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Govinda former secretary Shashi Prabhu Death: गोविंदा (Govinda) के पूर्व सेक्रेटरी शशि प्रभु (Shashi Prabhu) का 6 मार्च 2025 को मुंबई में निधन हो गया हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शशि प्रभु (Shashi Prabhu Death) दिल की बीमारी से जूझ रहे थे और उनकी बाईपास सर्जरी हुई थी. गोविंदा मुश्किल घड़ी में उनके परिवार के साथ खड़े होने के लिए उनके घर पहुंचे. इस मौके की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए. एक तस्वीर में गोविंदा आंसू पोछते हुए नजर आ रहे हैं.
गोविंदा पूर्व सचिव के अंतिम संस्कार में रो पड़े
आपको बता दें सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में गोविंदा भीड़ में खड़े होकर अपने आंसू पोंछते दिख रहे हैं. शशि प्रभु की मौत की खबर दोपहर में गोविंदा तक पहुंची और बिना किसी हिचकिचाहट के वह तुरंत परिवार से मिलने वहां पहुंच गए. गोविंदा को रोता देख उनके फैंस भी भावुक हो गए.बताया जा रहा है कि गोविंदा के पूर्व मैनेजर का शाम 4 बजे उनके निरंजन सोसाइटी, चिकुवाड़ी, बोरीवली पश्चिम स्थित आवास पर निधन हो गया.
गोविंदा के बचपन के दोस्त थे शशि प्रभु
दरअसल हाल ही में गोविंदा के मौजूदा सचिव शशि सिन्हा ने शशि प्रभु के साथ एक्टर के रिश्ते के बारे में बात की. एक बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "वे गोविंदा के बचपन के दोस्त थे. शुरू से ही, उनके बीच बहुत करीबी रिश्ता था और कई सालों तक, उन्होंने गोविंदा के लिए काम भी किया. मैं उन्हें बाद में जान पाया. लेकिन गोविंदा के शुरुआती संघर्षों के दौरान, वे उनके लिए भाई की तरह थे. गोविंदा उन्हें भाई की तरह प्यार करते थे और उनका रिश्ता आज भी वैसा ही है". इसके साथ- साथ शशि सिन्हा ने यह भी बताया कि कैसे प्रभु गोविंदा के राजनीतिक करियर का हिस्सा थे. उन्होंने कहा कि प्रभु ने गोविंदा के राजनीतिक मामलों को संभालने में अहम भूमिका निभाई. जब उनसे पूछा गया कि क्या गोविंदा के राजनीति में आने का श्रेय प्रभु को दिया जा सकता है, तो सिन्हा ने इससे इनकार करते हुए कहा, "नहीं, ऐसा कुछ नहीं था."
जब शशि प्रभु ने गोविंदा के बारे में की थी बात
साल 2004 में एक इंटरव्यू में शशि प्रभु ने गोविंदा की राजनीतिक यात्रा के बारे में बात की और क्या उन्होंने उनका मार्गदर्शन किया. उन्होंने कहा था, "हां, मैं उन्हें सलाह देता हूं, लेकिन जोर देता हूं कि वे वही करें जो उन्हें सबसे अच्छा लगता है. मैं राजनीति में उनसे वरिष्ठ हो सकता हूं लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वरिष्ठ जूनियर से बेहतर हों. युवा और नए प्रवेशकों के पास हमेशा अपने विचार होते हैं. वरिष्ठों के पास ज़्यादा ज्ञान होता है, लेकिन युवा लोगों को आज की दुनिया का ज्ञान होता है".
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