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कभी-कभी ज़िंदगी किसी को सिर्फ़ कामयाबी नहीं बल्कि एक कहानी बना देती है। ऐसी कहानी जो आने वाली पीढ़ियों को यह भरोसा देती है कि अगर यक़ीन सच्चा हो तो ख्वाब कभी अधूरे नहीं रहते।
शाहरुख़ ख़ान की ज़िंदगी वही कहानी है। एक दिल्ली के लड़के की, जिसने अपनी तक़दीर को खुद लिखा और पूरी दुनिया को अपनी मोहब्बत में बाँध लिया।
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ये तो जगजाहिर है कि शाहरुख़ का जन्म 2 नवंबर 1965 को दिल्ली में हुआ। उनके अब्बा मीर ताज मोहम्मद ख़ान पेशावर से थे आज़ादी के सिपाही, जो भारत-पाकिस्तान बँटवारे के बाद दिल्ली आ बसे। एक बेहद ईमानदार, सादगी पसंद इंसान, जिनके अंदर एक जुनून था, कुछ करके दिखाने का। शाहरुख़ ने कई मौकों पर कहा कि उनके पिता मीर ताज मोहम्मद खान ‘छोटी उम्र में ही बड़े इरादों’ वाले इंसान थे। बताया जाता है कि उनके पिता पेशावर (अब पाकिस्तान) के थे और 1940 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे। वे कानून की पढ़ाई करने दिल्ली आए थे और विभाजन के बाद वहीं बस गए। वे कानून की पढ़ाई भी कर चुके थे और उन्हें MA, LLB की उपाधियाँ मिली थीं। (Shahrukh Khan family background and roots)
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शाहरुख खान के पिता ताज मोहम्मद खान: सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी
कुछ स्रोत के मुताबिक उन्होंने ‘सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी’ की उपाधि भी पाई थी। स्वतंत्रता संग्राम (ब्रिटिश भारत में) के पूर्व-दौर से उनका लेखा-जोखा मिलता है। जैसे कि उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान (फ्रंटियर गांधी) के आंदोलन से जुड़ने की बात कही है। बाद में दिल्ली में उन्होंने छोटे-मोटे व्यवसायों में काम किया। जैसे कि कैन्टीन चलाना। ताकि परिवार को सहारा मिल सके। उनकी अम्मी लतीफ़ फ़ातिमा ख़ान, पढ़ी-लिखी, नरमदिल और मजबूत स्त्री थी , जिन्होंने अपने बेटे में वही हौसला भरा जो ज़िंदगी के हर मुश्किल मोड़ पर उसका सहारा बना। (Shahrukh Khan father Taj Mohammed Khan biography)
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शाहरुख़ अक्सर कहते हैं,“मेरे अब्बा मुझे ये सिखा गए कि अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश करती है।”
अपने पिता के आगे, शाहरुख़ की जड़ें कुछ इस तरह हैं:
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शाहरुख़ के नानाजी इफ्तिखार अहमद, कर्नाटक राज्य में मुख्य अभियंता थे और मंगलोर बंदरगाह के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई थी।दूसरी ओर पिता के पक्ष से यह सामने आता है कि उनका वंश पेशावर-कश्मीर से रहा है। लेकिन जात-पंथ, बोली-भाषा आदि को लेकर कई तरह की व्याख्याएँ मिलती हैं। कुछ स्रोत बताते हैं कि उनका परिवार ‘हिंद्को’ बोलने वाला समुदाय था, ना कि पारंपरिक पठान। इस तरह शाहरुख़ की सांस्कृतिक जड़ों में एक मिश्रित सफर है।
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राजेन्द्र नगर की गलियों में बीता उनका बचपन किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था। छोटा सा घर, बड़ी ख्वाहिशें। स्कूल में शाहरुख हमेशा सबसे आगे रहते। खेल, नाटक, बहस, हर जगह अपनी छाप छोड़ते। उन्होंने सेंट कोलंबा स्कूल से पढ़ाई की जहाँ उन्हें “स्वोर्ड ऑफ आनर ” से नवाज़ा गया। फिर हंसराज कॉलेज में दाख़िला लिया जहाँ थिएटर उनका पहला इश्क़ बन गया। लेकिन ज़िंदगी की पटकथा हमेशा आसान नहीं होती। जब शाहरुख़ सिर्फ़ चौदह 15 साल के थे उनके अब्बा का साया सिर से उठ गया। (Latif Fatima Khan education and personality)
