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Early days of Indian television: दूरदर्शन की दुनिया की शुरुआती बादशाहत, जिन्होंने टीवी को दिया एक बड़ा ठांव

भारत में दूरदर्शन ने टेलीविजन की दुनिया को एक नई दिशा दी। 1959 में जब इसकी शुरुआत हुई, तब यह सिर्फ़ कुछ घंटों के प्रसारण तक सीमित था। धीरे-धीरे समाचार, कृषि कार्यक्रमों और फिर मनोरंजन धारावाहिकों के ज़रिए दूरदर्शन ने पूरे देश में अपनी पकड़ मजबूत की।

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Early days of Indian television
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बात साल '83-'84 की है। मुझे एक पत्रिका के लिए 'टेलीविजन विशेषांक' निकालने का दायित्व मिला था। तेजी से उभरती पत्रिका थी 'मूवी जगत' जो मायापुरी के ही इलाके से गुलाब हाउस द्वारा प्रकाशित होती थी। पत्रिका के संपादक एच. आई. पाशा ने मुझसे कहा- "दूर दर्शन की दुनिया नई नई है, तुम्हारी भी पत्रिकारिता में नई शुरुआत है, कवर करोगे? और, हमने टीवी विशेषांक पर काम करना शुरू कर दिया। मुझे याद है उस समय बॉम्बे दूरदर्शन में एंटरटेनमेंट की कार्यकारी जिम्मेदारी संभालते थे मिस्टर एस एस तातारी। जब मैंने  वर्ली के दूरदर्शन ऑफिस में उनसे संपर्क किया, वह बहुत प्रसन्न हुए, बोले- "मैं सभी सीरियल मेकरों से तुम्हे मिलवा दूंगा। तुम लोगों को बता सकते हो कि मनोरंजन की दुनिया को डीडी नई दिशा देने जा रहा है।" फिर मैं उनके रिफरेंस से ही उनदिनों सक्रिय कई टीवी सीरियल निर्माताओं से उनकी शूटिंग सेट पर मिलता गया था। इनमें कुछ एअर पर थे, कोई मेकिंग की तैयारियों में थे और कइयों के प्रसारण में विलंब हुआ था। उस टीवी विशेषांक आयोजन में मेरे सहयोगी थे फिल्म डिवीजन के स्व. मुकेशचंद्रा और शिवजी गुप्ता। (Golden era of Doordarshan and Indian television journalism)

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Doordarshan

दरअसल यह शुरुआत का दौर था हिंदी टीवी धारावाहिकों का। धारावाहिक 'हमलोग', 'बुनियाद', रामायण, महाभारत, व्योमकेश बक्शी आदि की खूब चर्चा रहा करती थी। ये उस समय एयर पर थे या फिर मेकिंग में थे। आइए, एक नजर दौड़ाते हैं उन धारावाहिकों पर जो उस दौर में खूब न्यूज बनते थे, वैसे ही जैसे इनदिनों फिल्म से हटकर ओटीटी पर चर्चा हुआ करती है। ये वे धारावाहिक थे जिन्होंने भारत मे मनोरंजन करने  के परंपरागत रिवाज को ही बदल दिया।

हमलोग:

यह भारत में पहला हिंदी धारावाहिक था।साल 1984-85 के दौरान 154 कड़ियों तक चलनेवाले इस श्रृंखला के निर्देशक थे पी.कुमार वासुदेव और लेखक थे हिंदुस्तान साप्ताहिक के संपादक मनोहर श्याम जोशी। परिवार की जिंदगी-खुशियां, संघर्ष, सामाजिक मुद्दे के कथानक वाले इस सीरियल के पात्र दादाजी, दादी, बसेसर राम, भागवंती, बड़की और चुटकी सब खूब पॉपुलर हो गए थे। सीरियल के अंत मे दादामुनि अशोक कुमार प्रकट होकर कुछ जुमले बोलने के साथ अगले हफ्ते की जानकारी देते कहते थे- "..और, देखेंगे हमलोग !" (History of 1980s Doordarshan special magazine issue)

Hum Log (TV Series 1984–1985)

बुनियाद :

'शोले' जैसी फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी उनदिनों धारावाहिक 'बुनियाद' को लेकर खबरों में थे।इस कथा श्रृंखला में भारत बटवारे की पृष्ठभूमि में एक पंजाबी परिवार की कहानी खूब पसंद की गई थी। 'हमलोग' के बाद 'बुनियाद' घर घर की पसंद बन गया था। हवेली राम- आलोकनाथ, अनिता कंवर, राजेश पुरी जैसे पात्र खूब पॉपुलर हुए थे। (Story behind Movie Jagat magazine’s TV edition)

बुनियाद: Buniyaad

मालगुडी डेज:

आर के नारायण की कहानियों पर बना धारावाहिक 'मालगुडी डेज' की कहानी एक काल्पनिक कस्बे मालगुडी की थी, जो 1986 में प्रक्षेपित हो पाया था। धारावाहिक के निर्देशक थे शंकर नारायण, इसमें दक्षिण भारत की झलक मिलती थी।

मालगुडी के दिनों की ओर वापसी! - wizkidscarnival

रामायण :

