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महिला क्रिकेट के सम्मान और अधिकारों की कहानी बहुत पुरानी है। आज जब हम टीवी पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम को दुनिया भर में जीतते देखते हैं तो लगता नहीं कि कभी ऐसा भी समय था जब इन लड़कियों के पास न पैसे थे न सुविधा न नौकरी और न ही लोगों का ध्यान। लेकिन उन दिनों कुछ ऐसी औरतें थीं जो सिर्फ खेल के लिए खेलती थीं। जिन्हें इंडिया की जर्सी पहनने का जूनून था और महिला खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने का जज्बा था चाहे रास्ता कितना ही मुश्किल क्यों न हो। (History of Indian women’s cricket)
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इन्हीं में से एक नाम है नूतन गावस्कर। मशहूर क्रिकेटर सुनील गावस्कर की छोटी बहन। लेकिन नूतन की पहचान सिर्फ इतनी नहीं है। वह भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआती लड़ाई की सबसे मजबूत आवाज़ों में से एक रही हैं। 1973 में जब वीमेन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानी WCAI बना तब नूतन उसी दौर की उन लड़कियों में थीं जिन्होंने बिना किसी लालच और बिना किसी सुविधा के सिर्फ अपने जज़्बे और मेहनत से टीम बनाई, टूर्नामेंट आयोजित किए और दुनिया के सामने भारतीय महिला क्रिकेट को खड़ा किया।
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नूतन गावस्कर भारतीय महिला क्रिकेट की शुरुआती लड़ाई की मजबूत आवाज़
नूतन याद करती हैं कि उन दिनों स्पॉन्सर नाम की कोई चीज़ नहीं होती थी। प्रैक्टिस के लिए बैट और पैड तक जुटाना मुश्किल था। विदेश दौरे तो जैसे किसी सपना पूरा करने जैसा लगता था क्योंकि पैसे का इंतज़ाम करना सबसे बड़ी चुनौती थी। लेकिन फिर भी टीम ने खेलना नहीं छोड़ा। वह कहती हैं, “हम लोग उस वक्त प्रोफेशनल नहीं माने जाते थे। हमें साफ कह दिया जाता था कि महिला क्रिकेट कोई कमाई वाला खेल नहीं है। मतलब न पैसा न सुविधा बस खेल के प्रति मोहब्बत।”
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एक बार न्यूजीलैंड टूर पर टीम को जाना था लेकिन होटल में रुकने तक के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में वहां रहने वाले भारतीय परिवारों ने अपने घर रहने के लिए खोल दिए। लड़कियां अलग-अलग घरों में रुकतीं, खाना खातीं, फिर मुकाबला खेलने मैदान में उतरतीं। यह सुनकर आज की जेनरेशन को शायद यकीन ही न हो। (Nutan Gavaskar women cricketer)
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एक और याद नूतन के चेहरे पर मुस्कान ले आती है। अभिनेत्री मन्दिरा बेदी ने एक डायमंड ब्रांड के लिए विज्ञापन किया था। उस विज्ञापन की कमाई उन्होंने पूरी की पूरी WCAI को दे दी। उस पैसों से भारत की महिला टीम को इंग्लैंड का टूर खेलने जाने के लिए हवाई टिकट खरीदे गए। उस समय ऐसे लोग ही महिला क्रिकेट के असली सहारे थे।
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कभी-कभी एयर इंडिया टिकट स्पॉन्सर कर देती थी क्योंकि राष्ट्रीय टीम कहीं खेलने जा रही है ये बात खुद में गर्व की बात थी। 70 के दशक से लेकर 90 के दशक तक महिला क्रिकेट के लिए पैसों, साधनों और सम्मान की लड़ाई बहुत लंबी थी।
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नूतन कहती हैं कि आज जब वह अखबार के पहले पन्ने पर जेमिमा रोड्रिग्स जैसी खिलाड़ियों की तस्वीरें देखती हैं तो दिल भर आता है। क्योंकि पहले तो अखबार में एक छोटा सा कोना भी मुश्किल से मिलता था। हैडलाइन बस इतनी होती थी “इंडियन वीमेन टीम जीती” या “हार गई।” खेल की पूरी कहानी, खिलाड़ियों के नाम, कोई विवरण तक नहीं। (Sunil Gavaskar sister Nutan Gavaskar story)
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Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: भारतीय खेल जगत के सच्चे प्रेरणास्रोत
नूतन ने प्रतिभा की खोज में बहुत काम किया था। उसी दौरान उन्होंने एक लंबी, तेज रफ्तार वाली लड़की को देखा था जिसका नाम था झूलन गोस्वामी। बाद में वही झूलन भारत की सबसे मशहूर गेंदबाजों में से एक बनीं। नूतन को इस बात का गर्व है कि उन्होंने उस समय प्रतिभा पहचानी। (Women Cricket Association of India 1973)
