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निर्माता गुलशन राय निर्मित, तथा यश चोपड़ा निर्देशित' दीवार' 1975 की वो सुपरहिट बॉलीवुड फिल्म है जो मुंबई के कठोर शहरी वातावरण और वास्तविकताओं में फंसे दो भाइयों की कहानी है. फिल्म विजय और रवि वर्मा पर आधारित है, जिनका जीवन बचपन के कई गहरे मानसिक आघात के अनुभव के बाद अलग-अलग दिशा पर चला जाता है.
कहानी उनके पिता आनंद वर्मा (सत्यन कप्पू) से शुरू होती है, जो एक सिद्धांतवादी ट्रेड यूनियन नेता हैं. वे गरीब मजदूरों के हक़ के लिए हमेशा लड़ते रहते हैं. लेकिन एक दिन उन्हे अपने आदर्शों से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ता है जब भ्रष्ट व्यवसायी उन्हे अगवा कर उनके परिवार को जान से मारने की धमकी देकर उनसे कुछ ऐसे कागज़ातों में जबर्दस्ती साइन करवा लेते हैं जिससे यह साबित होता है कि आनंद वर्मा खुद एक भ्रष्ट बेईमान यूनियन नेता है. जब मजदूरों को अपने नेता के भ्रष्ट और बेईमान होने का पता चलता है तो वे सब उसकी जम कर पिटाई कर देते हैं और उनके बड़े बेटे विजय (मास्टर अलंकार) के हाथों में गुदवा देते हैं कि 'मेरा बाप चोर है'. इस अपमान से विचलित होकर आनंद वर्मा अपना घर संसार छोड़छाड़ कर लापता हो जाता है. नन्हे विजय के दिल में यह घटना और हाथ में गुदवाए गए "मेरे पिता चोर हैं" गहरा आघात पहुँचाता है. वह अपनी योग्यता साबित करने और गरीबी से बचने की तीव्र इच्छा के साथ जूझता रहता है.
पति के लापता होने के बाद उनकी पत्नी सुमित्रा वर्मा (निरूपा राय) अपने बच्चों को लेकर मेहनत मजदूरी करने के लिए मुंबई की गंदी बस्ती में रहने लगती है. दोनों बच्चे उस बस्ती में बड़े होते है , विजय मजदूरी करके परिवार चलाता है और छोटे भाई रवि (मास्टर राजू श्रेष्ठा) को स्कूल में पढ़ने भेजता है. दोनों युवा हो जाते हैं. लेकिन जहां युवा विजय (अमिताभ बच्चन) अंदर ही अंदर समाज के प्रति गुस्से से भरा रहता है वहीं रवि (शशि कपूर) पढ़ाई लिखाई करते हुए अपने कॉलेज में, डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस नारंग (मनमोहन कृष्ण) की बेटी वीरा नारंग (नीतू सिंह) से प्रेम करने लगता है. दोनों भाइयों के रास्ते अलग अलग हो जाते हैं. क्रोध और गरीबी से मन ही मन जलता विजय अमीर बनने के लिए क्राइम की दुनिया में प्रवेश करके खूब पैसा कमाता है और आलीशान मकान, गाड़ी बना कर अपनी माँ और भाई को उसमें सारी सुख सुविधाओं के साथ रखता है, उधर रवि अपनी प्रेमिका के पिता की मदद से पुलिस में भर्ती हो जाता है. धीरे धीरे उसे पता चल जाता है कि उसका भाई क्राइम की दुनिया का बादशाह बन गया है. मां और रवि दोनों विजय को अपराध की दुनिया छोड़ने पर दवाब डालते हैं लेकिन वो नहीं मानता तब रवि और मां उसका बंगला गाड़ी छोड़ देते हैं. रवि माँ को लेकर अपने पुलिस क्वार्टर में रहने लगता हैं. फिल्म का सबसे दिल छूने वाला क्षण तब आता है जब रवि विजय से कहता है, "मेरे पास माँ है" (मेरे पास माँ है), यह पंक्ति भारतीय सिनेमा में आज भी प्रसिद्ध है.
मां के चले जाने से विजय अवाक्, दुखी और अकेलेपन के कारण एक वेश्या अनिता (परवीन बाबी) के पास जाने लगता है. दोनों में प्रेम हो जाता है. वो विजय के बच्चे की माँ बनने वाली होती है. इसलिए वो विजय से अपराध का रास्ता छोड़ने के लिए कहती हैं. विजय अपने अजन्में बच्चे के खातिर अपराध की दुनिया छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन तभी एक दिन विजय का एक बड़ा दुश्मन सामंत (मदन पूरी) विजय से बदला लेने के लिए अनीता की हत्या कर देता है जिससे विजय क्रोध में भरकर फिर से अपराध की दुनिया में शामिल हो जाता है. वो भगवान को भी नहीं मानता. लेकिन एक दिन उसे माँ के गंभीर बीमारी का पता चलता है, वो माँ से मिलना चाहता है लेकिन पुलिस की पहरेदारी की वजह से वह मां से नहीं मिल पाता है, तब वह पहली बार मंदिर जाकर भगवान से मां के लिए प्रार्थना करता है और मां आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो जाती है. विजय अपराध के दुनिया में आगे बढ़ने लगता है. उधर रवि को पुलिस के हाई कमान से ऑर्डर मिलता है कि वह विजय तथा अन्य गैंगस्टर की सफाया करे. ऑर्डर पाकर रवि अपना मुहिम चलाता है और विजय पर गोली चलाता है. गंभीर रूप से जख्मी विजय, कार द्वारा भागते हुए एक मंदिर के दीवार से टकरा जाता है, वहीं मंदिर में उसकी मुलाकात अपनी माँ से हो जाती है और वो माँ की गोद में दम तोड़ देता है. कहानी खतम, पैसा हजम.
