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केदार शर्मा (Kedar Sharma) हिंदी सिनेमा जगत का एक ऐसा नाम है, जिसने कई कलाकारों की किस्मत को बदलकर उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया. कहा जाता है कि इनकी मार में भी एक आशीर्वाद होता था, वहीँ इनके द्वारा इनाम स्वरूप दी गयी ‘चवन्नी’ को फ़िल्मी सितारे किसी रतन की तरह सम्भालकर रखते थे.
केदार शर्मा हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर के एक सख्त और अनुशासनप्रिय निर्देशक थे. उनकी फिल्मों और निर्देशन शैली ने कई दिग्गज कलाकारों के करियर की नींव रखी. फ़िल्मी गलियारे में ऐसी खबरे भी है कि उन्होंने कई एक्टर्स को सेट पर डांटा और यहां तक कि थप्पड़ भी मारे हैं – लेकिन यही उनके करियर के टर्निंग पॉइंट बन गए.
राज कपूर को थप्पड़ मारकर दिया ‘नीलकमल’ में मौका
फिल्म जगत में कपूर परिवार की एक अलग पहचान है. उन्हें यह पहचान देने वाला और कोई नहीं बल्कि केदार शर्मा ही है. अगर केदार ना होते तो राज कपूर (Raj Kapoor) की फिल्मों में एंट्री न होती. दरअसल राज कपूर को फिल्मों में लाने का श्रेय केदार को ही जाता है. इससे जुड़ा एक किस्सा है, राज कपूर जब फिल्मों में काम सीख रहे थे, तब वो केदार शर्मा के साथ एक क्लैपर बॉय के तौर पर काम करते थे. एक बार शूटिंग के दौरान क्लैप ठीक से न करने पर केदार शर्मा ने उन्हें थप्पड़ मार दिया. इसके कुछ समय बाद, शर्मा ने राज कपूर को अपनी फिल्म ‘नीलकमल’ (1947) में बतौर हीरो मधुबाला के साथ कास्ट किया – और यहीं से शुरू हुआ राज कपूर का सुनहरा सफर. दोनों आगे चलकर हिंदी सिनेमा के चमकते सितारे बन गए.
तनुजा को भी मारा चांटा
फिल्मकार केदार शर्मा ने ‘हाथी मेरे साथी’ फिल्म की एक्ट्रेस तनुजा को ‘हमारी याद आएगी’ के सेट पर चांटा मारा था. कहा जाता है कि अभिनेत्री तनुजा अपने शुरुआती दिनों में काफी चुलबुली और लापरवाह थीं. केदार शर्मा ने उन्हें एक्ट्रेस के तौर पर संजीदगी से काम करना सिखाया. उनकी सख्त निर्देशन शैली ने तनुजा को एक गंभीर और प्रभावशाली अदाकारा में बदल दिया.
रोशन, मुबारक बेगम और भारत भूषण जैसे टैलेंट को भी पहचाना
1949 की फिल्म ‘नेकी और बदी’ (Neki Aur Badi) के लिए संगीतकार स्नेहल भाटकर (Snehal Bhatkar) चुने गए थे, लेकिन शर्मा को एक नवोदित संगीतकार रोशन की धुनें बेहद पसंद आईं और उन्होंने रोशन को ही मौका दे दिया.
इसके अलावा फिल्म ‘बैजू बावरा’ के एक्टर भारत भूषण को भी उन्होंने अपनी फिल्म ‘चित्रलेखा’ में मौका दिया था, उन दिनों वे संघर्ष कर रहे थे.
इन सितारों को मिली अमूल्य चवन्नी
केदार शर्मा की एक खासियत यह थी कि वे जब किसी के काम से खुश होते, तो उसे ईनाम में ‘दुअन्नी’ (बाद में ‘चवन्नी’) देते. यह चवन्नी सम्मान का प्रतीक मानी जाती थी. राज कपूर, दिलीप कुमार, गीता बाली, मुबारक बेगम, संगीतकार रोशन सभी को ये चवन्नियां मिलीं और सबका करियर चमका.
