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26 जनवरी 2025 को हम अपना 76वां 'गणतंत्र दिवस' मना रहे हैं. हमारे यहां 1950 को संविाान लागू होते ही पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया था. इस बार 76वें गणतंत्र दिवस को 'स्वर्णिम भारत विरासत और विकास' की थीम के साथ मनाया जा रहा है. ऐसे मौके पर हम बॉलीवुड की सही मायनों में पहली देशभक्त, दयालु व परोपकारी अभिनेत्री गीता बाली की चर्चा की जानी चाहिए. जिहोने अपने छोटे जीवन काल और 1962 के भारत चीन युद्ध के वक्त में जो मिसाले कायम की, वह अब तक एक भी बॉलीवुड स्टार नही कर पाया.
यॅूं तो पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई बॉलीवुड कलाकार बताते आए हैं कि वह कितने बड़े परोपकारी हैं. पर इन पर किसी को यकीन हुआ हो, ऐसा नजर नही आता. जबकि यह कलाकार जब भी किसी की मदद करते हैं या कोई परोपकार काम करते हैं, तो तमाम टीवी कैमरामैन व मीडिया का जमावड़ा पहले से इकट्ठा कर उसका जमकर प्रचार भी करते हैं, पर सच यही है कि यह सब जिस तरह से करते हैं,उससे लोगों को इन पर यकीन कम होता है, बल्कि लोगों को यह सब उनका महज तमाशा ही लगता है.
ऐसे दौर में और 76वें गणतंत्र दिवस के मौके पर देश की वास्तविक पहली परोपकारी व देशभक्त अभिनेत्री से मिलवाते हैं, जिनसे कभी अपने किसी काम का प्रचार नही किया. पर जो काम उसने करते हुए मिसाल कायम की थी,वह अब तक कोई और नहीं कर पाया.. यह अदाकारा कोई और नहीं बल्कि 1950 से 1964 के चैदह वर्ष के ही अल्प समय में 75 फिल्मों में अभिनय कर एक नया इतिहास रचने वाली गीता बाली थीं. जो कि कपूर खानदान की बहू यानी कि अभिनेता शम्मी कपूर की पहली पत्नी थी, जिनका महज 34 वर्ष की उम्र में चेचक की बीमारी से निधन हो गया था.
गीता बाली के अंदर दयालुता और लोगो की मदद करने का भाव उनके निजी जीवन के अनुभवों से आया था. 30 नवंबर 1930 को पंजाब पंजाब के सरगोधा, जो कि वर्तमान पाकिस्तान में पड़ता है, के एक साधारण सिख परिवार में हुआ था. गीता बाली के पिता करतार सिंह एक धार्मिक वक्ता और कीर्तन गायक के रूप में काम करते थे, जिसका मतलब था कि परिवार में हमेशा कुछ न कुछ होता था. फिर भी, वे सुखी जीवन जीते थे. बल्ले से ही उन्होंने प्रदर्शन कला में अपार प्रतिभा का प्रदर्शन किया. वह उस उम्र में अपने पिता के साथ उनके कीर्तन गायन में शामिल होने लगीं, जब वह उन शब्दों को भी नहीं समझ पाती थीं, जिन्हें वह खूबसूरती से गाती थीं. किंवदंती है कि इसी प्रथा के कारण उन्हें हरिकीर्तन कौर का नाम मिला. हालाँकि, बाद में उन्होंने अपना दिया हुआ नाम छोड़कर छोटा, अधिक प्रचलित स्क्रीन नाम अपना लिया. क्योंकि फिल्मों में उनका करियर अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंच गया. जबकि उनकी प्रसिद्धि और ग्लैमर का शिखर पूरी दुनिया को देखने को मिल रहा था, पर गीता बाली ने अभिनय क्षेत्र में कदम मजबूरी में रखा था.
पहले से ही बेहद गरीबी में डूबी हरिकीर्तन कौर और उनके परिवार की हालत तब और खराब हो गई जब उनके पिता को 40 के दशक में एक घातक बीमारी चेचक ने पकड़ लिया. संक्रमण तेजी से फैला और यहां तक कि उनकी आंखों की रोशनी भी चली गयी. अब लगभग अशिक्षित लड़की गीता को 12 साल की उम्र में ही परिवार की आय में योगदान देना शुरू करना पड़ा. सौभाग्य से उनके और उनकी अपार प्रतिभा के कारण, हरिकीर्तन को 12 साल की उम्र में एक बाल कलाकार के रूप में 1942 में एक फिल्म 'द काॅब्लर' में अभिनय करने का मौका मिला. फिर 1946 में रिलीज फिल्म 'बदनामी' से उन्हे पहचान मिल गयी. सुहागरात (1948) से मिली. बड़ी बहन (1949) में काम करने के बाद, बाली ने बावरे नैन (1950), अलबेला (1951), बाजी (1951), जाल (1952), आनंद मठ (1952) जैसी फिल्मों से खुद को 50 के दशक की अग्रणी महिला के रूप में स्थापित किया.), वचन (1955), मिलाप (1955), फ़रार (1955), जेलर (1958) और मिस्टर इंडिया (1961) वचन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. गीता बाली के अभिनय का कोई सानी नही था. उनके अभिनय की तारीफ उस वक्त के कलाकार व निर्देशक करते हुए नही थकते. यहां तक कि एक बार मीना कुमारी ने गीता बाली को लेकर कहा था, 'एक अभिनेत्री के रूप में गीता मुझसे अधिक निपुण हैं. उसका दायरा बहुत व्यापक है." गीता बाली इतनी लोकप्रिय हो गईं कि जब भी वह स्क्रीन पर आती थीं, तो भीड़ चिल्लाने लगती थी, 'गीता बाली, चाय की प्याली'.
