-अरुण कुमार शास्त्री
जिसे आज आधुनिक सभ्य समाज कहते हैं, उसमें संगीत के प्रति एक विशेष रुझान पैदा हुआ है! और संगीत में गजल की विद्या की लोकप्रियता आज चरम सीमा पर है! निश्चित रूप से गजल को आम श्रोताओं तक लोकप्रिय बनाने का श्रेय जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की जोड़ी को दिया जाना चाहिए! यूँ जगजीत को स्टेज से फिल्मों तक आने में एक अरसा जरूर गुजरा, लेकिन फिल्म संगीत की दुनिया में भी उनका नाम अब सम्मानपूर्वक लिया जाता है! स्थिति यहाँ तक है कि, अगर आपकी गजलों में कोई रूचि नहीं और आप फिल्मों से जुड़े हैं तो असभ्य कहेंगे और सामान्य सामाजिक जीवन में भी यही मुहावरा लागू होता है! इस गजलों के आंदोलन के प्रेरणा के रूप में भी जगजीत सिंह का जिक्र किया जाना चाहिये! जगजीत सिंह
निजी रूप से मैं वैसे लेखन में विश्वास नहीं रखता जिससे बदबू आती हो
चुंकि हमारा ताल्लुक फिल्मों से ही अधिक है इसी लिए हमने जगजीत सिंह से बातों के क्रम फिल्मों को ही अपनी बातचीत का केन्द्र बनाया। सबसे पहले तो जगजीत सिंह ने साफ तौर पर कहा-‘हम स्टेज पर हर दिन अपने श्रोताओं से सीधे मिलते हैं! अखबारों में हमारे बयानों को इतना तोड़ मरोड़ कर कुछ अजीब तरह से अफवाहों से जोड़ कर लिखा जाता है कि, हमारी रूचि ही अखबार वालों से मिलने में खत्म हो गयी! इससे हमारी सीधी-साधी अपनी निजी जिंदगी, हमारे पेशे, और श्रोताओं के साथ संबंधों में तनाव आता है! इसलिए बातें करने से पहले आप इसका ख्याल रखेंगे! मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि, निजी रूप से मैं वैसे लेखन में विश्वास नहीं रखता जिससे बदबू आती हो! और इस आश्वासन के बाद ही बातों का क्रम आगे बढ़ा!
स्टेज से फिल्म संगीत तक की अपनी यात्रा की कहानी को जगजीत संक्षेप में बयान करते हुए कहते हैं- मूलतः मैं गायक हूँ और संगीत सीख कर मैंने गले में उतारा है! दूसरे संगीतकारों की तरह संगीत सिर्फ मेरी अंगुलियों तक सीमित नहीं है! मैं जो जानता हूँ, उसे गले और वाद्य यंत्रों के मेल जोल से सुरीला बनाने की हर चंद कोशिश करता हूँ! आज के अधिकांश संगीतकारों के पास सिर्फ धुन है और उनके ज्यादातर काम पाश्र्व गायक ही कर देते हैं! और यही वजह है कि आज का हर गाना सुनने में एक जैसा ही लगता है! अमिताभ बच्चन और कुमार गौरव के लिए किशोर कुमार एक ही अंदाज में पाश्र्व गायन करते हैं! यह बात स्व.रफी साहब में थी! वह इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि देव आनंद के लिए गा रहे हैं या दिलीप कुमार के लिए या शम्मी कपूर के लिए और वे अभिनेताओं के हिसाब से अपने गले में पैदा करते थे आज के संगीतकार और पाश्र्व गायक दोनों ही अनाड़ी हैं!
जगजीत सिंहमेरे लिए अलग तरह की बात है मैं स्टेज पर गाकर लोकप्रिय हुआ और लोगों ने मझे बुलाकर अपनी फिल्मों में संगीत निर्देशन का मौका दिया! मैं स्वंय गायक हूँ और गायन में अभिव्यक्ति की महत्ता जानता हूँ। इसी लिए मेरे संगीत की पहचान अलग से बनी है!