यह फिल्म 1970 के दशक के भारत के सामाजिक-आर्थिक तनाव को शानदार ढंग से दर्शाती है. 'दीवार' ने उस समय मुंबई जैसे तेजी से बढ़ते शहरों में जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे लाखों भारतीयों की कठोर वास्तविकताओं का दर्पण प्रस्तुत किया. उस दशक में, विजय का चरित्र एक पूरी पीढ़ी की हताशा का प्रतीक बन गया था, एक ऐसा व्यक्ति जो अपने अतीत से परिभाषित होने से इनकार करता है. यह फिल्म बॉलीवुड में एक नए प्रकार के आक्रोश और रोबस्ट नायक के उदय होने का मिसाल बन गया. यह नए कलेवर का बॉलीवुड हीरो, समाज के उस प्रणाली के खिलाफ लड़ता है जिसने उसे बार-बार कुचला है. विजय वर्मा के चित्रण ने अमिताभ बच्चन को बॉलीवुड के "एंग्री यंग मैन" के रूप में इसी फ़िल्म से स्थापित किया, एक ऐसा व्यक्तित्व जो वर्षों तक भारतीय सिनेमा को परिभाषित करता रहेगा.
यह फ़िल्म 1957 की फ़िल्म मदर इंडिया और 1961 की फ़िल्म गंगा जमुना से प्रेरित है.
विजय और रवि के किरदार में फ़िल्म के निर्देशक यश चोपड़ा की पहली पसंद, विजय की भूमिका में देवानंद और रवि की भूमिका में राजेश खन्ना था. लेकिन सलीम जावेद अड़े थे की विजय की भूमिका में अमिताभ बच्चन को ही लिया जाए और रवि की भूमिका में शत्रुघ्न सिन्हा को लिया जाय. शत्रुघ्न ने जब रवि की भूमिका नहीं की तो नवीन निश्चल को यह रोल ऑफर किया गया, लेकिन जब नवीन ने भी मना कर दिया तो शशि कपूर को चुन लिया गया. निरूपा राय की भूमिका पहले वहीदा रहमान और फिर वैजयंती माला को दिया गया था. वहीदा इसलिए फिट नहीं बैठी क्योंकि उसी दौर की फ़िल्म 'कभी कभी' में वो अमिताभ की पत्नी बनी थी और वैजयंती माला ने नकार दिया. तब जाकर यह भूमिका निरूपा राय को चली गई और उन्होने इतिहास रच दिया.
फ़िल्म में विजय यानी अमिताभ बच्चन का लुक, पेट के नीचे गांठ मारा हुआ नीला शर्ट और खाकी पैंट बहुत प्रसिद्ध हुआ था, दरअसल टेलर की गलती से शर्ट लम्बा सिल गया था इसलिए उसे गांठ मारकर बांधा गया था जो एक फैशन ट्रेंड बन गया. बताया जाता है कि अमिताभ बच्चन ने इस फ़िल्म को ज्यादातर रात में शूट की क्योंकि उन दिनों वे दिन के समय फ़िल्म 'शोले' के लिए भी शूटिंग कर रहे थे.
उस दशक की इस फ़िल्म 'दीवार' ने न केवल भारतीय सिनेमा, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्म निर्माण को भी प्रभावित किया था. डैनी बॉयल जैसे हॉलीवुड निर्देशकों ने इसे एक प्रमुख प्रेरणा के रूप में कोट किया था और इसने हांगकांग सिनेमा में 'हिरोइक ब्लडशेड' शैली को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
फ़िल्म दीवार को कई फिल्मफेयर अवार्ड और नॉमिनेशन सहित कई अन्य पुरस्कार मिले, और इसे अब तक की सबसे बड़ी हिट कल्ट भारतीय फिल्मों में से एक माना जाता है. आज भी सलीम-जावेद द्वारा लिखित इस फ़िल्म और इसकी पटकथा को कहानी कहने की उत्कृष्ट कृति के रूप में अध्ययन किया जाता है.
जो चीज़ दीवार को वास्तव में उल्लेखनीय बनाती है वो है कि यह फिल्म एक बेहद अ-समान समाज में अस्तित्व, नैतिकता और सफलता के अर्थ को लेकर कठिन सवाल पूछती है.
तकनीकी रूप से भी यह फिल्म अभूतपूर्व थी.
