vishal bhardwaj career
ताजा खबर: भारतीय सिनेमा के बहुमुखी कलाकार विशाल भारद्वाज का नाम फिल्म निर्देशन, संगीत रचना और लेखन में किसी परिचय का मोहताज नहीं है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विशाल का पहला सपना क्रिकेटर बनने का था. उत्तर प्रदेश के बिजनौर में 4 अगस्त 1965 को जन्मे विशाल ने अपने जीवन की शुरुआत एक खिलाड़ी के रूप में की थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें बॉलीवुड का चमकता सितारा बना दिया.
क्रिकेट से संगीत तक का सफर
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विशाल का बचपन मेरठ में बीता और यहीं उन्होंने अंडर-19 स्टेट लेवल क्रिकेट खेला. क्रिकेटर बनने के अपने सपने को लेकर वह काफी गंभीर थे. लेकिन एक टूर्नामेंट से पहले अभ्यास के दौरान उनके अंगूठे की हड्डी टूट गई, जिससे उनका खेल करियर वहीं रुक गया. इस हादसे के बाद उन्होंने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और फिर संगीत और सिनेमा की ओर उनका झुकाव बढ़ा.
पिता की प्रेरणा और पहला मौका
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विशाल के पिता भी संगीतकार थे और उन्होंने बेटे को संगीत सीखने की सलाह दी. मात्र 17 साल की उम्र में विशाल ने एक गीत की धुन बनाई जिसे सुनकर उनके पिता ने संगीतकार ऊषा खन्ना से संपर्क किया. ऊषा खन्ना ने उस धुन को फिल्म 'यार कसम' (1985) में इस्तेमाल किया. इसके बाद विशाल ने दिल्ली आकर ग्रेजुएशन किया और म्यूजिक रिकॉर्डिंग कंपनी में काम शुरू किया.
गुलजार से मुलाकात और संगीत का सफर
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दिल्ली में ही उनकी मुलाकात दिग्गज गीतकार गुलजार से हुई, जिनके साथ उन्होंने 'चड्डी पहन के फूल खिला है' गीत पर काम किया. 1995 में विशाल ने फिल्म 'अभय' से संगीतकार के तौर पर डेब्यू किया, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली फिल्म 'माचिस' (1996) से. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर आरडी बर्मन अवॉर्ड भी मिला.इसके बाद उन्होंने 'सत्या', 'हू तू तू', 'गॉडमदर', 'चाची 420', 'सात खून माफ', 'डार्लिंग्स' और 'खुफिया' जैसी फिल्मों में संगीत दिया और कई पुरस्कार अपने नाम किए.
निर्देशन में पहला कदम – ‘मकड़ी’
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2002 में विशाल ने फिल्म 'मकड़ी' से निर्देशन की दुनिया में कदम रखा. यह फिल्म बच्चों के लिए थी और इसका आइडिया एक क्रिकेट मैच हारने के बाद दोस्तों के बीच हुई मज़ाकिया बातचीत से आया. फिल्म को खूब सराहा गया और यहीं से विशाल का निर्देशन करियर शुरू हुआ.
निर्देशन में शेक्सपीयर की छाप
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विशाल भारद्वाज ने ‘मकबूल’, ‘ओंकारा’ और ‘हैदर’ जैसी शेक्सपीयर के नाटकों से प्रेरित फिल्में बनाईं, जिन्हें भारतीय सिनेमा की धरोहर माना जाता है. इसके अलावा ‘कमीने’, ‘सात खून माफ’, ‘मटरू की बिजली का मंडोला’, ‘रंगून’ और ‘पटाखा’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर वे प्रशंसा बटोर चुके हैं.
अवार्ड्स
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विशाल भारद्वाज भारतीय सिनेमा के उन गिने-चुने फिल्मकारों में से एक हैं जिन्होंने निर्देशन, लेखन और संगीत के क्षेत्र में शानदार योगदान दिया है. अपने अद्भुत कार्यों के लिए उन्हें समय-समय पर कई राष्ट्रीय और फिल्मफेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया है. उन्होंने अब तक 9 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतकर एक अनूठा कीर्तिमान स्थापित किया है.साल 1996 में उन्हें फिल्म 'माचिस' के लिए न्यू म्यूज़िक टैलेंट के रूप में फिल्मफेयर आर.डी. बर्मन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके बाद 1999 में फिल्म 'गॉडमदर' के लिए उन्हें बेस्ट संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
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2006 में विशाल को 'ओंकारा' के लिए स्पेशल जूरी अवॉर्ड से नवाजा गया. वहीं, 2007 में उनकी फिल्म 'द ब्लू अम्ब्रेला' को सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ.2010 में फिल्म 'इश्किया' के लिए उन्हें बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. 2014 में 'हैदर' के लिए उन्हें न सिर्फ बेस्ट म्यूजिक डायरेक्शन बल्कि बेस्ट स्क्रीनप्ले का राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ.2015 में उनकी फिल्म 'तलवार' को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2021 में '1232 KMS' नामक डॉक्यूमेंट्री के लिए उन्हें एक बार फिर बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
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2022 में 'फुर्सत' नामक शॉर्ट फिल्म के लिए उन्हें नॉन-फीचर फिल्म सेक्शन में बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.इसके अलावा 2016 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया, जो कि राज्य सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है.
रेखा भारद्वाज से जीवनसाथी तक का सफर
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विशाल की मुलाकात कॉलेज के एक फंक्शन के दौरान गायिका रेखा भारद्वाज से हुई. दोनों की दोस्ती हुई, फिर प्यार और 1991 में दोनों ने विवाह कर लिया. रेखा आज भी उनके साथ संगीत और जीवन दोनों में साथी बनी हुई हैं.
मूवी
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गाने
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