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Gulshan Bawra Death Anniversary: गीतकार या अभिनेता बनने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा

निर्धारित समय पर गीतकार अभिनेता गुलशन बावरा के घर जब में पहुंचा तो वह मेरी प्रतीक्षा ही कर रहे थे. मुझे बिठाकर अपने लिए शाम का 'बंदोबस्त'  करने चले गए. आने पर मुझे भी ऑफर किया किंतु मैंने जब एक गिलास ठंडा...

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By Mayapuri Desk
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Gulshan Bawra  गीतकार या अभिनेता बनने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा
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Gulshan Bawra death anniversary:निर्धारित समय पर गीतकार अभिनेता Gulshan Bawra के घर जब में पहुंचा तो वह मेरी प्रतीक्षा ही कर रहे थे. मुझे बिठाकर अपने लिए शाम का 'बंदोबस्त'  करने चले गए. आने पर मुझे भी ऑफर किया किंतु मैंने जब एक गिलास ठंडा पानी मांगा तो वह एक गिलास शरबत मेरे लिए ले आए.

अपने ड्रिंक में से एक सिप लेकर Gulshan Bawra ने कहा,

'अब कहिए, आप क्या पूछना चाहते हैं?'

आप बुनियादी तौर पर शायर हैं या कलाकार?मैंने पहला सवाल पूछा

'आप बुनियादी तौर पर न शायर हूं और न ही कलाकार हूं. मैं तो केवल एक गीतकार हूं. फिल्म के लिए गीत लिखना और शायरी करना दोनों अलग-अलग बातें हैं. अगर फिल्मी गीत लिखना और शायरी करना एक ही चीज होती तो आज सारे शायर सांग- रायटर बन जाते. शायरे -इन्कलाब हजरत जोश मलीहाबादी को भी गीत लिखने के लिए फिल्म-इंडस्ट्री में बुलाया गया था किंतु वह यहां खपन सके. आखिर में उन्होंने फिल्म-इंडस्ट्री छोड़ दी. इसी तरह और भी कई बड़े-बड़े शायर आए और नाकाम वापस चले गये.'Gulshan Bawra ने बताया.

(gulshan bawra biography)

'तब आपको यह गीत लिखने का चस्का कहां से और कैसे लगा?'मैंने पूछा

'दरअसल मेरी माताजी बड़े धार्मिक विचारों की थीं. मैं प्रायः उनके साथ कीर्तन आदि में जाया करता था. उसका यह असर हुआ कि मैं भजन लिखने लगा. इसके बाद 1947 में मेरे माता-पिता दोनों की दंगों में हत्या हो गई. वह सदमा मेरे दिल पर इतना जबरदस्त बैठा कि मैं जो कुछ भी लिखता था उसमें दर्द आता था. औरजब दिल में दर्द पैदा हो जाता है तो पोयट्री-कविता अपने आप निकलने लगती है. फिर में दिल्ली चला गया. कालेज में पहुंचा तो लड़कियों को देख कर इश्किया गीत लिखने लगा. बस, इस तरह कविता में रुचि और महारत बढ़ती गई.'Gulshan Bawra ने बताया.

'तो आपको फिल्मों में प्रवेश कैसे मिला?'मैंने पूछा.

'गीत लिखने का शौक था ही. लोग गीतों को पसंद भी करते थे. बस, उनकी प्रशंसा के कारण ही दिल समें ख्याल आया कि क्यों न फिल्मों में (मुंबई) जाकर भाग्य आजमाया जाए. संयोग से 1955 में रेलवे में बतौर गुडस क्लर्क के मुंबई आना हो गया. मुंबई में इस तरह दाल-रोटी का सहारा तो था ही फिल्मों के लिए भी स्ट्रगल शुरू कर दिया. यहां आकर मुझे जोगेश्वरी में रहने की जगह मिली थी. वहीं एक प्रोडक्शन कंट्रोलर स्वर्ण सिंह रहता था. उसने मेरे गीत सुने तो उसे बड़े अच्छे लगे. उसने निर्माता-निर्देशक रविन्द्र देव से मिलवा दिया. रविन्द्र देव ने मेरे एक-दो गीत सुने और कल्याणजी-आनंदजी के पास भेज दिया. फिर उन्होंने मेरे गीत सुने. उन्होंने 'चंद्रसेना' में एक गीत लिखने को दे दिया. मैंने सिचुएशन के हिसाब से गीत लिखकर उनके हवाले कर दिया. वह गीत था- 'मैं क्या जानूं काहे यह सावन मतवाला है.' वह गीत चला और खूब चला. उसके बाद उन्होंने 'सट्टा बाजार' में मुझ से तीन गीत लिखवाए. उसके बाकी गीत हसरत और शैलेंद्र ने लिखे थे. किंतु मेरे तीनों ही गाने हिट रहे. वह थे (1) 'तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे' (2) चांदी के चंद टुकड़ों के लिए' (3) 'आंकड़े का धंधा, कभी तेजी कभी मंदा' बस, इन गानों ने किस्मत के द्वार खोल दिए. फिर तो एन.दत्ता, रवि, हंसराज बहल, उषा खन्ना आदि के साथ भी गीत लिखने का अवसर मिलता चल गया.'Gulshan Bawra ने कहा.

