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रेटिंगः तीन स्टार
निर्माता: अदिति श्रीवास्तव
परिकल्पना: रिया छिब्बर
लेखक: शीतल कपूर, नेहा पवार और गुंजन सक्सेना
निर्देशक: अमित गुप्ता
कलाकार: राजेश तैलंग, शीबा चड्ढा, तान्या शर्मा, आदित्य शुक्ला, रमेश राय, परविंदर जीत सिंह, गौरव चक्रवर्ती, शाश्वत चतुर्वेदी व अन्य
अवधि: बीस से 27 मिनट के सात एपिसोड, कुल लगभग ढाई घंटे
ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5
मध्यमवर्गीय परिवार सदैव आर्थिक तंगी से लेकर कई तरह की चुनौतियों से जूझता रहता है, पर इन्हीं चुनौतियों के बीच उन्हें रिश्तों की मिठास बांधकर रखती है. इसी तरह के एक मध्यमवर्गीय परिवार की दास्तान को वेब सीरीज ‘बकैती’ में लेकर अमित गुप्ता आए हैं, जो कि एक अगस्त से ओटीटी प्लेटफार्म ‘जी 5’ पर स्ट्रीम हो रही है. मध्यमवर्गीय जीवन के इर्द-गिर्द घूमती यह वेब सीरीज आर्थिक तंगी के बीच भावनात्मक त्याग और पारिवारिक गतिशीलता को उजागर करती है.
स्टोरी:
यह कहानी है पुराने गाजियाबाद की अव्यवस्था के बीच ‘कटारिया कुटीर’ में रह रहे चार सदस्यों वाले कटारिया परिवार की. इस परिवार के मुखिया संजय कटारिया (राजेश तैलंग), उनकी पत्नी सुषमा (शीबा चड्ढा), बेटी नैना (तान्या शर्मा) और बेटा भरत उर्फ बंटी (आदित्य शुक्ला) हैं. इनके साथ नैना के नाना (रमेश राय) भी रहते हैं, जिन्हें मोबाइल की लत है. संजय कटारिया पेशे से वकील है, पर वकालत चल नहीं रही है. संजय का छोटा भाई अजय कटारिया (परविंदर जीत सिंह) पिता की पुश्तैनी फर्नीचर की दुकान चला रहा है. अमन की पत्नी और एक बेटा अमन (शाश्वत चतुर्वेदी) अलग मकान लेकर रह रहा है, जहां संजय के पिता भी रहते हैं. संजय हमेशा आर्थिक तंगी से जूझता रहता है. अंततः संजय मकान का एक कमरा किराए पर देने का फैसला करते हैं, जो कि नैना और भरत को मंजूर नहीं. क्योंकि किराएदार के आने के बाद नैना और भरत को एक ही कमरे में रहना पड़ेगा. इसलिए नैना और भरत अपने कई मतभेदों के बावजूद कमाई का जरिया बनाने के लिए बेहतरीन तरीके ढूंढते हैं, ताकि संजय अपने घर में किराएदार लेकर न आए. लेकिन नैना और भरत असफल हो जाते हैं. एक किराएदार चिराग (केशव साधना) का आगमन हो जाता है. लेकिन समस्याएं कभी खत्म नहीं होतीं. घर में लगे पानी के मीटर की तरह, जिसे समय पर बंद करना किसी को याद नहीं रहता, कटारिया परिवार का मतलब ही भूल गए हैं. वे एक-दूसरे पर इतनी जोर से हमला करते हैं कि एक-दो हत्याओं की आशंका होती है. भाई-बहन माचिस की तीली इतनी जोर से, इतनी तीखी और दर्दनाक तरीके से बजाने में माहिर हैं. चिराग भी जल्द ही मकान छोड़कर चला जाता है. कटारिया परिवार की चुनौतियां बरकरार रहती हैं. उधर संजय कटारिया के पिता के निधन के बाद अजय चाहता है कि ‘कटारिया कुटीर’ बेच दिया जाए, पर संजय कटारिया बेचना नहीं चाहते. भावनात्मक रूप से संचालित होने वाले बड़े भाई संजय और व्यावहारिक छोटे भाई अजय के बीच एक गहरी खाई है. नैना को मुंबई जाकर बड़े कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन करना है. नैना को आधी स्कॉलरशिप मिलने के बावजूद संजय उसे मुंबई पढ़ने भेजने में असमर्थ है. भरत को क्रिकेटर बनना है. पर आर्थिक तंगी के कारण सब कुछ गड़बड़ होता है.