हांगकांग मार्शल आर्ट सिनेमा से प्रेरित लड़ाई के दृश्य, पहले भारतीय फिल्मों में देखी गई किसी भी एक्शन फिल्म से भिन्न थे. अमिताभ बच्चन की लड़ाई शैली ने पारंपरिक भारतीय ढ़ीशूम ढ़ीशूम तकनीकों के साथ साथ कुंग फू-प्रेरित दाँव पेंच को भी मिश्रित किया, जो दशकों तक बॉलीवुड को प्रभावित करता रहा.
उस जमाने में यह भी कहा गया था कि अमिताभ बच्चन का किरदार असल जिंदगी में मुंबई के जाने माने अंडरवर्ल्ड शख्स हाजी मस्तान से काफी हद तक प्रेरित था. खबरों के मुताबिक इसकी पटकथा ने शानदार ढंग से हाजी मस्तान के वास्तविक जीवन की कहानी को एक सम्मोहक सिनेमाई अनुभव में बदल दिया.
सलीम-जावेद द्वारा लिखा गया फिल्म का वो डायलॉग "मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, तुम्हारे पास क्या है? मेरे पास माँ है" जैसी पंक्तियाँ इस फ़िल्म की शोहरत से भी आगे निकल गई और एक लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन गईं.
1975 की फिल्म दीवार में प्रसिद्ध आर.डी. बर्मन द्वारा रचित और साहिर लुधियानवी द्वारा लिखित उस युग के कुछ सबसे टॉप के पार्श्व गायकों द्वारा गाए गए छह यादगार गाने है,
"कहदूं तुम्हें, या चुप रहूँ" - गायक: किशोर कुमार और आशा भोंसले, एक रोमांटिक ट्रैक है जिसने फिल्म के भावनात्मक परिदृश्य को खूबसूरती से कैद किया है, 'इधर का माल उधर', गायक- भूपिंदर सिंह, एक अनोखा गीत है जो फिल्म की शहरी थीम को बखूब दर्शाता है, 'कोई मर जाए', गायिका आशा भोंसले और उषा मंगेशकर, एक चंचल गीत है.
'दीवारों का जंगल', गायक- मन्ना डे, एक सशक्त गीत जो फिल्म के शहरी संघर्ष का प्रतीक है
'मैंने तुझे माँगा, तुझे पाया है', गायक: किशोर कुमार और आशा भोंसले, ये एक और रोमांटिक ट्रैक है जो खूब लोकप्रिय हुआ था.
'आई एम फॉलिंग इन लव विथ अ स्ट्रेनजर' गायिका: उर्सुला वाज़ एक दिलचस्प अंग्रेजी भाषा का गाना जो अपने समय के लिए अनोखा था.
दीवार एक सुपर हिट फिल्म थी जिसका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन भारत में ही 75 मिलियन रुपए था जिसका आज का वैल्यू 4.17 बिलियन से भी ज्यादा है.
जंजीर (1973) और मजबूर (1974) की सफलता के बाद अमिताभ बच्चन बेहद स्टार बन गए थे, इसलिए 'दीवार' के लिए उनका जबरदस्त क्रेज था. फिल्म के प्रीमियर पर मरीन ड्राइव से लेकर मिनर्वा (मुंबई) तक फैन्स की लंबी कतारें लगी हुई थी और अमिताभ को लेकर दर्शकों का उन्माद देखते ही बनता था.
दिलचस्प बात यह है कि बहुत पहले सलीम जावेद ने दीवार की कहानी यश चोपड़ा को एक लाख में देने की पेशकश की थी लेकिन यश चोपड़ा ने इंकार कर दिया था. लेकिन जब सलीम जावेद की फ़िल्म 'जंजीर' हिट हो गई तो यश चोपड़ा ने उसी दीवार के लिए तीन लाख दिए दे दिए.
दीवार का मंदिर वाला दृश्य अमिताभ के लिए सबसे कठिन दृश्यों में से एक था. अमिताभ बच्चन सुबह 11 बजे से रात 10 बजे तक कमरे में बंद रहकर आईने के सामने रिहर्सल करते रहे. आख़िरकार यश चोपड़ा ने उनसे कहा कि अब काफी देर हो गई है उन्हें सीन शूट करना चाहिए. जब फिल्म रिलीज हुई तो यह हिंदी फिल्मों का सबसे आइकॉनिक सीन बन गया.
इस फिल्म में नीतू सिंह, शशि कपूर की प्रेमिका बनी थी, जबकि हकीकत के जीवन में वो शशि कपूर के भतीजे ऋषि कपूर की पत्नी थी.
फिल्म को कई पुरस्कार मिले, लेकिन सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार नहीं मिला क्योंकि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार संजीव कुमार को उसी साल आंधी (1975) के लिए मिला था.
फिल्म 'दीवार' स्टीवन श्नाइडर द्वारा लिखित संपादित "1001 मूवीज़ यू मस्ट सी बिफोर यू डाई" में शामिल है.
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के छोटे भाई का किरदार निभाने वाले शशि कपूर, दरअसल चार साल बड़े हैं अमिताभ से.
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