बचपन से कठिनाइयों का अनुभव करती आयी गीता बाली अक्सर जरूरतमंद सहकर्मियों व अन्य जरुरतमंदो की मदद कियस करती थीं. बहुत कम लोगो को पता होगा कि गीता बाली ने गुरु दत्त को 1953 में फिल्म 'बाज' के निर्माण में पहले निर्माता और फिर हीरो बनने में मदद की. अभिनेता अनिल कपूर के पिता सुरिंदर कपूर गीता के सचिव थे. गीता बाली ने सुरिंदर कौर को फिल्म निर्माता बनने में भी मदद की. थिएटर करने वाले राजेश खन्ना उस बिल्डिंग में जाते थे जहां गीता का ऑफिस था. यह बात उनकी मृत्यु से कुछ माह पहले की है. उस वक्त गीता बाली राजिंदर सिंह बेदी के उपन्यास 'एक चादर मैली सी' पर आधारित अपनी आखिरी अधूरी फिल्म 'रानो' बना रही थीं. गीता बाली ने इस फिल्म अभिनय करने का प्रस्ताव राजेश खन्ना के सामने रखा था, पर तब राजेश खन्ना को अपने ज्योतिषी पर यकीन था जिसने कहा था कि बॉलीवुड में उनका भविष्य नही है. तब उसी भूमिका के लिए धर्मेंद्र को लिया गया था. इतना ही नही गीता बाली अपनी कमाई का 10 प्रतिशत अलग निकाल कर निर्देशक किदार शर्मा के ऑफिस में एक अलमारी में रख दिए. जब भी कोई जरूरतमंद व्यक्ति उनके पास आता था, तो वह किदार शर्मा को पैसे देने के लिए एक चिट लिखती थीं. एक बार केदार शर्मा ने याद करते हुए कहा था, 'जब उनकी मृत्यु हुई, तब भी 3,000 रुपये बचे थे.' 1962 में, चीन के साथ युद्ध के दौरान, उन्होंने सशस्त्र बलों के कल्याण के लिए स्थापित राष्ट्रीय रक्षा कोश में अपने सारे आभूषण दान कर दिये थे.
मतलब गीता बाली में दयालुता के साथ देशभक्ति कूट कूट कर भरी हुई थी. जब 1952 में गीता बाली को पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म 'आनंद मठ' करने का अवसर मिला, तो उन्होने इसमें अपने किरदार शांति से देशभक्ति की जो लौ फॅूंकी, उसके लिए वह हमेशा याद की जाती है. इतना ही नही देशभक्ति के उत्साह को इस फिल्म के गीत 'वंदे मातरम' ने भी बढ़ाया था, जिसे हिंदी सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ रचित गीतों में से एक माना गया है.
176 मिनट की अवधि वाली हेमेन गुप्ता निर्देशित ऐतिहासिक ड्रामा वाली फिल्म "आनंद मठ" 1952 में रिलीज हुई थी. यह फिल्म 1882 में बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध बंगाली उपन्यास आनंदमठ पर आधारित है. उपन्यास और फिल्म संन्यासी विद्रोह की घटनाओं पर आधारित है, जो 18वीं सदी के अंत में बंगाल में घटित हुई थीं. 2003 में 165 देशों में आयोजित बीबीसी वल्र्ड सर्विस पोल में, बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखित, हेमंत कुमार द्वारा रचित, लता मंगेशकर द्वारा गाए गए वंदे मातरम गीत को सभी समय के 'विश्व के शीर्ष दस' गीतों में दूसरा स्थान दिया गया था.
इसमें पृथ्वीराज कपूर, भारत भूषण, प्रदीप कुमार, गीता बाली और अजीत मुख्य भूमिका में हैं. प्रदीप कुमार ने इस फिल्म से हिंदी सिनेमा में अपनी शुरुआत की. तो वहीं संगीतकार हेमंत कुमार की भी यह पहली हिंदी फिल्म थी. हेमंत ने इससे पहले कुछ बंगाली सिनेमा में काम किया था. इस फिल्म के साथ, हेमन्त कुमार ने एस. मुखर्जी के फिल्मिस्तान स्टूडियो में संगीतकार के रूप में स्टाफ का पद संभाला. फिल्म को तमिल में 'आनंद मैडम' (आनंता मैडम) नाम से उबकर 1953 में रिलीज़ किया गया था.
फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर हेमंत कुमार द्वारा तैयार किया गया है, जो हिंदी सिनेमा में उनका पहला फिल्म स्कोर भी है. उल्लेखनीय गीतों में वंदे मातरम शामिल है, जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित गीत पर आधारित है. इस गीत ने पूरे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अंततः 1947 में स्वतंत्रता के समय इसे 'राष्ट्रीय गीत' घोषित किया गया. वंदे मातरम के लिए कुमार की धुन को अभी भी इस लोकप्रिय और व्यापक रूप से व्याख्या किए गए गीत का एक महत्वपूर्ण संस्करण माना जाता है. आजादी के बाद से उस समय हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित पाश्र्व गायिकाओं में से एक गीता दत्त ने इस फिल्म में करुणा से भरे गीत प्रस्तुत किए. इस फिल्म के बाद हेमंत कुमार और गीता दत्त ने कई वर्षों तक एक उपयोगी संगीत सहयोग शुरू किया.
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