retro movie review

ताजा खबर:मूवी का नाम: रेट्रो


रिलीज की तारीख: 01 मई, 2025
रेटिंग : 3/5
अभिनीत: सूर्या, पूजा हेगड़े, जयराम, जोजू जॉर्ज, करुणाकरण, नासर, प्रकाश राज और अन्य
निदेशक: कार्तिक सुब्बाराज
निर्माता: ज्योतिका, सूर्या
संगीत निर्देशक: संतोष नारायणन
छायाकार: श्रेयस कृष्णा
संपादक: शफीक मोहम्मद अली

Retro Movie Review

'रेट्रो' सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि निर्देशक कार्तिक सुब्बराज के भीतर उठते सवालों का फिल्मी जवाब है. यह फिल्म जीवन के मकसद, सत्ता की सच्चाई और एक आम इंसान के भीतर छिपे असाधारण संघर्ष की कहानी है. मुख्य भूमिका में नज़र आते हैं अभिनेता सूर्या, जिन्होंने 'पारीवल कन्नन' का किरदार अपने दमदार अभिनय से जीवंत कर दिया है.

कहानी की शुरुआत 

Retro review:
फिल्म की शुरुआत एक दंतकथा जैसी होती है, जिसमें भगवान कृष्ण की कहानी सुनाई जाती है. इसी क्रम में हमें तूतीकोरिन के गैंगस्टर 'थिलगन' (जोजू जॉर्ज) और उनकी पत्नी 'संध्या' (स्वासिका) से परिचय होता है. एक विशेष दिन जन्मे एक बालक की कहानी धीरे-धीरे एक मार्मिक किंतु जटिल यात्रा में तब्दील होती है, जब वह बच्चा ‘पारी’ बनता है – थिलगन का बेटा, रुक्मिणी (पूजा हेगड़े) का प्रेमी और व्यवस्था से लड़ने वाला योद्धा.

तीन चरणों में बंटी फिल्म

Retro review
रेट्रो को तीन मुख्य हिस्सों में बाँटा जा सकता है – 'प्रेम', 'हँसी' और 'युद्ध'. पहले भाग में पारी अपने पिता और प्रेमिका के बीच फंसा होता है. दोनों का प्रेम शर्तों पर टिका है – एक चाहता है कि वह अपराध का रास्ता न छोड़े, और दूसरी चाहती है कि वह अपराध छोड़ दे. इस द्वंद्व में उसका आत्म-साक्षात्कार होता है.

दूसरा चरण – संघर्ष और समाज

Suriya's "Retro"
यह हिस्सा हमें जेलों और अंडमान की ओर ले जाता है, जहाँ फिल्म की गहराई और विस्तार बढ़ते है. निर्देशक कार्तिक सुब्बराज इस भाग में सामाजिक मुद्दों, खासकर तमिल ईलम की पीड़ा और शोषण की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं. यह 'जिगरठंडा' श्रृंखला की तीसरी किस्त जैसा लगता है – जहां फिल्म व्यक्ति नहीं, पूरे समाज को बदलने की कोशिश करती है.

अंतिम चरण – युद्ध और क्रांति


फिल्म का अंतिम हिस्सा युद्ध और विद्रोह से भरपूर है. यह 'मैड मैक्स', 'ग्लैडिएटर' और 'द हंगर गेम्स' जैसी फिल्मों की झलक देता है. पारी, अब नायक नहीं बल्कि क्रांति का चेहरा बन चुका होता है. हालाँकि यह भाग अत्यधिक अतिरंजित और कभी-कभी थकाऊ भी लगता है, लेकिन इसके पीछे छिपा सामाजिक संदेश स्पष्ट है – उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाना.

सूर्या का अभिनय और तकनीकी पक्ष


सूर्या का अभिनय फिल्म की आत्मा है. वह कभी भावुक, कभी आक्रोशित, तो कभी शांत और रहस्यमयी दिखाई देते हैं. उनका किरदार कई बार अति-नाटकीय लगता है, लेकिन सूर्या उसे संतुलन में रखते हैं.फिल्म के तकनीकी पहलू भी सराहनीय हैं – श्रेयास कृष्णा की सिनेमैटोग्राफी, संतोष नारायणन का संगीत और शफ़ीक़ मोहम्मद अली की एडिटिंग फिल्म को दृश्यात्मक रूप से समृद्ध बनाते हैं. 'इलैयाराजा' का एक गाना और 'रजनीकांत' को दिया गया श्रद्धांजलि-सीन दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान लाता है.

कमज़ोरियाँ और लेखन 


फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी ज़्यादा परतें और एकसाथ कई बातें कहने की कोशिश है. कई उपकथाएँ जैसे जयाराम का सबप्लॉट और अंडमान के खलनायक (नासर और माइकल) के हिस्से पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाते. कई बार फिल्म अपने ही अतिशयोक्ति के बोझ तले दबती नजर आती है.

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