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नवदुर्गा के रूपों में देवी की यात्रा एक अद्भुत कहानी है, जो न केवल महिला के विभिन्न जीवनकाल को दर्शाती है, बल्कि समाज में उनके संघर्ष और शक्ति को भी उजागर करती है. ये रूप एक महिला के जीवन के विभिन्न पड़ावों और उसके आंतरिक तथा बाहरी संघर्षों को बयान करते हैं. आइए जानते हैं, नवदुर्गा के इन रूपों को और समझते हैं कि कैसे ये देवी का आंतरिक और बाहरी विकास दिखाते हैं.
शैलपुत्री – बेटी का रूप
देवी के जीवन की शुरुआत एक बेटी के रूप में होती है. ‘शैलपुत्री’, जो पर्वतों की बेटी हैं, यह रूप एक महिला के पहले संबंध को दर्शाता है. यह वो अवस्था है जब एक महिला घर में अपने परिवार और माता-पिता के प्रति स्नेह और श्रद्धा रखती है. ‘शैलपुत्री’ का रूप समाज के पहले और सबसे शुद्ध रिश्ते को दिखाता है यानी बेटी का रिश्ता.
ब्रह्मचारिणी – शिक्षा और विकास की यात्रा
‘शैलपुत्री’ के बाद देवी ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रकट होती हैं. यह रूप शिक्षा और आत्मविकास का प्रतीक है. इस अवस्था में देवी न तो अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होती हैं, न ही किसी शेर या बाघ पर सवार होती हैं. यह समय एक महिला के जीवन में ज्ञान अर्जन, आत्मनिर्भरता और स्वयं को समझने का होता है.
चंद्रघंटा – विवाह और समर्पण
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— αмιтα внσιя (@Amita_Bhoir) October 19, 2020
Navratri Day 3 -
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देवी का अगला रूप ‘चंद्रघंटा’ है, जो विवाह और समर्पण का प्रतीक है. ‘चंद्रघंटा’ अपने पति के चंद्रमा के साथ अर्धचंद्र (crescent moon) को साझा करती हैं, जो उनके वैवाहिक संबंधों को और उनके सामंजस्यपूर्ण जीवन को दर्शाता है. इस रूप में देवी का जीवन एक नई शुरुआत की ओर बढ़ता है, जहां वह समर्पण और सहयोग की भावना से भरी होती हैं.
कूष्मांडा – मातृत्व और सृजन
देवी के जीवन का अगला पड़ाव मातृत्व है, और इस रूप में देवी को कूष्मांडा कहा जाता है. ‘कूष्मा’ का अर्थ है ब्रह्मांड और अंडा (अर्थात ब्रह्मांड का अंडा). इस रूप में देवी सृजन की शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं, और वह संतान को जन्म देने वाली मातृत्व शक्ति को व्यक्त करती हैं. यह रूप एक महिला के जीवन में उसकी सृजनात्मकता और मां बनने के प्राकृतिक अधिकार को दर्शाता है.
स्कंदमाता – मातृत्व में गहराई और समर्पण
‘कूष्मांडा’ के बाद देवी स्कंदमाता बनती हैं, जो अपने बेटे स्कंद (कार्तिकेय) के साथ प्रकट होती हैं. यह रूप मातृत्व की गहराई और समर्पण का प्रतीक है. देवी स्कंदमाता के रूप में एक पूर्ण माता का रूप दर्शाती हैं, जो अपने बच्चों के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहती हैं. यह रूप मातृसत्ता और मां की शक्ति को प्रकट करता है.
कात्यायनी – आंतरिक संघर्ष और शक्ति
देवी का अगला रूप ‘कात्यायिनी’ है, जो महिषासुर के वध को दर्शाता है. महिषासुर, जो बाहरी पितृसत्ता और समाज के मानकों का प्रतीक है, के खिलाफ देवी का संघर्ष एक महिला के जीवन के आंतरिक और बाहरी संघर्षों को उजागर करता है. ‘कात्यायिनी’ रूप में देवी अपने आंतरिक संघर्षों से लड़ने और बाहरी दबावों का मुकाबला करने के लिए तैयार होती हैं. यह एक महिला की आत्मनिर्भरता और साहस का प्रतीक है.
कालरात्रि – आत्म-स्वीकृति और स्वतंत्रता
जब एक महिला सामाजिक मान्यताओं को तोड़ देती है और अपनी पहचान को पूरी तरह से स्वीकार कर लेती है, तो वह ‘कालरात्रि’ बन जाती है. कालरात्रि रूप में देवी की शक्ति का आंतरिक रूप प्रकट होता है, जहां वह न केवल अपने नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं को अपनाती हैं, बल्कि समाज के प्रत्येक रूप को अपने अंदर समाहित करती हैं. यह रूप महिला की शक्ति, स्वतंत्रता और आंतरिक संतुलन का प्रतीक है.
महागौरी – महिला सशक्तिकरण और प्रेरणा
जब एक महिला इन सभी जीवन के पड़ावों को पार कर जाती है, तो वह ‘महागौरी’ बन जाती है. ‘महागौरी’, जो महानता और सशक्तिकरण का प्रतीक है, एक महिला के जीवन की पूरी यात्रा को एक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करती है. वह अब समाज के लिए एक मार्गदर्शक बन जाती है, जो अन्य महिलाओं के लिए एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत बनती है. ‘महागौरी’ रूप में देवी महिला सशक्तिकरण और समाज के समग्र उत्थान की शक्ति को दर्शाती हैं.
सिद्धिदात्री – आशीर्वाद और शक्ति का दान
देवी के अंतिम रूप में वह ‘सिद्धिदात्री’ के रूप में प्रकट होती हैं. ‘सिद्धिदात्री’, जो शक्ति और आशीर्वाद की प्रदायिका होती हैं, महिला सशक्तिकरण का अंतिम रूप होती हैं. वह न केवल अपनी शक्ति का आशीर्वाद देती हैं, बल्कि समाज को उठाने और उसे समृद्ध करने की शक्ति भी प्रदान करती हैं. ‘सिद्धिदात्री’ रूप में देवी महिलाओं को और सम्पूर्ण समाज को जागरूक और सशक्त बनाती हैं.
नवदुर्गा के इन रूपों के माध्यम से देवी की जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि एक महिला का जीवन केवल बाहरी संघर्षों से नहीं, बल्कि आंतरिक संघर्षों और आत्मस्वीकृति से भी भरा हुआ होता है. ये रूप न केवल एक महिला के जीवन के विभिन्न पड़ावों को दर्शाते हैं, बल्कि वह कैसे अपनी शक्तियों को पहचानती है और समाज में एक प्रभावशाली भूमिका निभाती है, इसे भी प्रदर्शित करते हैं. देवी की यह यात्रा हर महिला के जीवन के विभिन्न अनुभवों और संघर्षों को एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में प्रस्तुत करती है.
by PRIYANKA YADAV