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रेटिंगः डेढ़ स्टार
निर्माताः सिद्धार्थ रॉय कपूर, पवन कुमार बंसल
लेखकः बॉबी संजय, अब्बास दलाल, हुसेन दलाल, अरशद सय्यद, सुमित अरोड़ा
निर्देशकः रोशन एंड्यूज
कलाकारः शहीद कपूर, पूजा हेगड़े, पावेल गुलाटी, परवेश राणा, गिरीश कुलकर्णी, कुबरा सैट, अदिति संध्या शर्मा व अन्य..
अवधिः दो घंटे 36 मिनट
2013 में मलयालम फिल्म निर्देशक रोशन एंड्यूज ने मलयालम भाषा में फिल्म "मुंबई पुलिस" का निर्माण किया था, जिसे जबरदस्त सफलता मिली थी. उसी का अब हिंदी रीमेक 'देवा' लेकर खुद रोशन एंड्यूज आए हैं. इस तरह "देवा" रोशन एंड्यूज निर्देशित पहली हिंदी फिल्म है. हिंदी रीमेक लिए मूल फिल्म में बदलाव करते हुए फिल्म का क्लायमेक्स और शहीद कपूर के किरदार में थोड़ा सा बदलाव किया गया है. चर्चाएं गर्म हैं कि ऐसा शहीद कपूर के कहने पर किया गया, क्योंकि शहीद कपूर एक ऐसे पुलिस अफसर का किरदार नही निभाना चाहते थे, जो कि हिजडा हो.
स्टोरीः
फिल्म की कहानी देव अम्ब्रे उर्फ देवा नामक एक गुस्सैल पुलिस वाले की है, जो लगातार गुस्से में रहता है. तो वहीं सत्ता के नशे में चूर एक नेता आप्टे (गिरीश कुलकर्णी) भी है, जिसे नियमों का पालन करना पसंद नहीं. इस नेता नेता के गुंडों में घुस जाओ, और उसे चिल्लाकर मार डालो. फिल्म की शुरूआत देवा (शहीद कपूर) के एक्सीडेंट के साथ होती है. फिर शाहिद एक पार्टी में डांस करते हुए नजर आते हैं. धीरे धीरे पता चलता है कि यह मौका उनकी बहन अलका की शादी पुलिस विभाग के ही अफसर फरहान (परवेश राणा) संग होने का है. यहीं पर देवा की मुलाकात पुलिस विभाग में हवलदार के रूप में कार्यरत साठे की बेटी दिया साठे (पूजा हेगड़े) से होती है. कहानी आगे बढ़ती है,तो पता चलता है कि एक अपराधी प्रभात जाधव जेल से फरार है और शाहिद कपूर और उनकी टीम को उसे पकड़ना है. अब पुलिस विभाग मे किसी न किसी को गद्दार होना ही चाहिए, जो हर खबर प्रभात जाधव तक पहुँचता रहे. इधर देवा के काम करने का अपना तरीका है. इसी कै चलते उनकै खिलाफ खबर छपती है कि "देवा पुलिस अफसर या माफिया? पता चलता है कि यह खबर तो दिया साठे ने ही लिखी है. यहीं से देवा व दिया साठे के बीच रोमांस शुरू हो जाता है. इधर एक दिन जब प्रभात जाधव के यहां पुलिस दो तीन बाद दबिश देने जाती है. एक बार दबिश देने गयी पुलिस बल में खुद देवा भी मौजूद रहता है,पर इस बार कुछ सिपाही ,जिसमें हवलदार साठे भी है, बम विस्फोट में घायल हो जाते है. तब दिया साठे, देवा से कहती है कि पुलिस विभाग के अंदर ही कोई गद्दार है जो कि पुलिस के पहुँचने से पहले ही खबर प्रभात जाधव तक पहुंचा देता है और हर बार प्रभात जाधव बच निकलता है. एक दिन दिया कहती है कि उसकी जांच पूरी होने वाली है और वह बहत जल्द पुलिस विभाग के गद्दार का नाम बता देगी. इसके बाद देवा अपने भाई समान सहकर्मी पुलिस अफसर रोशन (पावेल गुलाटी) के साथ प्रभात जाधव के यहां छापा मारता है और रोशन की बंदूक से प्रभात जाधव की हत्या कर प्रभात जाधव का इनकाउंटर करने का श्रेय रोशन को देता है. अब रोशन को एक मई के दिन पुरस्कृत किया जाना है.पर पुरस्कार लेते समय ही रोशन की हत्या हो जाती है. इसकी जांच देवा को सौंपी जाती है. जब देवा सव तक पहुंच जाता है, तभी उसका एक्सीडेंट हो जाता है. एक्सीडेंट के बाद वह अपनी याददाशत खो बैठता है. लेकिन वह अपनी ट्रेनिंग नहीं भूला. उसका दिमाग अभी भी तेज चलता है. अंततः फरहान इस केस को हल करने के लिए देवा से कहता है. देवा नए सिरे से जांच पड़ताल शुरू करता है और अपनी रपट फरहान को सौंपता है.
