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ताजा खबर: कास्ट: हर्षवर्धन राणे, सोनम बाजवा
निर्देशक: मिलाप मिलन ज़वेरी
मिलाप मिलन ज़वेरी को लेकर अब एक बात तो तय हो चुकी है — वो “मास सिनेमा” के दीवाने हैं, लेकिन उनके इस दीवानगी का कोई ठिकाना नहीं है. उन्होंने कभी कहा था कि ‘सत्यमेव जयते 2’ मनमोहन देसाई को श्रद्धांजलि थी. शुक्र है कि उन्होंने ये नहीं कहा कि ‘मस्तीज़ादे’ ऋषिकेश मुखर्जी से प्रेरित थी!अब वही मिलाप ज़वेरी लेकर आए हैं एक नई फिल्म — ‘एक दीवाने की दीवानियत’, जिसमें मुख्य भूमिकाओं में हैं हर्षवर्धन राणे और सोनम बाजवा.
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कहानी: जब प्यार का जुनून बन जाए स्लो-मोशन रोमांस
फिल्म की कहानी उतनी ही पुरानी है जितनी बॉलीवुड की घिसी-पिटी लव स्टोरीज़.यह कहानी है आरव (हर्षवर्धन राणे) की, जो एक बेचैन, अकेला और दर्दभरा प्रेमी है. उसकी जिंदगी तब बदलती है जब उसमें प्रवेश करती है मीराब (सोनम बाजवा) — एक रहस्यमयी लेकिन खूबसूरत युवती, जो उसे जिंदगी की धूप दिखाती है.लेकिन यहां प्यार का रास्ता सीधा नहीं है.आरव का प्यार धीरे-धीरे एक जुनून बन जाता है — वो जुनून जो प्यार से ज्यादा दीवानगी है.कहानी की शुरुआत में फिल्म रोमांस का माहौल बनाने की कोशिश करती है, लेकिन जल्द ही यह “धीमी चाल वाली त्रासदी” में बदल जाती है.मिलाप ज़वेरी शायद यह भूल गए कि धीमी गति में फिल्मांकन करने से इमोशन नहीं, धैर्य खत्म होता है.
यहां हर सीन, हर संवाद, हर आंसू जैसे स्लो मोशन में खिंचता चला जाता है.
निर्देशन: पुरानी सोच, नया भ्रम
मिलाप ज़वेरी का सिनेमा हमेशा से “ज्यादा बोलने” वाला रहा है — ज़ोरदार संवाद, ऊंची आवाज़ें, भारी-भरकम इमोशन. लेकिन इस बार उन्होंने आवाज़ कम की और स्लो मोशन बढ़ा दिया.‘एक दीवाने की दीवानियत’ उनके लिए शायद “पुराने ज़माने का रोमांस” दोबारा जिंदा करने की कोशिश थी, लेकिन यह कोशिश फिल्मी नहीं बल्कि थकी हुई लगती है.वो देसाई-शैली का सिनेमा, जिसमें अविश्वसनीय बातें भी विश्वास पैदा करती थीं, अब यहां सिर्फ बनावटीपन लगती हैं.डायलॉग्स जैसे —“मैं वो रावण हूं जो सीता को खुद घर छोड़कर आएगा.”
— सुनने में इतने ओवरड्रामैटिक लगते हैं कि दर्शक हंसी नहीं रोक पाते.ज़वेरी की हर फिल्म में एक “ओवरएक्टिंग यूनिवर्स” मौजूद होता है, और यहां भी वही दोहराव है — ऊंचे संवाद, बड़े इमोशन, लेकिन कोई गहराई नहीं.
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अभिनय: हर्षवर्धन राणे की मेहनत, सोनम की सुंदरता, और बाकी सब बेकार
हर्षवर्धन राणे को हाल ही में ‘सनम तेरी कसम’ के री-रिलीज़ के बाद एक नई पहचान मिली थी.इस फिल्म में उन्हें वह “हीरोइक-रोमांटिक” प्लेटफॉर्म मिला है जिसकी उन्हें जरूरत थी,लेकिन अफसोस, फिल्म की कहानी और ट्रीटमेंट इतने पुराने हैं कि उनका अभिनय भी बेअसर लगने लगता है.वो अपनी आंखों से दर्द दिखाने की कोशिश करते हैं, मगर कैमरा उस दर्द को बेमानी बना देता है.सोनम बाजवा खूबसूरत दिखती हैं, लेकिन किरदार में गहराई नहीं है.उनकी एंट्री शानदार है, लेकिन बाद में वह बस सजावट की वस्तु बनकर रह जाती हैं.
उनका और राणे का रोमांस ‘90 के दशक के म्यूजिक वीडियो’ जैसा महसूस होता है — सुंदर लेकिन खोखला.सचिन खेड़ेकर जैसे सीनियर एक्टर को देखकर दुख होता है कि उन्हें इतना फालतू रोल दिया गया है, जो न कहानी में कुछ जोड़ता है और न याद रह जाता है.