पेंटर से सिनेमैटोग्राफर तक का सफर
फिल्म जगत में इतने लोगों को मौका देने वाले खुद केदार शर्मा फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता बनने आए थे. इसके लिए वे कोलकाता आए थे, तब भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा केंद्र कोलकाता ही था. फिल्मों की तरफ उनका झुकाव 1933 में देवकी बोस की फिल्म ‘पुराण भगत’ देखकर हुआ, उन्होंने तभी ठान लिया कि उन्हें फिल्मों में काम करना है. लेकिन उनका यह सफ़र आसन नहीं था.
कोलकाता आने के कई दिनों बाद उनकी मुलाकात Modern Theatres के दिनशा रानी से हुई. जब उनसे पूछा गया कि वे क्या कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा — अभिनय, लेखन और गीत. लेकिन वहां एक पेंटर की ज़रूरत थी. वे चित्रकला में निपुण थे, इसलिए उन्होंने ये काम स्वीकार कर लिया, इस उम्मीद में कि यह उन्हें अभिनय के करीब ले जाएगा और हुआ भी ऐसा ही, कुछ समय बाद उन्हें कैमरे के पीछे काम करने का मौका मिला और 1934 में आई फिल्म ‘सीता’ (Seeta) में वे बतौर सिनेमैटोग्राफर शामिल हुए. बाद में उन्हें ‘इंकलाब’ (Inquilaab) में एक छोटी -सी भूमिका भी मिली.
देवदास से मिली असली पहचान
1936 की क्लासिक फिल्म ‘देवदास’ में उन्होंने बतौर कहानीकार और गीतकार काम किया. फिल्म की सफलता के बाद वे इंडस्ट्री में पहचान बनाने लगे. फिर ‘औलाद’ और 1941 में ‘चित्रलेखा’ का निर्देशन किया, जिसने उन्हें एक गंभीर निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया.
उन्होंने अपने करियर में कई बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें से कुछ हैं- दिल ही तो है, जिंदगी, अरमान, गौरी, मुमताज महल, चांद चकोरी, दुनिया एक सराय, नील कमल (निर्माता) और सुहाग रात.
बच्चों के लिए बनाई फिल्में
कम ही लोग जानते हैं कि बच्चों के लिए भी उन्होंने कई खूबसूरत फिल्में बनाईं, जैसे – जलदीप, गंगा की लहरें, गुलाब का फूल, 26 जनवरी, एकता, चेतक, मीरा का चित्र, महातीर्थ और खुदा हाफ़िज़.
गीतों में भी उनकी कलम का जादू
केदार शर्मा में प्रतिभा कूट- कूट कर भरी थी, इसलिए वे एक फिल्मकार होने के अलावा एक बेहतरीन गीतकार भी थे. उनके लिखे कुछ यादगार गीतों में शामिल हैं- ‘तेरी दुनिया में जी लगता नहीं’, ‘खयालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते’ (बावरे नैन), बालम आए बसे मेरे मन में’ (देवदास), ‘मैं क्या जानूं क्या जादू है’ (ज़िंदगी), और ‘कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी’ (हमारी याद आएगी).
करीब 50 वर्षों तक हिंदी सिनेमा में सक्रिय रहने के बाद 29 अप्रैल 1999 को केदार शर्मा का निधन हो गया. लेकिन उन्होंने जो सितारे गढ़े और जो कहानियाँ परदे पर जीवंत कीं, वे उन्हें अमर बनाती हैं. वे सिर्फ एक फिल्मकार नहीं थे, वे एक संस्थान थे, जिन्होंने थप्पड़ों से तालीम दी और चवन्नियों से कलाकारों की किस्मत चमका दी.
By PRIYANKA YADAV