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जब Asha Bhosle जी ने कहा, बिना किसी वाद्य यंत्र के खुद बारिश की ध्वनि पैदा कर सकते है...

आज मुंबई में झमाझम बारिश हो रही है. खिड़की के पास बैठी मुझे बारिश की कभी धीमी और कभी तेज झर झर बरसते बूंदों की आवाज किसी संगीत की ध्वनि की तरह महसूस हो रही थी...

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Asha Bhosle
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आज मुंबई में झमाझम बारिश हो रही है. खिड़की के पास बैठी मुझे बारिश की कभी धीमी और कभी तेज झर झर बरसते बूंदों की आवाज किसी संगीत की ध्वनि की तरह महसूस हो रही थी. अचानक मुझे आज से कई वर्षो पहले, इसी बारिश के मौसम में, सुरों की रानी, आशा भोसले से एक अनोखी मुलाकात की याद आ गई. वो मेरी तीसरी मुलाकात थी स्वर की उस इंद्र धनुषी हस्ती आशा भोंसले के साथ, उनके प्रभुकुंज फ्लैट में. वो भी बरसात का मौसम था. आसमान काले बादलों से ढका हुआ था और मुंबई शहर मानो अपनी सांस रोके हुए थी. कुछ ही दिन पहले एक भोजपुरी/हिंदी संगीतकार का निधन हुआ था, जिसके साथ आशा जी, कुछ समय पहले ही काम कर चुकी थी. बेहद संवेदनशील आशा जी का मन बहुत भारी था. हम दोनों सोफे पर बैठे हुए थे. मानसून के बादल खिड़कियों पर रेंग रही थी, और कमरे की हवा ढेर सारी यादों और  एक अजब खामोश दर्द से भरी हुई थी. आशा जी की आँखों में उदासी थी. मैं इंटरव्यू शुरू करना चाहती थी, इधर उधर की बातों से माहौल बनाने की कोशिश कर रही थी लेकिन आशा जी बिल्कुल मूड में नहीं थी. रह रह कर वे उठ जाती, और खिड़की से बाहर देखने लगती थी. बड़े से कमरे के बीचोबीच, छत को थामें एक विशाल स्तंभ मानों किसी स्तूप की तरह खामोश खड़ा था.

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तभी बिना किसी चेतावनी के, बारिश शुरू हो गई - पहले तो बस कुछ हल्की बूँदें, लगभग ऐसा लगा जैसे आसमान हिचकिचा रहा हो. मैंने उनसे मौसम के बारे में कुछ पूछा था. वे अभी जवाब देने के लिए दो शब्द बोलना शुरू कर ही रही थी कि बारिश की धीमी लय को सुनकर रुक गई. उनकी नज़र फिर खिड़की से बाहर के भूरे आसमान पर चली गई. वह खड़ी हुईं और खिड़की की ओर चली गईं. धीमे से उन्होने हवा में लहराते पर्दे को एकदम एक तरफ सरका दिया. बारिश की आवाज़ बढ़ती गई, हमारे बीच के सन्नाटे को भरते हुए. टिप टिप टिप, बारिश की बूंदे एक लय के साथ खिड़की के बन्ने पर टपकने लगी तो आशा जी ने उस लय के साथ ताल मिलाते हुए अपनी उँगलियों को चुटकियां लेकर बजाने लगी. बूंदों की कोमल ‘टिप टिप’ से मेल खाते हुए, उनकी उँगलियों से आती चुटकी की आवाज़ लगभग सम्मोहित करने वाली थीं. जैसे-जैसे बारिश तेज़ होती गई, उन्होंने भी अपनी हथेलियों को आपस में रग‍डते हुए बिल्कुल तेज बारिश की आवाज़ की तरह धुन बजाया. मैं तो अवाक रह गई. किस खूबी के साथ आशा जी अपनी उँगलियों और हथेलियों से एक लय बनाते हुए ठीक बारिश की धुन को अपनी उँगलियों और हथेलियों से हुबहू उतारने लगी. कभी कम होती और कभी तेज होती ये दोनों आवाज़े, ऐसा लगा जैसे उनके अंदर की किसी गहरी भावना से बात कर रही हो.

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कुछ पलों के लिए ऐसा महसूस होने लगा जैसे बाहर की बारिश और उनके अंदर का संगीत एक हो गया हो. वे मेरी ओर मुड़ी, उनका चेहरा बारिश की हल्की बूंदों से जगमगा रहा था और वे बोली, 'आँखें बंद करके बारिश का मज़ा लो. शुरू में रिमझिम बारिश का अहसास, फिर से तेज़ होती जा रही बूंदों की आवाज़, बादलों की गड़गड़ाहट और अंत में बारिश रुकने की खामोशी. कोशिश करो तो इन बारिश की मीठी आवाज़ों को हम अपनी उँगलियों की चुटकियों से, हथेलियों के आपस में रगड़ने से और हल्की हल्की थापों से खुद बारिश की धुन जैसी ध्वनि पैदा कर सकते हैं. कमाल है न? कोई वाद्य यंत्र नहीं, कोई ध्वनि प्रभाव नहीं.'

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आशा जी बोले जा रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे बारिश ही उनका ऑर्केस्ट्रा बन गई हो और वह उसकी एकमात्र कंडक्टर हो. आशा भोंसले हर आवाज़, हर एहसास के लिए अपने दिल को खुला रखती हैं. उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, 'संगीत सिर्फ़ गाने में निहित नहीं है, यह हमारे और प्रकृति के बीच के हर सुर, हर शब्द, हर खामोशी को महसूस करने के एहसास है.'

