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Guru Dutt जिस कलाकार को संतोष नहीं मिला, लेकिन सिनेमा को अमरता मिल गई, जाने क्या कहा कलाकारों ने...

गुरु दत्त एक ऐसा नाम जिसने भारतीय सिनेमा को केवल नई दिशा ही नहीं दी, बल्कि उसे सौंदर्य, कविता और गहराई की वो भाषा सिखाई जो आज भी प्रेरणा देती है. 'प्यासा' (1957), 'कागज़ के फूल' (1959), 'चौदहवीं का चाँद' (1960) और 'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (1962)...

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Guru Dutt The artist who did not get satisfaction but cinema got immortality know what the artists said
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गुरु दत्त (Guru Dutt) एक ऐसा नाम जिसने भारतीय सिनेमा को केवल नई दिशा ही नहीं दी, बल्कि उसे सौंदर्य, कविता और गहराई की वो भाषा सिखाई जो आज भी प्रेरणा देती है. 'प्यासा' (1957), 'कागज़ के फूल' (1959), 'चौदहवीं का चाँद' (1960) और 'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (1962) जैसी फिल्मों से उन्होंने जो सिनेमाई धरोहर रची, वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक और जीवंत है. आज, 9 जुलाई 2025 उनकी 100वीं जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं कि कैसे कलाकार, निर्देशक और उनके साथी उन्हें याद करते हैं. 

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जब मैंने उनके साथ काम करना शुरू किया, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वह इतनी महान क्लासिक फ़िल्में बनाएंगे, उन्हें खुद भी नहीं... वहीदा रहमान

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87 वर्षीय दिग्गज अभिनेत्री वहीदा रहमान आज भी 'प्यासा' को अपनी सबसे प्रिय फिल्म मानती हैं. वह बताती हैं, "मैं बहुत भाग्यशाली थी कि मैं उनकी फिल्मों का हिस्सा रही. लोग आज भी प्यासा की बात करते हैं. " वहीदा जी गुरु दत्त को अपना मार्गदर्शक मानती हैं और कहती हैं, "वह बहुत शांत स्वभाव के थे… बहुत संवेदनशील इंसान. जब मैंने उनके साथ काम करना शुरू किया, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वह इतनी महान क्लासिक फ़िल्में बनाएंगे, उन्हें खुद भी यह बात नहीं पता थी."

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वहीं गुरु दत्त की मृत्यु पर वहीदा जी कहती हैं, "ईश्वर ने उन्हें सब कुछ दिया, लेकिन संतोष नहीं दिया. वह कभी संतुष्ट नहीं थे, और शायद उन्हें पता था कि वह कभी संतुष्ट नहीं होंगे. ज़िंदगी उनके लिए सफलताओं और असफलताओं की एक श्रृंखला बनकर रह गई थी और मुझे नहीं पता कि उनकी मौत दुर्घटनावश थी या जानबूझकर की गई—लेकिन मुझे हमेशा लगा कि उन्हें बचाया नहीं जा सकता था, क्योंकि वह खुद नहीं बचना चाहते थे."

मेरे लिए गुरु दत्त वो मास्टर हैं जिन्होंने पहली बार मुख्यधारा के सिनेमा को सौंदर्य और संवेदना से जोड़ा... मणिरत्नम

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मशहूर फ़िल्म निर्देशक मणिरत्नम के अनुसार, "गुरु दत्त ने लोकप्रिय सिनेमा में कविता और कलात्मकता को आत्मसात किया. उनका संगीत, गीतों की प्रस्तुति और सिनेमाई भाषा आज भी एक प्रेरणा है. मेरे लिए गुरु दत्त वो मास्टर हैं जिन्होंने पहली बार मुख्यधारा के सिनेमा को सौंदर्य और संवेदना से जोड़ा."

मैं 'प्यासा' कभी भी देख सकता हूँ... प्रतीक गांधी 

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फिल्म अभिनेता प्रतीक गांधी, कहते हैं, "जिस तरह से वह फिल्म शूट की गई है, उसका प्रदर्शन, एडिटिंग—सब कुछ कमाल का है. उनके किरदारों की जटिलता और कहानियों की गहराई हमेशा मुझे प्रेरित करती रही हैं. उनकी फिल्म 'प्यासा' मैं कभी भी देख सकता हूँ."