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शाहरुख ने कहा था "मेरे पिता जब चले गए शाम-ए-जीवन में, तब मैं सिर्फ़ चौदह या पंद्रह का था। मेरे पास अब किसी छांव में ठहरने की जगह नहीं थी।” यह पंक्ति उनके पिता की अनुपस्थिति की गहराई और उस ज़िम्मेदारी की ओर इशारा करती है जो उन्होंने अपने ऊपर ले ली। कुछ सालों बाद अम्मी भी चल बसीं। इन दोनों हादसों ने उनके भीतर एक खालीपन छोड़ दिया। मगर उसी खालीपन ने उनके भीतर वो गहराई पैदा की जो आगे चलकर उनके अभिनय का असली रंग बनी। वे कहते हैं,“मैंने अपने माता पिता दोनों को बहुत जल्दी खो दिया। शायद इसलिए मैं हर रिश्ते में माँ-बाप जैसा प्यार ढूँढता हूँ।”
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दिल्ली से मुंबई का सफ़र एक नया इम्तिहान था। जेब में पैसे कम लेकिन जज़्बा बहुत बड़ा। टीवी धारावाहिक 'फौजी' और 'सर्कस' से शुरुआत हुई। कैमरे के सामने वो एकदम नैचुरल थे जैसे एक्टिंग नहीं, ज़िंदगी जी रहे हों। तभी तो जिसने भी देखा सबने कहा इस लड़के में कुछ तो ख़ास है। और फिर आया वो दौर जब उन्होंने बड़े पर्दे पर कदम रखा। फिल्म 'दीवाना' , 'बाज़ीगर', 'डर' , 'अंजाम' और भी कई फ़िल्में। वो सारे रोल जो उस दौर के हर टॉप हीरो ने करने से मना किया उसे शाहरुख़ ने पूरे जोश से निभाए। (Shahrukh Khan childhood and upbringing)
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“मैं हीरो नहीं बनना चाहता था,” उन्होंने कहा था, “मैं बस अच्छा एक्टर बनना चाहता था और अगर लोगों ने मुझे हीरो बना दिया तो ये उनका प्यार है।”
कहते हैं हर सितारे की ज़िंदगी में एक मोड़ होता है जहाँ से उसकी किस्मत बदल जाती है। शाहरुख़ के लिए वो पल था 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' ।
राज और सिमरन की वो मोहब्बत आज भी उतनी ही ज़िंदा है जितनी 1995 में थी। इस फिल्म ने शाहरुख़ को सिर्फ़ स्टार नहीं बनाया बल्कि वे “रोमांस” का दूसरा नाम बन गए।
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इसके बाद 'दिल तो पागल है' , 'कुछ कुछ होता है' , 'कभी खुशी कभी ग़म' , 'कल हो ना हो',' चक दे इंडिया',' माई नेम इज़ खान', यानी हर फिल्म में उन्होंने सिर्फ़ किरदार नहीं निभाया बल्कि एहसास जिया।
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वे कहते हैं,“मैं रोमांस की फ़िल्में सिर्फ इसलिए नहीं करता क्योंकि वो बिकता है, मैं इसलिए करता हूँ क्योंकि मोहब्बत पर मेरा यक़ीन है।”
लेकिन सिर्फ़ इश्क़ ही नहीं, उन्होंने मेहनत, तक़लीफ़ और संघर्ष से अपने करियर की नींव रखी।
मुंबई में शुरूआती दिनों में उन्होंने कई बार कहा, “मैंने कभी खुद को किसी से बड़ा नहीं समझा लेकिन किसी से छोटा भी नहीं माना।”
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यही आत्मविश्वास, यही हौसला उन्हें बादशाह बना गया।
वक़्त गुज़रता गया। शाहरुख़ हर दशक में नए रूप में लौटते रहे।
रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट जैसी अपनी प्रोडक्शन कंपनी बनाई। कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिक बने और साथ ही भारतीय सिनेमा को एक नई अंतरराष्ट्रीय पहचान दी।
उन्होंने सिर्फ़ किरदार नहीं निभाए। उन्होंने लोगों की ज़िंदगी में उम्मीद जगाई।
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फिर आया 2023, जब दुनिया ने एक बार फिर देखा कि शाहरुख़ अब भी 'किंग' हैं। 'पठान' , 'जवान' , और 'डंकी' इन तीनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
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लेकिन शाहरुख़ की असली जीत शायद ये नहीं थी कि उन्होंने करोड़ों कमाए बल्कि ये कि उन्होंने हर उम्र के दर्शक को फिर से यक़ीन दिलाया कि असली स्टार वो नहीं होता जो बस चमकता है बल्कि वो होता है जो वक्त के साथ भी नहीं मिटता।