संगीत: फीका और भुला देने लायक
मिलाप ज़वेरी की फिल्मों की एक खासियत होती थी — जोशीले गाने और यादगार म्यूजिक.लेकिन इस बार म्यूजिक एल्बम पूरी तरह से निराश करता है.गाने रोमांटिक तो हैं, पर बेसुरे.एक समय के बाद आप महसूस करते हैं कि गाने कहानी को नहीं, आपकी धैर्यता की परीक्षा ले रहे हैं.
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तकनीकी पहलू और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी “पुराने रोमांस” का एहसास देने की कोशिश करती है, लेकिन विजुअल्स उतने ही बेजान लगते हैं जितनी कहानी.हर फ्रेम में नयापन खोजने की कोशिश की गई है, लेकिन वही ओवरड्रामैटिक कलर ग्रेडिंग और ज्यादा ग्लैमर सब बिगाड़ देता है.एडिटिंग कमजोर है. फिल्म की लंबाई 2 घंटे 25 मिनट है, लेकिन यह 3 घंटे से ज्यादा लंबी लगती है.दूसरे हाफ में तो फिल्म रेंगती सी लगती है.
कहानी का इमोशन कहां खो गया?
मिलाप ज़वेरी ने अपने शुरुआती दिनों में ‘कांटे’ जैसी फिल्म के लिए डायलॉग लिखे थे — जो ताजगी, तीखेपन और ह्यूमर से भरे थे.लेकिन तब से अब तक उनका सिनेमा “ओवरएक्सप्रेशन और क्लिशे डायलॉग्स” की कैद में फंसा हुआ है.उनके लिए “मास सिनेमा” का मतलब है चिल्लाना, रोना और स्लो मोशन में चलना.एक दीवाने की दीवानियत’ भी इसी फॉर्मूले का शिकार बनती है.ये फिल्म 30 साल पुरानी लगती है, और इसे देखना ऐसा है जैसे आप वीसीआर पर कोई भूली-बिसरी लव स्टोरी चला रहे हों.
क्या देखें या छोड़ दें?
अगर आप ‘आशिकी 2’, ‘कबीर सिंह’ या ‘रॉकस्टार’ जैसी इमोशनल लव स्टोरीज़ पसंद करते हैं, तो शायद यह फिल्म आपको निराश करेगी.क्योंकि यहां न इमोशन है, न जज़्बात, न गहराई — बस एक बनावटी दीवानगी.यह फिल्म हर्षवर्धन राणे के लिए एक प्लेटफॉर्म हो सकती थी, लेकिन यह फिल्म उन्हें ऊपर उठाने के बजाय नीचे खींचती है.सोनम बाजवा सुंदर हैं, लेकिन उनका किरदार बस पोस्टर तक सीमित है.मिलाप ज़वेरी को समझना चाहिए कि रोमांस को पुराना बनाने के लिए स्लो मोशन काफी नहीं — उसमें सच्चाई और आत्मा चाहिए.
FAQ
Q1. ‘एक दीवाने की दीवानियत’ फिल्म में मुख्य कलाकार कौन हैं?
Ans: फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं हर्षवर्धन राणे और सोनम बाजवा. दोनों की जोड़ी पहली बार इस रोमांटिक ड्रामा में नजर आई है.
Q2. फिल्म ‘एक दीवाने की दीवानियत’ का निर्देशन किसने किया है?
Ans: इस फिल्म का निर्देशन मिलाप मिलन ज़वेरी ने किया है, जो ‘सत्यमेव जयते’, ‘मरजावां’ और ‘मस्तीज़ादे’ जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं.
Q3. ‘एक दीवाने की दीवानियत’ किस जॉनर की फिल्म है?
Ans: यह एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म है जिसमें पुराने जमाने के इमोशन, प्यार और दीवानगी को मॉडर्न स्टाइल में दिखाने की कोशिश की गई है.
Q4. फिल्म की कहानी क्या है?
Ans: कहानी आरव (हर्षवर्धन राणे) और मीराब (सोनम बाजवा) के प्यार और पागलपन की है. आरव एक जुनूनी प्रेमी है जो अपने प्यार के लिए सब कुछ छोड़ देता है. लेकिन उसकी दीवानगी धीरे-धीरे एक खतरनाक जुनून में बदल जाती है, जो प्यार से ज्यादा दर्द देती है.
Q5. फिल्म की सबसे बड़ी खासियत क्या है?
Ans: फिल्म की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें हर्षवर्धन राणे को एक मजबूत रोमांटिक रोल मिला है और सोनम बाजवा की स्क्रीन प्रेज़ेंस शानदार है.इसके अलावा, यह फिल्म 22 साल बाद दिवाली पर रिलीज हुई A सर्टिफिकेट वाली लव स्टोरी है.
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