रामानंद सागर की रामायण की कहानी तो सर्वव्यापी है ही, इसके सभी कलाकार अमर हो चुके हैं। राम (अरुण गोविल), सीता (दीपिका चिखलिया) और रावण (अरविंद त्रिवेदी) तो बाद में संसद सदस्य भी बनें। राम- अरुण गोविल तो वर्तमान में मेरठ से सांसद हैं, यह रामायण धारावाहिक की पॉपुलोरिटी ही है। जब यह धारावाहिक टेलिकास्ट होता था, सुबह 9 बजे सड़कें सुनी हो जाती थी।आज भी कोई दूसरा धारावाहिक उतनी टीआरपी नहीं ला पाया है। (S. S. Tatari and the rise of Doordarshan entertainment shows) 

रामायण (टीवी धारावाहिक)

महाभारत :

'रामायण' अगर सागर आर्ट्स को अमर कर गयी है तो 'महाभारत' ने बीआर चोपड़ा को अमर कर दिया है। रामायण प्रक्षेपण के एक साल बाद (1988-89) दूरदर्शन ने दर्शकों के सामने एक और बम्पर प्रोग्राम पेश किया था। तकनिकी विशेषता के साथ महाभारत गाथा को घर घर मे जिस तरह देखा गया, वो करिश्माई ही कहा जाएगा। मनोरंजन को टीवी ने नया प्लेटफॉर्म दे दिया ये वो दौर था। 'मायापुरी' पत्रिका ने उस दौर में रामायण और महाभारत के विशेषांक निकाला था। पिछले दिनों जब महाभारत के कर्ण  पंकज धीर की मृत्यु हुई, उनकी शव-यात्रा में लोगों की भीड़ याद दिला रही थी कि महाभारत के पात्र कितने पॉपुलर रहे हैं। (Early era of Indian TV serial production and broadcast delays)

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सुरभि :

सिद्धार्थ काक और रेणुका शहाणे द्वारा प्रस्तुत किया जानेवाला शो 'सुरभि',  पहला कल्चरल शो था जिसमे भारत की संस्कृति, विविधता का कलात्मक प्रदर्शन होता था। यह एक हटकर बना शो था।

Surabhi (TV Series 1993– )

तमस : 

भिष्म साहनी के उपन्यास पर आधारित सीरियल 'तमस' का निर्देशन गोविंद निहलानी ने किया था। विभाजन की बहती आग के बीच साम्प्रदायिक तनाव और स्थितियों को बतानेवाला यह पहला शो था।

Circle of the same tamas - NavBharat Times Blog

व्योमकेश बख्शी:

शरदेंदु बंद्योपाध्याय की कहानी को निर्देशित किया था बासु चटर्जी ने। रजत कपूर की मुख्य भूमिका थी।  इस धारावाहिक में बंगाली चरित्रों का उत्कृष्ट प्रदर्शन था। (Evolution of Indian TV serial makers and their creative journey)

Byomkesh Bakshi (2010) - IMDb

फौजी :

आज के सुपर स्टार शाहरुख खान भी दूरदर्शन की ही देन हैं। फौजी सीरियल के शाहरुख खान को देखकर कहा भी नही जा सकता था कि यह आदमी इतना बड़ा स्टार बन जाएगा। सेना की ट्रेनिंग की कहानी वाले इस सीरियल के निर्देशक थे रवि राय।

Prime Video: Fauji - Hindi

उड़ान:

'उड़ान' धारावाहिक की निर्देशिका थी कविता चौधरी। यह धारावाहिक कल्याणी नाम की एक लड़की के संघर्ष की कहानी थी जो हर बाधा को पार करती है।

Udaan (TV Series 2014–2019) -

FAQ

प्रश्न 1. दूरदर्शन पर मनोरंजन आधारित कार्यक्रमों की शुरुआत कब हुई?

दूरदर्शन ने मनोरंजन आधारित धारावाहिकों का प्रसारण 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू किया। इससे पहले इसका ध्यान मुख्यतः समाचार, शिक्षा और कृषि जैसे विषयों पर केंद्रित था।

प्रश्न 2. एस. एस. तातारी कौन थे और उनका योगदान क्या था?

एस. एस. तातारी उस समय बॉम्बे दूरदर्शन में एंटरटेनमेंट के कार्यकारी अधिकारी थे। उन्होंने कई नए टीवी निर्माताओं को प्रोत्साहन दिया और मनोरंजन जगत में दूरदर्शन को नई दिशा दी।

प्रश्न 3. ‘मूवी जगत’ पत्रिका का टीवी विशेषांक क्यों खास था?

साल 1983–84 में प्रकाशित मूवी जगत का “टेलीविजन विशेषांक” भारतीय टेलीविजन के उभरते दौर का ऐतिहासिक दस्तावेज़ बना। इसमें कई चर्चित सीरियल्स, निर्माताओं और शूटिंग सेट्स की झलक दी गई थी।

प्रश्न 4. प्रिंट मीडिया ने दूरदर्शन के विकास में क्या भूमिका निभाई?

मूवी जगत और मायापुरी जैसी पत्रिकाओं ने दूरदर्शन के कार्यक्रमों को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने टीवी कलाकारों और सीरियल्स की कहानियाँ, साक्षात्कार और बिहाइंड-द-सीन कवरेज प्रकाशित की।

प्रश्न 5. दूरदर्शन उस समय के अन्य टीवी चैनलों से अलग कैसे था?

दूरदर्शन के कार्यक्रमों में संस्कृति, शिक्षा और पारिवारिक भावनाओं की सादगी और सच्चाई झलकती थी। यह आज के व्यावसायिक चैनलों की तुलना में अधिक भावनात्मक और सामाजिक रूप से जुड़ा हुआ माध्यम था।

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