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वो दौर ऐसा भी था जब पूरी टीम के पास सिर्फ तीन बैट होते थे। दो ओपनर दो बैट लेकर उतरते थे और तीसरा बैट नंबर तीन खिलाड़ी के पास होता था। जैसे ही कोई बल्लेबाज आउट होता उसकी गियर अगली खिलाड़ी को मिल जाती। एक ही पैड और एक ही ग्लव्स घूमते रहते थे। मज़बूरी थी लेकिन कोई शिकायत नहीं थी।
ट्रेन यात्राएँ भी बहुत लंबी होती थीं। 36-48 घंटे तक जनरल कंपार्टमेंट में सफर। टिकट तक लड़कियाँ खुद देती थीं। टूर्नामेंट के दौरान रहने की व्यवस्था भी सामान्य होती थी। कभी एक ही कमरे में 15-20 लड़कियाँ रहती थीं। बाथरूम कम होते थे, साफ़-सफाई की हालत भी बहुत अच्छी नहीं होती थी। खाना भी बहुत बेसिक होता था। लेकिन फिर भी चेहरे पर मुस्कान होती थी और खेलते वक्त सब कुछ भूल जाती थीं।
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मैच फीस जैसा शब्द तब महिला क्रिकेट में था ही नहीं। पैसे नहीं थे इसलिए कोई फीस नहीं मिलती थी। 2005 वर्ल्ड कप में भारत रनर-अप भी बना लेकिन टीम को प्राइज मनी मिली या नहीं आज भी साफ याद नहीं।
Jhulan Goswami, Mithali Raj, Diana Edulji, Shantha Rangaswamy और Anjum Chopra जैसे सीनियर खिलाड़ियों ने भी ये दिन देखे हैं।
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PM Narendra Modi से मिली World Champion Indian Women’s Team, नमो-1’ जर्सी की भेंट
2006 में जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी BCCI ने महिला क्रिकेट को अपने अधीन लिया तब जाकर सुविधाएँ, ट्रेनिंग और पैसा धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हुआ। फिर भी शुरुआत में सिर्फ सीनियर लेवल पर ध्यान दिया जाता था। तब भी नूतन और WCAI ने छोटे स्तर पर यानी अंडर-14 और अंडर-16 टूर्नामेंट आयोजित किए ताकि नई लड़की सामने आएँ और आगे बढ़ सकें। (Women’s cricket in 1970s India)
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आज जब नूतन भारत की महिला टीम को बिजनेस क्लास में यात्रा करते देखती हैं, पाँच सितारा होटलों में रुकते देखती हैं, ट्रेनिंग, डायट, फिजियो, कोचिंग, सबकी सुविधा मिलती देखती हैं, तो उनका दिल सच में खुश हो जाता है। वह कहती हैं, “हमने उस समय सिर्फ एक सपना देखा था कि एक दिन महिला क्रिकेट को वह सम्मान मिलेगा जिसका वह हकदार है। आज वह सपना पूरा होता देख रही हूँ।”
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Yami और Emraan Hashmi की फिल्म ‘HAQ’ की Screening में चमके बॉलीवुड सितारे
ये कहानी सिर्फ खिलाड़ी बदलने की नहीं है,ये कहानी है इरादे की जुनून कीऔर उन औरतों की जिन्होंने दुनिया को साबित किया कि क्रिकेट सिर्फ मर्दों का खेल नहीं है।
और ये सफर आज भी जारी है।
FAQ
Q1: नूतन गावस्कर कौन हैं?
A1: नूतन गावस्कर मशहूर क्रिकेटर सुनील गावस्कर की छोटी बहन हैं और भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआती दौर की प्रमुख खिलाड़ी एवं आयोजक रहीं।
Q2:महिला क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) कब बनी थी?
A2: महिला क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) की स्थापना वर्ष 1973 में की गई थी, जिसने भारत में महिला क्रिकेट को संगठित रूप दिया।
Q3:नूतन गावस्कर का महिला क्रिकेट में क्या योगदान रहा है?
A3: नूतन गावस्कर ने शुरुआती दौर में बिना किसी सरकारी सहायता या सुविधाओं के महिला क्रिकेट टीम बनाने, टूर्नामेंट आयोजित करने और भारत का प्रतिनिधित्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Q4:क्या शुरुआती दौर में महिला खिलाड़ियों को आर्थिक सहायता मिलती थी?
A4: नहीं, उस समय महिला खिलाड़ियों के पास न तो आर्थिक सहायता थी, न स्पॉन्सरशिप और न ही पर्याप्त सुविधाएँ। वे केवल अपने जुनून और समर्पण से खेलती थीं।
Q5:भारत में महिला क्रिकेट का शुरुआती दौर इतना कठिन क्यों था?
A5: समाज में महिला खेलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता था, संसाधनों की कमी थी और समर्थन बेहद सीमित था। इसके बावजूद खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत और हिम्मत से महिला क्रिकेट की नींव रखी।
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