रिव्यू:
रोशन एंड्यूज ने अपनी मूल मलयालम फिल्म का हिंदी रीमेक करते समय उसमें बदलाव कर गलती कर बैठे. इंटरवल तक फिल्म में कब क्या और क्यों हो रहा है,पता ही नहीं चलता. मगर इंटरवल के बाद फिल्म की कहानी गति बढ़ाती है. फिल्म शुरू होने के बाद पांच मिनट बाद ही शहीद कपूर का स्वैग वाला गाना दर्शकों को परेशान करके रख देता है कि आखिर फिल्म जा कहां रही है. इंटरवल से पहले फिल्म को बेवजह रबर की तरह खींचकर उबाउ बना दिया गया है. शहीद कपूर और पूजा हेगड़े के बीच कहीं कोई केमिस्ट्री ही नही है. दोनों के बीच का रोमांस जबरन ठॅूसा हुआ नजर आता है. अगर इस फिल्म से पूजा हेगड़े का किरदार हटा भी दे तो भी कहानी पर कुछ खास असर नहीं पड़ने वाला. फिल्म की गति काफी धीमी है. सस्पेंस को भी ठीक से लेखकों की लंबी चैड़ी फौज ठीक से नही लिख पायी. अधपकी कहानी व अधपके किरदारों से युक्त फिल्म 'देवा' में भावनाओ के लिए कोई जगह ही नही है. देवा के याददाश्त खोने के बाद देवा के मन में जो द्विविधा हे,वह फिल्म की कहानी की मूल जड़ हो सकती थी, पर लेखको ने सब कुछ गंवा दिया. पूरी फिल्म बहुत ही शुष्क है. फिल्म को बरबाद करने में निर्देशक की अपनी शैली भी कम जिम्मेदार नही है. वह फिल्म में न तो नए तरीके से नई कहानी कह पाए और न ही अपनी कहानी को ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा ही पाए. फिल्मकार ने फिल्म के हीरो को चैन स्मोकर यानी कि लगातार सिगरेट पीने वाला दिखाया गया है, जबकि इन दिनों स्मोकिंग के खिलाफ एक मुहीम चल रही है. कुछ द्रश्यों में कैमरामैन अमित रॉय का काम उभरकर आता है.
एक्टिंगः
देव आम्ब्रे उर्फ देवा के किरदार में एक बार फिर शहीद कपूर ने निराश ही किया है. वह अपराधी हैं, पर उनके चेहरे पर अपरोध बोध का कहीं कोई चिन्ह कभी भी नजर ही नहीं आता. शहीद कपूर अधिकांश द्रश्यों में ए कही तरह का सपाट चेहरा, शैलीबद्ध डिलीवरी में फंसकर उससे आगे नहीं निकल पाते हैं. फिल्म में पूजा हेगड़े, कुबरा सैट, पावेल गुलाटी और परवेश राणा सहित किसी भी कलाकार के हिस्से करने को कुछ आया ही नही, तो उनके अभिनय पर क्या चर्चा की जाए.
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