रिव्यूः
रिया छिब्बर द्वारा परिकल्पित वेब सीरीज ‘बकैती’ की पूरी लेखकीय टीम यानी कि शीतल कपूर, नेहा पवार, गुंजन सक्सेना, तत्सत पांडे, गौरव मदान और प्रांजलि दुबे बेहतरीन स्क्रिप्ट के लिए बधाई के पात्र हैं. लेखकों ने मध्यम वर्गीय की अपनी समस्याओं और चुनौतियों का रेखांकन करते हुए अपरोक्ष रूप से समाज, सरकार और शिक्षा तंत्र पर कटाक्ष किया है. शिक्षा हर इंसान का हक है. पर कॉलेज की लंबी-चौड़ी फीस उच्च शिक्षा पाने का सपना देख रही नैना के पर कतरने का काम करती है. लेखकों की जोड़ी ने चुहलबाजी और नोंक-झोंक को जीवंत प्रस्तुति और तीखे संवादों से सजाने में कामयाब रही है. यह सीरीज एक तरफ परिवार के दिल में बसी रोज़मर्रा की उथल-पुथल और परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों से भरी निरंतर खींचतान को उजागर करती है. तो वहीं पानी के मीटर का अलार्म बजना, ‘पानी की टंकी फुल हो गई है’, बिजली का बिल और एसी लगाना है, हमेशा बैठे रहने वाले नाना जी (रमेश राय) की नोंक-झोंक, छत की सीढ़ियाँ और डाइनिंग टेबल की बातें इसके जरूरी लेकिन मज़ेदार पहलू हैं. सीरीज के निर्देशक अमित गुप्ता का दृढ़ विश्वास है कि भले ही उनके किरदार भड़कीले अंदाज में फूटते और बिखरते हों, लेकिन जब मुसीबत आती है, तो उनके बीच इतना प्यार है कि वे एकजुट हो जाते हैं. जबकि सातवें एपिसोड में जब सभी किरदार एक ही कमरे में मौजूद होते हैं, तब एक और जंग शुरू हो जाती है. कान फाड़ देने वाले झगड़े, अति-उत्तेजित भावनाएँ, यह अपरिहार्य संदेह कि ये लोग एक-दूसरे के बिना ही बेहतर हैं. लेखकीय टीम इस बात को रेखांकित करने में सफल रही है कि आर्थिक तंगी किस तरह एक मध्यमवर्गीय परिवार को भावनात्मक रूप से दिवालिया बना सकती है. सीरीज में हास्य के बीच मजबूरी में किए गए त्याग और समझौतों, चकनाचूर होते शैक्षिक सपनों और आसन्न विनाश की लगातार याद दिलाने के चलते उपजी चुनौतियाँ भी नजर आती हैं.
एक्टिंग:
परिवार की आर्थिक तंगी के साथ ही बच्चों के झगड़ों, पति की खामोशी आदि से जूझ रही एक मध्यम वर्गीय घरेलू महिला के किरदार में शीबा चड्ढा का अभिनय शानदार है. चड्ढा उस सीन में खास तौर पर कमाल की लगती हैं जहाँ वे अपने बच्चों के पीछे पड़ जाती हैं. वकील और आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को संभालने के लिए प्रयासरत अति भावुक तथा सदा गंभीरता का लबादा ओढ़े रहने वाले इंसान संजय कटारिया के किरदार में राजेश तैलंग याद रह जाते हैं. उन्होंने अपने किरदार को शालीनता और संवेदनशीलता के साथ परदे पर उकेरा है. ‘मिर्जापुर’ और ‘बंदिश बैंडिट्स’ के बाद राजेश तैलंग और शीबा चड्ढा तीसरी बार इस सीरीज में पति-पत्नी के किरदार में नजर आए हैं. बहन-भाई यानी कि नैना और भरत के किरदार में क्रमशः तान्या शर्मा और आदित्य शुक्ला तो सरप्राइज पैकेट हैं. दोनों ने कमाल की नेचुरल एक्टिंग की है. परस्पर विरोधाभासी स्वभाव और सदैव बात-बात पर लड़ते रहने के बावजूद नैना और भरत के बीच का तालमेल विश्वसनीय, मार्मिक और कभी-कभी उम्मीद की किरण जगाता है. अजय के किरदार में परविंदर जीत सिंह भी याद रह जाते हैं.
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