शाहरुख़ कहते हैं, "ऐक्टिंग मेरे लिए प्रेयर की तरह है, हर रोल एक दुआ है, जो मैं अपने दर्शकों के लिए पढ़ता हूँ।” (Taj Mohammed Khan and Abdul Ghaffar Khan connection)
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उनका स्टाइल, उनकी मुस्कान, उनका अंदाज़, उनका वो दोनों बांहों को तिरछे अंदाज में फैलाना, सब कुछ जैसे लोगों की धड़कनों में बस चुका है। या कहूँ कि लोगों की धड़कनों की रफ्तार को बढ़ा देता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । लेकिन
सबसे बड़ी बात ये है कि वो आज भी वही दिल्ली वाला लड़का हैं जो हर किसी से दिल खोलकर मिलता है, जो बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक सबको अपनी मोहब्बत दे देता है।
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आज जब शाहरुख़ ख़ान अपने 60वें जन्मदिन की दहलीज़ पर हैं, तो वो सिर्फ़ एक सुपरस्टार नहीं बल्कि वे अपने दर्शकों के लिए उनके लहू की रवानगी है, एक एहसास है, एक भावना हैं एक ऐसी भावना जो हमें एहसास कराती है कि ज़िंदगी
चाहे जितनी मुश्किल क्यों न लगे, मुस्कुराना मत छोड़ो क्योंकि जैसा वो खुद कहते हैं —
“ज़िंदगी में अगर कुछ अच्छा ना हो रहा हो, तो थोड़ा रुक जाओ… क्योंकि अगला सीन हमेशा बेहतर होता है।”
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लेखिका सुलेना की कलम से: मैंने कई सितारों पर लिखा है, कई कहानियाँ देखी हैं। लेकिन शाहरुख़ ख़ान की बात कुछ और है। वे सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, वे उस सपने का चेहरा हैं जो हर मिडल क्लास दिल में पलता है।
उनमें वो बेटा दिखता है जिसने अपने माँ-बाप के अधूरे अरमान पूरे किए, वो इंसान जो अपने दर्द को मुस्कान में बदल देता है, वो पति जो बड़ी निष्ठा और वफा से पति धर्म निभाता है, वो पिता जिनका दिल अपने बच्चों के लिए धड़कता है और वो
कलाकार जो हर किरदार में हमारी ही कहानी सुना देता है।
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Shahrukh Khan 9th Filmfare: क्या शाहरुख खान 15वें वर्ष में दिलीप कुमार से आगे निकल सकेंगे...
दुनिया कहती हैं 'किंग खान' ।
मगर वे तो हमेशा वही दिल्ली वाले शाहरुख़ ही रहेंगे, जो अपनी हर बात के बाद आँखों से मुस्कुराकर कहते हैं है,“पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।”
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FAQ
प्रश्न 1: क्या शाहरुख़ खान के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे?
उत्तर: हां, कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार शाहरुख खान के पिता ताज मोहम्मद खान स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें “सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी” की उपाधि भी मिली थी।
प्रश्न 2: शाहरुख खान के पिता का संबंध किस आंदोलन से था?
उत्तर: माना जाता है कि ताज मोहम्मद खान खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें “फ्रंटियर गांधी” कहा जाता है, के आंदोलन से जुड़े हुए थे।
प्रश्न 3: शाहरुख खान की मां लतीफ फातिमा खान कौन थीं?
उत्तर: लतीफ फातिमा खान एक पढ़ी-लिखी, संवेदनशील और मजबूत महिला थीं, जिन्होंने शाहरुख में आत्मविश्वास और मानवता की भावना भरी।
प्रश्न 4: शाहरुख खान अक्सर अपने पिता के बारे में क्या कहते हैं?
उत्तर: शाहरुख खान का मशहूर कथन है — “मेरे अब्बा मुझे ये सिखा गए कि अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश करती है।”
प्रश्न 5: शाहरुख खान का पारिवारिक जीवन किस तरह से उनके करियर को प्रभावित करता है?
उत्तर: उनके माता-पिता के मूल्यों, संघर्षों और प्रेरणा ने शाहरुख को मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की ताकत दी।
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