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भारतीय सिनेमा में जब भी भावनाओं से भरे गीतों की बात होती है, तो राजा मेहदी अली खान का नाम ज़रूर आता है. वे सिर्फ एक गीतकार नहीं थे, बल्कि शायरी, पत्रकारिता और लेखन के ज़रिए समाज और सिनेमा को एक नई ज़ुबान देने वाले फनकार थे. उनकी कलम से निकले शब्द सीधे दिल में उतरते थे — कभी प्रेम बनकर, कभी पीड़ा बनकर, और कभी देशभक्ति का गर्व बनकर. शब्दों में जीने वाले इस दिग्गज की आज, 29 जुलाई को पुण्यतिथि है. इस मौके पर आइए, हम उनके उन अनमोल गीतों को याद करें, जो भावनाओं के सबसे खूबसूरत रंगों में रंगे हुए हैं
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अदबी माहौल में जन्मा एक फनकार
राजा मेहदी अली खान का जन्म 23 सितंबर 1915 को अविभाजित भारत के पंजाब राज्य के वज़ीराबाद के पास करमाबाद गांव में हुआ था. उनके पिता बहावलपुर रियासत के वज़ीर-ए-आज़म थे. चार साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ गया. उनकी परवरिश उनकी मां हामिदा बेग़म और मामू मौलाना ज़फर अली खान ने की, जो अपने दौर के मशहूर अख़बार ‘ज़मींदार’ के संपादक थे. उनकी मां खुद “हेबे साहिबा” के नाम से शायरी करती थीं और उनकी शायरी की तारीफ खुद अल्लामा इक़बाल ने की थी. इस अदबी माहौल का असर युवा मेहदी अली पर भी पड़ा. इसी वजह से शायरी और गीतों में उनकी रूचि जागी. मेहदी का कलम से तआल्लुक एक पत्रकार के तौर पर शुरू हुआ. अपने मामू के अखबार के अलावा बच्चों की एक पत्रिका ‘फूल’ में उन्होंने जर्नलिस्ट की हैसियत से काम किया.
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रेडियो से सिनेमा तक का सफर
1942 में वे ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली में लेखक के रूप में शामिल हुए, जहां उनकी मुलाकात मशहूर कहानीकार सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) से हुई. मंटो ही उन्हें फिल्मों में लाए. ‘आठ दिन’ (1946) उनकी पहली फिल्म थी, जिसमें उन्होंने स्क्रिप्ट के साथ-साथ अभिनय भी किया. इसके बाद फिल्मिस्तान स्टूडियो के शशधर मुखर्जी (Sashadhar Mukherjee) ने उन्हें फिल्म दो भाई (1947) के लिए गीतकार के रूप में मौका दिया. फिल्म में उनका गीत ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया’ और ‘याद करोगे इक दिन हमको..’ लिखे, जो जबरदस्त हिट रहे. इस तरह फिल्मों में गीतकार के तौर पर उनकी नई शुरुआत हुई, जिसे उन्होंने आख़िरी दम तक नहीं छोड़ा.
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देश को समर्पित गीतकार
1947 में बंटवारे के समय, जहां कई मुस्लिम कलाकार पाकिस्तान चले गए, वहीं राजा मेहदी अली खान और उनकी पत्नी ने भारत में रहने का फैसला किया और 1948 की फिल्म ‘शहीद’ में उन्हें संगीतकार ग़ुलाम हैदर के संगीत निर्देशन में गीत लिखने का मौका मिला. इस फिल्म में उन्होंने चार गीत लिखे. जिसमें ‘वतन की राह में, वतन के नौजवान’ और ‘आजा बेदर्दी बालमा’ की खूब धूम रही. जिसमें ‘वतन की राह में, वतन के नौजवान’ ऐसा गीत है, जो आज भी राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि के मौके पर हर जगह बजाया जाता है.
