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रेटिंग: दो स्टार
निर्माता: पम्मी बावेजा, हरमन बावेजा, किनिष्क और अक्षय शेरे
कहानी व पटकथा: भाविनी भेदा
संवाद लेखक: सुमित सक्सेना
निर्देशक: अक्षय शेरे
कलाकार: अरशद वारसी, जीतेंद्र कुमार, आयशा कदुस्कर, लक्ष्मी राजपूत, तारा आलीशा बेरी, कोरल भामरा, संदीप यादव, आकांक्षा पांडे, आकाश पांडे, सुनीता राजवर, और अन्य (Two-star movie review India)
अवधि: दो घंटे 14 मिनट
ओटीटी: जी5 पर 17 अक्टूबर से
इन दिनों ओटीटी पर सत्य घटनाक्रमों पर आधारित फिल्में और वेब सीरीज़ को स्ट्रीम करने का चलन बढ़ता ही जा रहा है। सत्य घटनाक्रमों पर काम करना हर फिल्मकार के लिए काफी हद तक आसान सा होता है, क्योंकि उन्हें कहानी बनी-बनाई मिल जाती है। लेकिन सत्य घटनाक्रमों पर एक बेहतरीन फिल्म या वेब सीरीज़ का बनना काफी हद तक फिल्मकार व फिल्म लेखक की सोच, उसकी मानसिकता और वह उस सत्य घटनाक्रम के माध्यम से किस पक्ष को किस तरह लोगों तक पहुँचाना चाहता है, उस पर निर्भर करता है। यदि लेखक व फिल्मकार दिमागी तौर पर स्पष्ट नहीं है कि वह घटनाक्रम के किस पक्ष को परदे पर उभारना चाहते हैं, तो वह अच्छी फिल्म की बजाय छूँचूँ का मरब्बा के अलावा कुछ नहीं बना पाता। ऐसा ही कुछ सत्य घटनाक्रम पर आधारित फिल्म ‘भागवत चैप्टर वन: राक्षस’ के साथ हुआ है। (Bhagwat Chapter One: Rakshas movie review)
Jitendra Kumar और Akshay Shere लेकर आ रहे हैं Bhagwat: Chapter One – Raakshas
स्टोरी:
फिल्म की कहानी के केंद्र में लगभग बीस साल पहले उत्तर भारत में घटे सत्य घटनाक्रम हैं। जब उत्तर भारत में एक स्कूली शिक्षक ने अपने प्रेम जाल में फँसाकर मध्यमवर्गीय परिवार की एक दो नहीं, 19 लड़कियों के साथ किया था।
2009, रॉबर्ट्सगंज, जिला सोनभद्र से कहानी शुरू होती है। पूनम मिश्रा घर नहीं लौटती है। परिवार को लगता है कि विशेष धर्म का लड़का उसे भगा ले गया है। पुलिस थाने में परिवार शिकायत दर्ज कराता है। केस को राजनीतिक रंग देने के कारण शहर में दंगे हो जाते हैं। लखनऊ से एसीपी विश्वास भागवत (अरशद वारसी) का ट्रांसफर रॉबर्ट्सगंज, जिला सोनभद्र हो जाता है। डीसीपी विश्वास भागवत (अरशद वारसी) एक क्रूर और नियमों से हटकर, अपराधी को थर्ड डिग्री टॉर्चर देकर सच उगलवाने वाला पुलिस अधिकारी है। रॉबर्ट्सगंज पहुँचने पर विश्वास भागवत को अब लापता लड़की पूनम मिश्रा का पता लगाने का केस मिलता है। जब वह इस केस पर जाँच शुरू करता है, तो जाँच के दौरान, उसे एक और लापता लड़की संध्या का पता चलता है, और यह सिलसिला तब तक बढ़ता रहता है जब तक उसे पता नहीं चलता कि कुल 19 लड़कियाँ गायब हो गई हैं और अपराधी का कोई सुराग नहीं है। यह घटनाक्रम एक वास्तविक तनाव पैदा करता है। एक तरफ डीसीपी भागवत की जाँच-पड़ताल की कहानी चलती रहती है, तो उसी के समांतर समीर (जीतेंद्र कुमार) और मीरा (आयशा कदुस्कर) की कहानी चलती रहती है। जो एक-दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं और शादी करने के लिए भाग जाते हैं। इसके तुरंत बाद, मीरा लापता हो जाती है। यहीं से, कहानी का बाकी हिस्सा सामने आता है, और एक मोड़ पर यह दोनों कहानियाँ एक हो जाती हैं। अंततः भागवत अपने साथियों के साथ समीर उर्फ राजकुमार को घेर लेता है, और कैसे अपराधी उसका बदला लेता है, जिससे भागवत मुश्किल में पड़ जाता है। फिर भी यह मामला अदालत तक पहुँचता है, जहाँ राजकुमार किसी वकील की सेवाएँ लेने की बजाय खुद अपना केस लड़ने का फैसला करता है। अब अदालत में क्या-क्या होता है, यह जानने के लिए दो घंटे 14 मिनट की फिल्म तो देखनी ही पड़ेगी। (True events based movies 2025)
रिव्यू:
