदान मांगा जो लगभग अमरता के समान ही था. उन्होंने कहा कि उनकी मृत्यु तभी संभव हो जब तीनों एक ही पंक्ति में हों, अभिलीत नक्षत्र का समय हो और कोई एक ही तीर से तीनों का वध करे. ब्रह्मा जी ने यह वरदान स्वीकार कर लिया. इसके बाद त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों में आतक मचा दिया था- देवता, ऋषि और मनुष्य सभी उनके अत्याचारों से त्रस्त हो गए थे. (Dev Diwali lights and lamps celebration)
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जब अत्याचार चरम पर पहुंच गया, तो देवताओं ने भगवान शिव से शरण ली. महादेव ने त्रिपुरासुर का अंत करने का संकल्प लिया. उन्होंने पृथ्वी को अपना रथ बनाया, सूर्य और चंद्रमा को उसकै पहिए, मेरु पर्वत को धनुष और वासुकी नाग को धनुष की डोरी बनाया. उस समय भगवान विष्णु स्वयं बाण बने. जैसे ही अभिजीत नक्षत्र का समय आया, भगवान शिव ने एक ही तीर से त्रिपुरासुर- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली, तीनों का संहार कर दिया. कहा जाता है, इस विजय के बाद देवताओं ने दीप जलाकर हर्ष मनाया और तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन 'देव दीपावली' मनाने की परंपरा शुरू हुई. यह पर्व प्रकाश की उस विजय का प्रतीक है जब भगवान शिव ने अंधकार और अहंकार दोनों का अंत किया.
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कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ाव
देव दिवाली के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा का पर्व भी मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, माता तुलसी और भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. स्नान, दान और दीपदान को इस दिन सबसे बड़ा पुण्य कर्म माना गया है.
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प्रकाश और भक्ति का संगम
देव दिवाली सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा को प्रकाशित करने का अवसर है. यह हमें याद दिलाता है कि असली दीप वही है, जो भीतर के अंधकार को मिटाए और दूसरों के जीवन में रोशनी फैलाए. (Dev Diwali bhakti and devotion)
काशी की जगमगाती गलियाँ, गंगा पर लहराते दीप और आरती की गूंज — देव दिवाली का दृश्य सचमुच ऐसा है, जैसे धरती पर देवता उतर आए हों.
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FAQ
प्रश्न 1. देव दिवाली कब मनाई जाती है?
उत्तर: देव दिवाली कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो दीपावली से लगभग 15 दिन बाद पड़ती है।
प्रश्न 2. देव दिवाली का महत्व क्या है?
उत्तर: यह पर्व भगवान शिव और अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है और इसे गंगा घाटों पर दीप जलाने, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।
प्रश्न 3. देव दिवाली मुख्य रूप से कहाँ मनाई जाती है?
उत्तर: मुख्य रूप से वाराणसी और अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों में मनाई जाती है, जहां गंगा घाटों पर हजारों दीप जलाए जाते हैं।
प्रश्न 4. इस दिन कौन-कौन से रीति-रिवाज निभाए जाते हैं?
उत्तर: इस दिन लोग दीप जलाते हैं, मंदिरों में पूजा करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।
प्रश्न 5. देव दिवाली का आध्यात्मिक संदेश क्या है?
उत्तर: यह पर्व भक्ति, श्रद्धा, प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है और समाज में एकता, सामाजिक सद्भाव और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देता है।
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