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स्ट्रगल Ravi Kishan का...

जैसा मैं पहले बता चुका हूं कि फिल्म  पत्रकारिता की शुरुआत में मैं भी हर शाम बांद्रा स्टेशन के बाहर सहकार भंडार रेस्टॉरेंट पर जाया करता था. यह पीआरओ, पत्रकारों और नए कलाकारों...

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जैसा मैं पहले बता चुका हूं कि फिल्म  पत्रकारिता की शुरुआत में मैं भी हर शाम बांद्रा स्टेशन के बाहर सहकार भंडार रेस्टॉरेंट पर जाया करता था. यह पीआरओ, पत्रकारों और नए कलाकारों का अड्डा हुआ करता था. मेरी मुलाकात जिन पीआरओ'ज से हुई उनमें सबसे अधिक नजदीकी बढ़ी राजू कारिया, समरजीत (ये दोनों उनदिनों मेरी ही तरह नए थे) और सीनियर प्रचारक रमन पांडे से.'मायापुरी' के सीनियर पत्रकार जेड ए जौहर भी वहीं मिला करते थे. एक दो बार जौहर का छोटा लड़का भी वहां उनके साथ होता था... वही लड़का  एक्टर शारिब हाशमी है जो आजकल ओटीटी का स्टार चेहरा है. बाद के दिनों में समरजीत भोजपुरी फिल्मों के एकलौता पीआरओ कहे जाने शुरू हो गए और राजू कारिया हिंदी फिल्मों का स्टार पीआरओ बन गया था.

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अब बात करते हैं प्रचारक रमन पांडे की. एक बेहद सभ्य, दबंग पीआरओ थे रमन जी ! वह अपने साथ लाइसेंसी रिवाल्वर भी रखते थे. रमन जी की और मेरी खूब जमती थी.मुझे चाय पिलाए बिना मानते नही थे और दूसरे वहां के फिल्मी स्ट्रगलरों से बात भी नहीं करते थे, कहते थे- "सब सा... चाय पीने के लिए नमस्कार करते हैं." अपनी शुरुआत में रमन पांडे संगीतकार शंकर की शारदा (गायिका) के पीआरओ के रूप में जाने जाते थे तथा वह कई और बड़े नाम वाली फिल्मी हस्तियों के पीआरओ भी रहे.

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रमन पांडे को फिल्म निर्देशन की सूझी. उनके बैंड स्टैंड स्थित घर पर सिटिंग शुरू हो गयी. लक्ष्मी कांत पांडे उनके साथ निर्माता थे. दीपक पराशर, सुरेंदर कौर ( 'नदिया के पार' वाली हीरोइन साधना सिंह की बहन) के साथ शुरू हुई इस फिल्म का नाम था 'गुड़िया'. रमन जी स्नेह बस मुझे इस प्रोजेक्ट में लेखन, कास्टिंग सबमें अपने साथ जोड़े रखते थे. मैंने उनदिनों एक मुलाकात में रवि किशन को बताया कि वहां फिल्म की तैयारी चल रही है, रमन जी से मिल लो. यह रवि किशन की शुरुआत के दौर की ही बात है. अगले ही दिन रमन जी के घर पर हमलोग कमरे में वार्ता कर रहे थे, खिड़की से पांडेजी ने देखा- जिस लड़के को मैं उनसे मिलाने वाला था, वह बॉलकोनी में खड़ा उनकी बेटी से हस हँसकर बातें कर रहा था. वह मुझे बोले-"जरा बाहर देखो. इसको ही मिलाने के लिए कह रहे थे न? बाहर मेरी लड़की को लाइन मार रहा है....इसको तो मैं गा... में गोली मारूंगा. हालांकि जब रवि किशन उनसे मिले, रमन जी बड़े नार्मल मूड में बात किए.वह यूं ही हड़काया करते थे, थे बड़े नरम दिल के. जाने के समय रवि किशन ने मुझे इशारा करके बाहर बुलाया कहा - "आप चाहोगे तो यहां मेरा काम बन जाएगा."

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खैर, वो रवि किशन के शुरुआती संघर्ष के दिन थे. बाद मे मुझे और रमन जी को पता चला कि  रवि और प्रीति दोनो पहले से एक दूसरे को जानते थे. दोनो बांद्रा के रिजवी कालेज में 11वीं में साथ पढ़ रहे थे. 'गुड़िया' फिल्म में रवि किशन को काम मिलने में दिक्कत हो गयी क्योंकि दीपक पराशर का रोल छोटा हो रहा था. दीपक पराशर मॉडल थे एक बड़ी फिल्म साइन कर लिए थे और उनके सामने रवि किशन कुछ नहीं थे. फिल्म 'गुड़िया' का क्या हुआ क्या नहीं, अलग चैप्टर है. हां, संघर्ष के दिनों में ही रवि किशन को एक अच्छी दोस्त मिल गयी - रमन जी की बेटी प्रीति पांडे, जो आज रवि किशन की पत्नी और उनके बच्चों की माँ प्रीति शुक्ला हैं. रवि किशन की गाइड भी हैं वह.

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प्रीति, रवि किशन के लिए ना सिर्फ उनके फिल्मी संघर्षों की साथी हैं बल्कि वह हर उस कदम की गवाह हैं जब हिंदी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं और कई छोटी फिल्मों के हीरो करते करते हुए रवि भोजपुरी फिल्मों के बहुत बड़े स्टार बन जाते हैं, साउथ की फिल्मों में काम करते हैं. दो बार सांसद बनते हैं और राजनीति में रहते हुए भी फिल्मी मोर्चे पर "लापता लेडीज" और "मामला लिगल है" जैसी फिल्में करके साबित करते हैं कि बन्दे में है दम !

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