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12 मार्च 1971 को रिलीज़ हुई ये फिल्म जीवन और दोस्ती की कहानी बताता है. हृषिकेश मुखर्जी द्वारा सह-लिखित और निर्देशित यह फिल्म जिसमें गुलज़ार द्वारा डायलॉग लिखे गए हैं, वो डायलॉग जिसे आज भी दुनिया याद करती है, "बाबूमोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं।" फिल्म में राजेश खन्ना मुख्य भूमिका में हैं, जबकि अमिताभ बच्चन, सुमिता सान्याल, रमेश देव और सीमा देव सहायक कलाकारों की भूमिका में हैं।
दोस्ती की कहानी है फिल्म आनंद
फिल्म की कहानी मुख्य रूप से दो दोस्तों की दोस्ती और जिंदगी के उतार-चढ़ाव को दर्शाती है. आनंद एक जानलेवा बीमारी से ग्रसित है अपनी हालत के बावजूद, आनंद सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है और अपने आस-पास के सभी लोगों को खुशी देता है. डॉक्टर भास्कर से मुलाकात के बाद दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन जाते हैं. आनंद भास्कर को उसका प्यार पाने में उसकी मदद करता है बावजूद इसके की बीमारी के कारण उसका प्यार अधूरा रह गया. आनंद के हालत खराब होने के बावजूद वो अस्पताल जाने से इंकार कर देता है और अंततः वो दुनिया को अलविदा कह देता है. अपने पीछे वो भास्कर के लिए कुछ यादें छोड़ जाता है.
फिल्म की दिल और जान हैं राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन
फिल्म में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का दोस्ताना देखने लायक है. दोनों ने बेहद खूबसूरती के साथ जीवन और मृत्यु की इस कहानी को परदे पर दिखाया है. इनकी दोस्ती हीं फिल्म की दिल और जान है.
गीतों और संगीतों के साथ सुनाती है जिंदगी की कहानी
"आनंद" सिर्फ एक शानदार कलाकार और कहानी से कहीं अधिक है। फिल्म में सलिल चौधरी का खूबसूरत संगीत है, जिसमें "जिंदगी कैसी है पहेली" और "कहीं दूर जब दिन ढल जाए" जैसे गाने सदाबहार क्लासिक बन गए हैं जो दर्शकों के बीच गूंजते रहते हैं। हृदयस्पर्शी कहानी, भावपूर्ण संगीत के साथ मिलकर एक शक्तिशाली भावनात्मक यात्रा का निर्माण करती है।
एक दिलचस्प किस्सा
फिल्म की कहानी में राजेश खन्ना की भागीदारी की दिलचस्प कहानी शामिल है। फिल्म इतिहासकार दिलीप ठाकुर के अनुसार, खन्ना ने "आनंद" में अभिनय करने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने फिल्म के वितरण अधिकारों में हिस्सेदारी का विकल्प चुना। यह निर्णय बुद्धिमानी भरा साबित हुआ, क्योंकि "आनंद" बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफल रही, जिससे खन्ना को पारंपरिक अभिनय शुल्क की तुलना में कथित तौर पर दस गुना अधिक पैसा मिला। यह अनूठी वित्तीय व्यवस्था फिल्म की क्षमता में खन्ना के विश्वास और जोखिम लेने की उनकी इच्छा को उजागर करती है, जो अंततः इसकी स्थायी विरासत में योगदान देती है।
प्रेरणा की विरासत
"आनंद" भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है। जीवन को पूर्णता से जीने का इसका संदेश पीढ़ियों को प्रेरित करता रहता है। इस फिल्म ने काफी लोकप्रियता हासिल की है और इसे अक्सर अब तक बनी सबसे महान बॉलीवुड फिल्मों में से एक माना जाता है.
जीते थे कई पुरस्कार
बता दें इस फिल्म ने कई पुरस्कार जीते, जिसमें 1972 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल था। राजेश खन्ना ने 1971 में इस फिल्म के लिए वेनिस फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में एक विशेष पुरस्कार जीता था.
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