उन्होंने हमें सिखाया कि कैमरे से कैसे लिखा जाता है... सुधीर मिश्रा

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फ़िल्म निर्देशक सुधीर मिश्रा गुरु दत्त के बारे में कहते हैं, "'साहिब बीबी और ग़ुलाम' में गुरु दत्त की छाप साफ दिखती है. वह एक व्यक्तिगत फिल्म है लेकिन साथ ही ऐतिहासिक भी. यह कामनाओं, धोखे और मानवीय पीड़ा की गाथा है. हर बार देखने पर इसमें कुछ नया मिलता है. उन्होंने हमें सिखाया कि कैमरे से कैसे लिखा जाता है."

गुरु दत्त ने लोकप्रिय सिनेमा में कविता को एक नई परिभाषा दी... इम्तिआज़ अली

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तमाशा, जब वी मेट जैसी फिल्मों के निर्देशक इम्तियाज़ अली गुरु दत्त के बारे में कहते हैं, "मुझे 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है' और 'वक्त ने किया क्या हसीं सितम' जैसे गीतों में उनका कवित्व पसंद है. 'प्यासा' में एक दृश्य है जहां लोग उनकी मृत्यु के बाद उनकी कविता पर चर्चा कर रहे हैं, और वो चुपचाप दरवाजे पर खड़े हैं—इस एक दृश्य में ही उन्होंने बता दिया कि ये दुनिया सिर्फ मरने के बाद ही पहचान देती है. उन्होंने लोकप्रिय सिनेमा में कविता को एक नई परिभाषा दी."

गुरु और मेरा रिश्ता कुछ अलग था... देव आनंद 

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हिंदी सिनेमा जगत के लोकप्रिय अभिनेता देव आनंद कहते हैं, गुरु और मेरा रिश्ता कुछ अलग था. मैंने हमेशा कहा है कि वो मेरे एकमात्र दोस्त थे. उनकी असमय मृत्यु के बावजूद, उनकी विरासत अमर है. उन्होंने भारतीय सिनेमा को ना केवल एक संवेदनशील स्वर दिया, बल्कि उसे एक आत्मा भी दी—जो आज भी हर फिल्म प्रेमी के दिल में धड़कती है.

गुरु दत्त अपने आप में एक स्कूल हैं... एम.के. रैना

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थिएटर अभिनेता और निर्देशक एम.के. रैना कहते हैं, "गुरु दत्त की फिल्मों में संवाद, मूवमेंट, कैमरा पैनिंग हर फ्रेम में परिपक्वता थी. वी.के. मूर्ति के साथ मिलकर उन्होंने रोशनी और छाया का जो खेल रचा, वह आज भी बेमिसाल है. 'जाने क्या तूने कही' हो या 'वक्त ने किया...' हर दृश्य एक कविता है. वे अपने आप में एक स्कूल हैं."

गुरु दत्त के गीत भारतीय सिनेमा की आत्मा है... प्रोफेसर मिलिंद डामले

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प्रोफेसर मिलिंद डामले गुरु दत्त के बारे में कहते हैं, "1950 के दशक में उन्होंने फिल्मी गीतों को एक कला रूप दे दिया. हर फ्रेम, चाहे वह आँख की पलक की हल्की सी हरकत हो या रेल की पटरियों पर लंबा पैन शॉट, सब कुछ कला का नमूना था."

एम. एम. कीरवानी ने गुरु दत्त को दी श्रद्धांजलि

हाल ही में फिल्म 'तन्वी द ग्रेट' के ट्रेलर लॉन्च इवेंट में ऑस्कर विजेता संगीतकार एम. एम. कीरवानी ने भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकार और अभिनेता गुरु दत्त को उनकी 100वीं जयंती (9 जुलाई 2025) पर भावभीनी संगीतमय श्रद्धांजलि दी. भाव-विभोर कीरवानी ने मंच पर हारमोनियम के सुर छेड़ते हुए गुरु दत्त की कालजयी फिल्म 'कागज़ के फूल' (1959) का दिल को छू जाने वाला गीत 'बिछड़े सभी बारी बारी' गाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. उनकी आवाज़ और भावपूर्ण प्रस्तुति ने पूरे माहौल को गहराई और संवेदना से भर दिया, मानो सिनेमा के उस स्वर्ण युग की आत्मा फिर एक बार जीवित हो उठी हो. उनकी यह प्रस्तुति केवल गुरु दत्त के सिनेमा के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि नहीं थी, बल्कि इससे उन्होंने भारतीय फिल्म संगीत की समृद्ध परंपरा को भी सम्मानपूर्वक याद किया.

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गुरु दत्त अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रोशनी से सजी छवियां और सन्नाटे में गूंजती कविताएं हमेशा ज़िंदा रहेंगी.

मायापुरी परिवार गुरु दत्त की 100 वीं जयंती पर उन्हें हृदय से नमन करता है. 

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