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रियल लाइफ किरदारों को पर्दे पर उतारने में माहिर हैं Nawazuddin Siddiqui

बहुत कम एक्टर्स ऐसे होते हैं जो रियल लाइफ कैरेक्टर्स में इस कदर खुद को ढाल लेते हैं जैसे नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी। चाहे वो निडर लेखक हो, आक्रामक नेता या फिर खौफनाक सीरियल किलर वो किरदार निभाते नहीं, जीते हैं...

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Nawazuddin Siddiqui is an expert in portraying real life characters on screen
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बहुत कम एक्टर्स ऐसे होते हैं जो रियल लाइफ कैरेक्टर्स में इस कदर खुद को ढाल लेते हैं जैसे नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी। चाहे वो निडर लेखक हो, आक्रामक नेता या फिर खौफनाक सीरियल किलर वो किरदार निभाते नहीं, जीते हैं। बॉडी लैंग्वेज से लेकर बोलने के तरीके तक, हर छोटी बात पर उनकी पकड़ उन्हें स्क्रीन पर एकदम असली बना देती है। हर रोल में वो जैसे पूरी तरह बदल जाते हैं, ये साबित करते हुए कि वो किसी भी किरदार में पूरी तरह घुल-मिल सकते हैं।

मंटो

ठाकरे

सआदत हसन मंटो का किरदार निभाना आसान नहीं था, लेकिन नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने उसे दिल से जिया। मंटो जैसे बेबाक और बाग़ी लेखक को पर्दे पर उतारना किसी के बस की बात नहीं, मगर नवाज़ ने उनकी सोच, गुस्सा और गहराई को ऐसे निभाया जैसे वो खुद मंटो बन गए हों। उनके बोलने का अंदाज़, आंखों की तीखी नजर और हर डायलॉग में मंटो की सच्चाई झलकती है। ऐसा लगता है जैसे मंटो फिर से ज़िंदा हो गए हों।

ठाकरे

ठाकरे

बाल ठाकरे जैसे करिश्माई नेता का किरदार निभाना सिर्फ़ लुक्स की बात नहीं थी, बल्कि उनके व्यक्तित्व की गहराई को समझना भी उतना ही ज़रूरी था। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने ठाकरे की बोलने की शैली, हाथों के इशारे और उनका तेज़ व्यक्तित्व बखूबी अपनाया। उनके दमदार भाषण, आंखों की पैनी नजर और आत्मविश्वास से भरी बॉडी लैंग्वेज ने पूरे किरदार को जीवंत बना दिया। कभी हल्की मुस्कान, तो कभी तीखा तेवर, हर एक एक्सप्रेशन में वो ठाकरे की आत्मा बस गई थी। इस परफॉर्मेंस में नवाज़ ने साबित कर दिया कि ताकतवर किरदार निभाने के लिए ओवरएक्टिंग नहीं, गहराई चाहिए।

रमन राघव 2.0

रमन राघव 2.0

हालांकि रमन राघव 2.0 सीधा बायोपिक नहीं था, लेकिन नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का किरदार 1960 के दशक के कुख्यात सीरियल किलर से प्रेरित था। इस रोल को डरावना बनाने वाली बात ये थी कि उसमें कोई ज़ोरदार गुस्सा नहीं था बल्कि बस एक खामोश, लेकिन बेचैन कर देने वाली सहजता। उसकी धीमी, ठहरी हुई बोलचाल और बिना भाव वाली आंखों से झाँकता पागलपन असली सायकोलॉजिकल हॉरर जैसा महसूस होता है। नवाज़ ने इस किरदार के लिए असली साइकोपैथ्स का गहराई से अध्ययन किया था, और उसकी झलक हर सीन में दिखती है। नतीजा? एक ऐसा परफॉर्मेंस जो फिल्म खत्म होने के बाद भी दिमाग से निकलता नहीं।

हड्डी

हड्डी

हड्डी में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने ट्रांसजेंडर का रोल ऐसा निभाया कि देखने वालों का दिल छू गया। किरदार में उतरने से पहले उन्होंने असली ट्रांसजेंडर लोगों से मिलकर उनकी ज़िंदगी को समझा, उनकी बातों को सुना। चाल-ढाल से लेकर बोलचाल और हावभाव तक, सब कुछ इतना नेचुरल था कि किरदार बिलकुल असली लगा। कोई दिखावा नहीं, कोई ओवर एक्टिंग नहीं बल्कि बस सच्ची और सादी परफॉर्मेंस। यही नवाज़ की खासियत है, हर रोल में जान डाल देना।

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के बायोपिक रोल्स सिर्फ शक्ल-सूरत की नकल तक सीमित नहीं रहते। वो अपने किरदारों की सोच, जज़्बात और जद्दोजहद को भीतर तक महसूस करते हैं। चाहे कोई लेखक हो, नेता हो या फिर अपराधी नवाज़ हर असली किरदार को पर्दे पर इतनी सच्चाई से उतारते हैं कि देखने वाला भूल जाता है कि वो एक्टिंग देख रहा है। हर रोल में इस कदर घुल जाना ही उन्हें अपने दौर का सबसे दमदार एक्टर बनाता है।

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