लेखकों व निर्देशक ने सत्य घटनाक्रम पर फिल्म बनाने की ठान ली, पर यह तय नहीं कर पाए कि वे किस बात को लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं। आखिर वे कहना क्या चाहते हैं? जिस वजह से फिल्म की कहानी बार-बार लड़खड़ाती है। कहानी का स्वरूप बदलता रहता है। पहले यह कहानी ‘लव जिहाद’ का मामला लगता है। फिर सेक्स रैकेट और वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों के अपहरण व उन्हें बेचने का अहसास कराती है और अंत में मामला हत्या तक जाता है। कई दृश्यों में अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक को कानून की कोई जानकारी नहीं है और उन्होंने इस पर कोई शोध कार्य भी नहीं किया है। फिल्म में एक संदेश यह है कि बिना सोच-समझे लड़कियों को किसी भी लड़के पर भरोसा कर प्यार में पड़ना कितना खतरनाक हो सकता है, लेकिन यह संदेश कमजोर लेखन के चलते ठीक से उभरता नहीं है। कई चरित्र अधूरे लगते हैं। कई सवालों के जवाब दर्शक को नहीं मिलते। समीर लड़की के मरने के बाद उसके फोन से दूसरी लड़की को फोन करता है, लेकिन गुमशुदा लड़की के फोन को उसके घरवाले या पुलिस ट्रैक नहीं करती। (Films directed by Akshay Shere)
अदालत में जिस तरह से समीर उर्फ राजकुमार चंद किताबें पढ़कर पेशेवर वकील के अंदाज़ में अपने बचाव में केस लड़ता है, वह सब गले नहीं उतरता। उसे एक बार भी कटघरे में नहीं बुलाया जाता, वह तो वकीलों के संग ही बैठता है।
कुछ संवादों को नज़रअंदाज़ कर दें, तो समीर उर्फ राजकुमार इतना शातिर अपराधी कैसे बना, इस पर फिल्म खामोश रहती है। कोर्टरूम ड्रामा बहुत ज़्यादा अनुमानित है, जो अंत में अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचने में बहुत समय लेता है। अक्षय शेरे के निर्देशन में धार नहीं है। ज्यादातर फिल्म अंधेरे में फिल्माई गई है, फिर भी कैमरामैन अमोघ देशपांडे का कैमरा कई दृश्यों को आवाज़ देने में कामयाब रहा है। क्लाइमेक्स को एडिटिंग टेबल पर कसा जाना चाहिए था। (Arshad Warsi new movie 2025)
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एक्टिंग:
डीसीपी विश्वास भागवत के किरदार के साथ पूरा न्याय करते हुए अभिनेता अरशद वारसी ने साबित कर दिखाया कि वे हास्य के साथ गंभीर किरदार भी बेहतरीन तरीके से निभा सकते हैं। ‘कोटा फैक्टरी’, ‘पंचायत’ सहित कई वेब सीरीज़ में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके अभिनेता जीतेंद्र कुमार को समीर उर्फ राजकुमार के किरदार में कई शेड्स करने व अभिनय में कुछ प्रयोग करने का भी अवसर मिला है। मीरा के छोटे किरदार में आयशा कदुस्कर का अभिनय अच्छा है। तारा बेरी, लक्ष्मी राजपूत, देवदास दीक्षित, संदीप यादव का अभिनय भी ठीक-ठाक है। (Ayesha Kaduskar acting review)
FAQ
प्रश्न 1. फिल्म भागवत चैप्टर वन: राक्षस किस बारे में है?
उत्तर: यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है और एक नाटकीय कहानी पेश करने की कोशिश करती है, लेकिन कमजोर पटकथा और असंगत कहानी कहने की वजह से प्रभावित नहीं कर पाई।
प्रश्न 2. फिल्म के निर्देशक और निर्माता कौन हैं?
उत्तर: फिल्म के निर्देशक अक्षय शेरे हैं और निर्माता पम्मी बावेजा, हरमन बावेजा, किनिश्क और अक्षय शेरे हैं।
प्रश्न 3. फिल्म के मुख्य कलाकार कौन-कौन हैं?
उत्तर: फिल्म में अरशद वारसी, जीतेंद्र कुमार, आयशा कदुस्कर, लक्ष्मी राजपूत, तारा आलीशा बेरी, कोरल भामरा, संदीप यादव, आकांक्षा पांडे, आकाश पांडे, सुनीता राजवर और अन्य कलाकार हैं।
प्रश्न 4. फिल्म की अवधि कितनी है?
उत्तर: फिल्म की कुल अवधि 2 घंटे 14 मिनट है।
प्रश्न 5. फिल्म को कितनी रेटिंग मिली?
उत्तर:भागवत चैप्टर वन: राक्षस को दो स्टार की रेटिंग मिली, जो इसकी कमजोर पटकथा और निर्देशन पर आधारित है।
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