'किंतु यह गीत लिखते-लिखते अभिनय कैसे करने लगे? क्या अभिनय का भी शौक दिल में पाल रखा था बचपन से.'मैंने पूछा.

'न इसका शौक था और न ही इसके लिए कभी संघर्ष किया. यह तो बिन मांगे का मोती है. हुआ यह था कि एक दिन मैं रविन्द्र देव के यहां बैठा हुआ था. 'सट्टा बाजार' में एक पात्र था उन्होंने यूं ही पूछ लिया, 'क्या फिल्म में एक रोल करोगे?' मैंने तुरंत हामी भर ली. कुछ सीन हुए किन्तु बाद में उस रोल में जाॅनी वाॅकर आ गये और मेरा केवल एक ही सीन रह गया. वह एक सीन भी लोगों को पसंद आ गया. फिर तो यह हाल हो गया कि जिस फिल्म के लिए गीत लिखता उसमें एक-आध रोल भी करना पड़ जाता.'गुलशन ने कहा.

'इसका मतलब यह हुआ कि आपको न ही गीतकार के तौर पर संघर्ष करना पड़ा और न ही अभिनेता बनने के लिये.'मैंने कहा.

'बिल्कुल! और सबसे बड़ी बात यह थी कि निर्माता-निर्देशक खुद ही मुझे खुशी से बुलाया करते थे और आदर सत्कार भी करते थे. मैं चूंकि सर्विस करता था इसलिए किसी के आगे कभी काम मांगने के लिए या खाने के लिए पांच रुपये मांगने के लिए हाथ नहीं फैलाया. अगर हाथ फैलाया होता तो फिर नज़रों से मैं गिर जाता. इसलिए सबसे इज्जत मिला करती थी.'Gulshan Bawra ने कहा.

(gulshan bawra death reason)

'आपने सर्विस कब छोड़ी ?'मैंने पूछा.

'सट्टा बाजार' के गाने हिट होने के बाद काम काफी आ गया था इसलिए मैंने सर्विस छोड़ दी. और अपने एक मित्र केवल. पी. कश्यप के साथ प्रोडक्शन में काम शुरू कर दिया. उनके कारण ही उनके दोस्त मनोज कुमार की फिल्म 'शहीद' और 'उपकार' में गाने लिखे.'Gulshan Bawra ने कहा.

'क्षमा करना, इतने हिट गाने देने के बाद भी  आपकी वह मार्केट नहीं बन सकी जो साहिर, मजरुह आदि की उस समय थी. इसकी क्या वजह है? आप अधिक लंबे समय ते उनकी तरह क्यों नहीं चल पाये?'मैंने कहा.

'देखिए, असल बात यह है कि मैं इस बात में विश्वास रखता हूं कि कम काम करो मगर बढ़िया काम करो. अधिक काम करने में आदमी अपने काम के साथ में केवल 110 या 112 ही गीत लिखे होंगे. इसके बावजूद मेरे हिट गानों का सर्वश्रेष्ठ औसत है. क्योंकि मैंने कम गीत लिखे इसलिए अच्छे लिखे और इसीलिए अधिकांश हिट भी हुए.'Gulshan Bawra ने कहा.

'आप अभिनय और गीत रचना का कार्य एक साथ किस तरह कर पाते हैं?मैंने पूछा.