उस दिन देखा मैंने, आशा भोसले जी के लिए हर पल एक राग है, हर ध्वनि एक छंद है, हर खुशी एक कोरस है. दुख में भी वे एक धुन खोज लेती हैं. उन्होंने कहा, 'जब आप ईमानदारी से गाते हैं, तो आपका दर्द और आपकी खुशी दोनों ही गीत का हिस्सा बन जाते हैं. लोग यही सुनते हैं.'

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आशा भोसले जी का मानना ​​है कि संगीत आत्मा से आना चाहिए. उन्होने कहा, 'मैंने हमेशा अपनी आत्मा से गाया है. यही मेरी माई और बाबा ने मुझे सिखाया है. अगर आप गीत को महसूस नहीं कर पा रहे हो, तो श्रोता भी इसे कभी महसूस नहीं कर पाएगा,' उन्होंने एक बार मुझसे कहा था.

आज भी, आशा जी का दिल बेचैन और जिज्ञासु है. उन्होने कहा था, "उम्र सिर्फ़ एक संख्या है. मैं अभी भी बहुत कुछ एहसास करना चाहती हूं, अपने मन पसंद का खाना बनाना, यात्रा करना, बस यूँ ही निकल पड़ना और मुक्त हवा में जीना पसंद करती हूँ. करने के लिए बहुत कुछ है, देखने के लिए बहुत कुछ है."

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आशा जी, कभी कभार खाना पकाने और करीबी दोस्तों के साथ अपने प्यार भरे बर्ताव के लिए मशहूर हैं. वे अक्सर दोस्तों और परिवार को घर के बने खाने के लिए आमंत्रित करती हैं. "खाना बनाना गाने जैसा है. आपको सही सामग्री, सही मूड और थोड़ा प्यार चाहिए," उन्होंने एक बार हँसते हुए कहा था.

आशा जी ने अपने जीवन में कई तूफ़ानों का सामना किया है, लेकिन वे हर तूफ़ान का सामना शांति और बुद्धि के साथ करती हैं. उन्होंने बहुत कम उम्र में, जिद करके, अपने से दुगनी उम्र के एक व्यक्ति से विवाह कर लिया और माता और बड़ी बहन लता मंगेशकर के क्रोध का कारण बनी. वैवाहिक जीवन त्रास से भरी हुई थी. पति अहंकारी, गुस्से वाले और शराबी थे. दोनों अलग हो गए. आशा जी ने अपने बच्चों को लगभग अकेले ही पाला, और साथ ही कई भाषाओं में हज़ारों गाने गाने की ताकत पाई. फिर बरसों बाद सुर सम्राट आर डी बर्मन जी से मन का मेल हुआ तो वे उनकी जीवन संगिनी बन गई. लेकिन अच्छे दिन कब ज्यादा समय चलते हैं? आर डी जी के निधन के बाद एक बार फिर वे अकेली हो गई.

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"ज़िंदगी एक गीत की तरह है. कभी यह खुशनुमा होती है, कभी उदास, जिंदगी बारिश की तरह भी होती है, कभी बूंदा बांदी, तो कभी हाहाकार मचाने वाली जल प्रलय, लेकिन आपको इसे पूरे दिल से गाना होता है, दिल से जीना होता है, चाहे कुछ भी हो."

उन्होंने वो बातें जो मुझसे कही थी. उस दर्शन ने मुझे भी जीवन में आगे बढ़ने में मदद की है.

आज, 91 साल की उम्र में भी आशा भोंसले जी अपने कमाल के संगीत और गीत प्रदर्शन के चलते चर्चा में हैं. जब उन्हें लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला तो उन्होंने कहा, 'यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है. जब तक मैं गा सकती हूँ, गाती रहूँगी.' वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं, अपनी यादें, अपनी रेसिपी, सब शेयर कर रही हैं और कभी-कभी अपने प्रशंसकों के लिए गा भी रही हैं. हाल ही में एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, 'हर दिन एक उपहार है. अपने मन का संगीत खोजें और इसे ज़ोर से गाने से न डरें.'

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आशा भोंसले के लिए, हर आवाज़ एक संगीत है, बारिश की बूंदे एक लय है, हर मुस्कान और हर आंसू एक कहानी है और हर दिन एक नया गाना है जिसे गाया जाना बाकी है. वह हमें सिखाती हैं कि संगीत हर जगह है - बारिश में, हमारी हँसी में, हमारे आँसुओं में. हमें बस सुनना आना चाहिए.

उँगलियों की चुटकियों से, हथेलियों के रगड़ने से और हल्की हल्की थापों से खुद बारिश की ध्वनि पैदा कर सकते है न? कोई वाद्य यंत्र नहीं, कोई ध्वनि प्रभाव नहीं...

बरसों पहले बारिश के लय को जिस तरह से आशा जी ने बिना वाद्य यंत्र के उंगलियों और थापों से सजाया था.
आज सोशल मीडिया में वैसे ही बारिश की मंथर और तेज लय को बिना किसी वाद्ययंत्र के ऑडियंस द्वारा हाथों से बजाने की कला का वीडियो वायरल हो रहा है.
एज़बेस्टर के छत पर बारिश के बूंदों के धार की आवाज, छत पर गेहूं गिराने की आवाज़ जैसी लगती है, यह भी बात कह कर हम मुस्कुराए थे.

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