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मदन मोहन और अमर साझेदारी
राजा मेहदी अली खान की सबसे यादगार और सफल साझेदारी मदन मोहन के साथ साल 1951 से लेकर 1966 तक यानी पूरे डेढ़ दशक तक रही. इस जोड़ी ने ‘मदहोश’ ‘अनपढ़’, ‘मेरा साया’, ‘वो कौन थी?’, ‘दुल्हन एक रात की’ और ‘अनीता’ जैसी क्लासिक फिल्में कीं.
राजा मेहदी अली खान के लोकप्रिय गाने
अपने फ़िल्मी करियर में राजा मेहदी अली खान ने कई लोकप्रिय गाने लिखे, जिनमें से कुछ हैं-
मेरा सुंदर सपना बीत गया - दो भाई (1947), वतन की राह में - शहीद (1948), प्रीतम मेरी दुनिया में दो दिन तौ रहे होतय - अदा (1951 फ़िल्म) , मेरी याद में तुम ना आंसू बहाना - मदहोश (1951), रात सर्द सर्द है - जाली नोट (1960), पूछो ना हमें - मिट्टी में सोना (1960), आप यहीं अगर हम से मिलते रहे - एक मुसाफिर एक हसीना (1962), मैं प्यार का राही हूं - एक मुसाफिर एक हसीना (1962), आप की नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे - अनपढ़ (1962), है इसी में प्यार की आबरू - अनपढ़ (1962), जिया ले गयो री मेरा सांवरिया — अनपढ़ (1962) , मैं निगाहें तेरे चेहरे से - आप की परछाइयां (1964), जो हमने दास्तां अपनी सुनाई, आप क्यों रोए - वो कौन थी? (1964), लग जा गले के फिर ये रात हो ना हो - वो कौन थी? (1964), नैना बरसे रिमझिम रिमझिम - वो कौन थी? (1964), जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई, आप क्यूँ रोए- वो कौन थी-1964 ),आखिरी गीत मोहब्बत का - नीला आकाश (1965), तेरे पास आ के मेरा वक़्त - नीला आकाश (1965), नैनों में बदरा छाये - मेरा साया (1966) , तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा - मेरा साया (1966), आप के पहलु मैं आ कर रो दिये - मेरा साया (1966), झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में - मेरा साया (1966), सपनों में अगर मेरे तुम आओ - दुल्हन एक रात की (1967), कई दिन से जी है बेकल - दुल्हन एक रात की (1967), एक हसीन शाम को - दुल्हन एक रात की (1967). तेरे बिन सावन कैसा बीता - जब याद किसी की आती है (1967), अरी ओ शोख कलियों मुस्कुरा देना - जब याद किसी की आती है (1967), अकेला हूं मैं हमसफर ढूंढता हूं - जाल (1967), तुम बिन जीवन कैसे बीता पूछो मेरे दिल से - अनीता (1967),
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शायर, पत्रकार और लेखक
फिल्मों के अलावा, राजा मेहदी अली खान एक उम्दा लेखक भी थे. उन्होंने बच्चों के लिए कहानियां लिखीं, जो ‘राजकुमारी चंपा’ में संकलित हैं. साथ ही, उनका उपन्यास ‘कमला’ भी काफी चर्चित रहा. शायरी के प्रति उनका झुकाव ताउम्र बना रहा, और हास्य-व्यंग्य कविता में भी उन्होंने नाम कमाया.
29 जुलाई 1966 को यह बेमिसाल फनकार दुनिया को अलविदा कह गया. उनकी अंतिम फिल्म थी मेरा साया, जिसके सभी गीत आज भी अमर हैं. उनके निधन पर लेखक कृश्न चंदर ने लिखा —“राजा मेहदी अली खान एक बच्चा था और जब भी किसी बच्चे को मौत हमारे बीच से उठाकर ले जाती है, तो इस कायनात की मासूमियत में कहीं न कहीं कोई कमी ज़रूर रह जाती है.’’
‘मायापुरी’ परिवार की ओर से महान गीतकार राजा मेहदी अली खान को भावभीनी श्रद्धांजलि! आपके अमर गीतों की गूंज भारतीय सिनेमा में सदा जीवित रहेगी.
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