Advertisment

जब पर्दे के रावण को गली-मुहल्ले के रावणो से डर लगता था

हिंदी सिनेमा और टीवी धारावाहिकों के रावण का जिक्र किया जाए तो सर्वाधिक पॉपुलर रावण रहे हैं अरविंद त्रिवेदी। रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण से पहले और बाद में कई 'रामायण' बनी हैं...

New Update
क
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

हिंदी सिनेमा और टीवी धारावाहिकों के रावण का जिक्र किया जाए तो सर्वाधिक पॉपुलर रावण रहे हैं अरविंद त्रिवेदी। रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण से पहले और बाद में कई 'रामायण' बनी हैं, इनदिनों भी सिनेमा के पर्दे के लिए बन रही एक बहुत महंगी रामायण चर्चा में रहती है। लेकिन, रावण का नाम लिया जाए तो जो तस्वीर आंखों के सामने बनती है वो है अरविंद त्रिवेदी की। तुलसी के रामचरित मानस के पन्नो से बाहर निकलकर जो ख्याति रावण के रूप में अरविंद त्रिवेदी को मिली वो किसी और को नहीं मिली।

इ

रावण के तेज और उसकी गर्जना  का महत्व तो वही लोग समझ सकते हैं जो 1987 में दूरदर्शन पर रामानंद सागर की 'रामायण' के प्रसारण का नजारा खुद अपनी आंखों से देखे हैं। सड़कें सूनी हो जाती थी ! अगर बिजली गयी तो पावर हॉउस जलाने के लिए लोग उद्दत हो जाते थे। नहा- धोकर घर के बुजुर्ग टीवी के आगे बैठ जाते थे और गांवों में...पूछिए मत एक टेलीविजन सेट के सामने पूरा गांव इकट्ठा होकर बैठ जाता था क्योंकि हर किसी के घर मे टीवी नहीं होता था। टेलीविजन टीआरपी बताने वाली संस्थाएं रिपोर्ट देती थी कि उस समय 'रामायण' सबसे ज्यादा देखा जाने वाला शो था और इसकी व्यूअर्स संख्या में अचंभित विस्तार तब होना शुरू हुआ जब पर्दे पर रावण की एंट्री हुई। लगता था लंका नरेश सामने आ जाता था...। रावण को ऐसा पोट्रेट करने वाले अभिनेता थे अरविंद त्रिवेदी !

ज

'रामायण' की शूटिंग उमरगांव वृंदावन स्टूडियो (गुजरात) में होती थी, अरविंद जी का परिवार मुम्बई में कांदिवली पश्चिम में पंचवटी बिल्डिंग में रहता था। मैं बहुत क्लोज था उनसे। वह मेरे प्रति काफी स्नेह रखते थे।जब वह मुम्बई में होते थे मुझे बुलवा लिया करते थे।  मुझे बुलवाना उनके लिए समस्या बन जाती थी। उनदिनों मैं सांताक्रुज में रहता था और एक दुकान का केयरऑफ फोन नम्बर मेरे पास होता था। जब अरविंद जी मुझे उस नम्बर पर फोन करके बुलवाते तब दुकान के लड़के उनको कहते- 'पहले रावण के टोन में ठहाका लगाओ, तब बुलाते हैं।' अरविंद जी मुझे कहते थे -'यार, तुम्हे फोन करने की कीमत मुझे चुकानी पड़ती है।' मैंने 'मायापुरी' में अरविंद जी का एक इंटरव्यू छापा था। उनदिनों रामायण की पॉपुलोरिटी पिक पर थी। पोस्ट ऑफिस वाले भर भर कर फैन मेल की कई कई बोरियां रोज लाते थे। रावण के रहवास में फैनमेल की चिट्ठियां रखने की जगह नही होती थी। गलियारे में चिट्ठी की बोरियां होती थी। जब उमरगांव शूटिंग से मुम्बई आते थे चिट्ठियां देखकर निहाल हो जाते थे, कहते थे- 'तुम्हारी 'मायापुरी' की माया है! आगे से इंटरव्यू में पता मत छापना, मैं पढ़ नहीं पाता हूं।"

ह

फिर उनकी पॉपुलोरिटी में डर का समावेश होने लगा।लोग उनके घर तक आ जाते थे। बिल्डिंग की सोसायटी के लोग उनकी प्रसिद्धि से डरने लगे। उनदिनों ना सोशल मीडिया था और ना ही आज के स्टारों की तरह प्रशासन की तरफ से कलाकारों को सुरक्षा दी जाती थी। 'रामायण' धारावाहिक पूरा होने तक अरविंद जी डर गए थे परिवार की सुरक्षा को लेकर। कहते थे-"मैं सिर्फ पर्दे का रावण हूं। इन गली मुहल्ले के रावणो से डर लगता है।"

बाद में वे गुजरात से बीजेपी के सांसद बने। गुजराती फिल्म बोर्ड के अध्यक्ष बने...अब दुनिया मे नहीं हैं। 6 ऑक्टोबर 2021 को उनका निधन हो गया। लेकिन, हर दशहरा पर मुझे उनकी कही बात याद आती है गली-मुहल्ले के रावणो के डर की।

म

Read More:

गुणरत्न सदावर्ते ने कंटेस्टेंट्स को दी भूख हड़ताल पर जाने की धमकी

खेल खेल में बॉक्स ऑफिस पर प्लॉप होने पर Aditya Seal ने दिया रिएक्शन

विद्या बालन को मंजुलिका के रूप में चुनने पर अनीस बज्मी ने दिया रिएक्शन

दादा साहब फाल्के अवार्ड के लिए धर्मेंद्र ने मिथुन चक्रवर्ती को दी बधाई

Advertisment
Latest Stories