'आजकल मैंने अभिनय की दुकान बंद कर दी है. अब मैं केवल गीत ही लिखता हूं. गीत रचना के लिनए समय और सुकून चाहिए गीत लिखने से अब समय ही नहीं बचता कि अभिनय करूं.'Gulshan Bawra ने कहा.

'फिल्म-इंडस्ट्री गुटबंदी के लिए बदनाम है. यहां इसी वजह से बहुतों को काम नहीं मिल पाता. क्या आपने भी यह बात महसूस की है ?'मैंने पूछा.

'नहीं यह बात गलत है. यहां गुटबंदी नहीं टयूनिंग चलती है. लोग उसी को गुटबंदी या मोनोपली कह बैठते हैं. बात यह है कि सलीम-जावेद कोई फिल्म लिखेंगे तो उसमें अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, रेखा आदि भी आ जायेंगे. यह हमारी खुशकिस्मती है कि बदकिस्मती कि हमलोग दूसरी लता नहीं पैदा कर सकते. अब इसे आप मोनोपली कहते हैं. हालांकि नई आवाजों में शैलेन्द्र सिंह भी आया वह चला भी और चल भी रहा है. किंतु किशोर कुमार भी अपनी जगह पर अटल हैं. दरअसल लोगों का कहने में जाता क्या है. वह तो कहते हैं कि राज कपूर ने अपने लड़कों को हीरो बनाया था इसलिए वह चल गये. वे कहने वाले यह भूल जाते हैं कि लाख लोग प्रयोग करें अगर आप में क्षमता नहीं है तो आप कुछ नहीं कर सकते. जयराज और शम्मी कपूर आदि के बेटे हीरो क्यों नहीं बन गये और तो और केदार शर्मा ने राज कपूर जैसे ना मालूम कितने लोगों को हीरो बना दिया किंतु वह भी अपने बेटे को हीरो न बना सके.'Gulshan Bawra ने कहा.

'आज के किस गीतकार को आप अधिक पसंद करते हैं?'मैंने पूछा.

'सब ही ठीक हैं. और मेरे जैसे ही हैं. दरअसल यह एक मैकेनिकल जाॅब है. क्योंकि आधी शायरी तो वैसे ही खत्म होकर रह गई थी. कुछ इन्सान के चांद पर पहुंच जाने पर खत्म हो गई. थोड़ी-सी शराब पर बची थी वह भी मुरारजी भाई ने खत्म कर दी. अब तो बस, कुछ शब्द रह गये हैं बस, उन्हीं को इधर-उधर करके लिखना होता है. पहले तो ऐसा था कि हीरो गा रहा है तो हीरोइन गा रही है. अब तो हीरो सुबह लंदन जाता है और शाम को वापस भी आ जाता है. हीरोइन अब खुशी-खुशी उसे विदा करती है. अब तो हीरा-हीरोइन को कैबरे भी दिखाने ले जाता है. जहां आप आंखें, जवानी, जोबन जैसे ही शब्दों का उपयोग कर सकते हैं.'Gulshan Bawra ने कहा.

gulshan bawra family

मुझे लगा कि Gulshan Bawra का दिमाग अब उनका अधिक साथ नहीं दे रहा है. उनकी शाम की मस्ती में मैं कबाब में हड्डी बन कर रह गया हूं.

इसलिए मैंने अपने इंटरव्यू को समेटते हुए पूछा,'आपके मन में भी शैलेन्द्र, जांनिसार अख्तर आदि की तरह फिल्म-निर्माण का भी ख्याल आता है?'

'जी नहीं, अब तो मैं इससे तौबा कर चुका हूं. मैंने केवल पी. कश्यप के साथ 'विश्वास' बनाई थी. उसमें मैं को-प्रोडयूसर था. किंतु उसमें इस कदर घाटा हुआ कि अब कभी सपने में भी फिल्म बनाने की बात नहीं सोचता.'Gulshan Bawra ने कहा.

'आपकी आने वाली फिल्में?'मैंने इंटरव्यू खत्म करते हुए पूछा.

'झूठा कहीं ' , 'भला मानस' , 'देश द्रोही' , 'दुनिया मेरी जेब में , 'एपोइंटमेंट', 'निकम्मा', 'चाबी चोर के हाथ' आदि'Gulshan Bawra ने कहा.

और मैं उत्तर नोट करते ही उन्हें छोड़ अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा.

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