युधिष्ठिर का नाम लेते ही महाभारत की याद आती है! एक युधिष्ठिर और भी हुए हैं! मशहूर भी थे/हैं!
पढ़े लिखे भी थे ,पढ़ाते भी रहे हैं! मंच पर अदाकारी से भी अनभिज्ञ नहीं थे! धार्मिक भी कमाल के मार्क्सवादी विचारधारा की धारणाओं से लगाव! जेल भी गए पर न तो अपराधी, न ही नेता!
ये युधिष्ठिर पंजाबी थे परन्तु दुनिया के भी थे!
अभिनेता उमर शरीफ़ के चहेते भी थे, टैगोर को भी प्रिय थे!
पॉलिटिक्स से कुछ लेना देना नहीं था परन्तु फिर भी एक नेता के लिए प्रचार करते देखे गए!
राज कपूर की तरह मशहूर तो नहीं थे परन्तु अदाकारी के ध्रुव सितारे भी थे!
चलो बता ही देता हूँ… बलराज साहनी का असली नाम युधिष्ठिर था!
71 की लोक सभा की इलेक्शन में चंडीगढ़ में इंदिरा गांधी के "ग़रीबी हटाओ" के नाहरे से प्रभावित हो कर बलराज साहनी प्रचार करते ऐसे घूमते रहे जैसे ननिहाल आए हों!
हर जगह पंजाबी बोलते कहते रहे-पंजाबी बोल कर अपनी ज़ुबान मीठी कर रहा हूँ!
हमारे आग्रह पर वो हमारे कॉलेज भी पधारे! रास्ते में मेरी बातों को सुन, कहने लगे
-तू अच्छा लिख सकता है! लिखा कर!
बलराज साहनी को "दो बीघा ज़मीन" से पहचान मिली! उनकी अदाकारी का लोहा आमिर खान ने भी माना और कहा- यदि मैं उन जैसी 10 परसेंट भी एक्टिंग कर सकूँ तो अपने को सफल मानूँगा!
'गर्म हवा' में उनकी अदाकारी चरम सीमा को छू लेती है! काबुलीवाला, में अदाकारी से पता चलता है कि पिता क्या होता है!
टैगोर के कहने पर उन्होंने पंजाबी में लिखा। सभी पुस्तकें पढ़ने वाली हैं परन्तु "गैर जज़्बाती डायरी" (ਗੈਰ ਜਜ਼ਬਾਤੀ ਡਾਇਰੀ ) तो शाहकार है!
मार्क्सवादी विचारधारा की धारणा उनके मन में बसी हुई थी! घर में गुरू ग्रंथ साहब का प्रकाश भी था!
उनके निधन पर ख़ुशवंत सिंह ने लिखा था-
वह इस दुनिया में 1 मई को आये, जो कि लेबर डे है! उन्होंने 13 अप्रैल को स्वर्ग में निवास किया, जो खालसा पंथ की उत्पत्ति है! क्या वह मार्क्सवादी थे या दिल से सिख थे, ये हमेशा एक रहस्य रहेगा!
आज के दिन महान कलाकार बलराज साहनी ने दुनिया को अलविदा कहा था!
Story By Omprakash
Tags : Balraj Sahni
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