संगीतकार के रूप में जगजीत सिंह की ‘प्रेम गीत’,‘कालका’ और ‘अर्थ’ जैसी फिल्में प्रदर्शित हुई हैं! लेकिन जैसे किसी एक ‘पारसमणि’ या ‘दोस्ती’ से लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे संगीतकार आम फिल्म दर्शकों के बहुत करीब आ गये, वैसा जगजीत सिंह के साथ नहीं हुआ क्यों?,
जगजीत सिंहजगजीत सिंह कहते हैं-अपने संगीत के माध्यम से मेरी पहचान भी आम श्रोताओं तक है! मेरी चीजें भी लोकप्रिय हैं! बाकि जो दूसरे संगीतकार ‘अपने माल’ को लोकप्रिय बनाने के लिए जितना पैसा खर्च करते हैं और जो प्रचार अभियान करते हैं, वह मेरे बस का रोग नहीं! उनका संगीत इसीलिए साल छः महीने में मर जाता है! मेरी संगीतमय रचना की उम्र इस मायने में लंबी होती है मेरी फिल्में बॉक्स आॅफिस पर भले ही सफल नहीं रही हों लेकिन मेरे गीतों की सफलता में कोई संदेह नहीं कर सकता! यह कम बात नहीं! आज का फिल्म संगीतकार अपनी सीमाओं में बंधा है! धुनों की बंदिश में कविताएँ दम तोड़ रही हैं और यही वजह है कि, हिट से हिट गाने भी कुछ दिनों बाद अपनी लोकप्रियता खो बैठते हैं!
इस बारे में जगजीत सिंह की राय है-इस तथ्य से मैं भी सहमत हूँ लेकिन संगीतकारों ने अपनी सीमाएँ स्वंय ही निर्धारित कर ली हैं। आप कह सकते हैं कि, यह उनकी विवशता है! वे अपनी जानकारी को धुनों तक ही सीमित रखते हैं और इसी लिए शायरी की आत्मा का उनके संगीत में दम घुटता है और इस संगीत का फैलाव कम होता है! जगजीत सिंह“बल्कि मैं तो समझता हूँ कि हमारी फिल्मों में गाने का कोई तुक ही नहीं बैठता! फिल्म में पाश्र्व संगीत हो और कहानी का मूड बना रहे इसके लिए संगीत की उपयोगिता तो हो सकती है।
लेकिन आप देख लीजिए कि, हमारी फिल्मों के हर चरित्र को गाने की छूट मिलती है! ‘अर्थ’ में राज किरण चरित्र के हिसाब से गायक है और इसी लिए वह गाता है। महेश भट्ट ने सुझाव दिया कि एक गाना शबाना आजमी के साथ हो जाये! मैंने साफ मना कर दिया। फिल्म में संगीत देने से पहले इसी लिए मैं कहानी सुनता हूँ और तब उसमें संगीत की क्या उपयोगिता होगी उस पर गहराई से सोचता हूँ!
जगजीत सिंह से मैं उनकी पत्नी चित्रा सिह के बारे में पूछता हूँ कि उनके जीवन में संगीत के क्षेत्र में उनकी पत्नी की सही भूमिका क्या है?
जगजीत सिंहजगजीत बताते हैं-मेरी पत्नी में मेरी आलोचक की हैसियत रखती है! जो भी धुनें तैयार करता हूँ उसके उतार चढ़ाव के बारे में वह रचनात्मक बहस छेड़ती है और उसे मैं स्वीकार करता हूँ! वह स्वंय एक अच्छी गायिका है और यह स्वतः सिद्ध तथ्य है, और इस नाते उसकी आलोचना मेरे लिए सहायक आवाज के उतार चढ़ाव को लेकर अपनी राय जाहिर करता हूँ और उसे वह स्वीकार करती है। जगजीत सिंह से ये बातें सुबह-सुबह उनके कर्डेन रोड स्थित निवास स्थान पर हो रही थी! बनियान और लुगी में वह एक औसत मध्य वर्गीय परिवार के सदस्य की तरह लग रहे थे!
और इस वक्त उन्हें देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि, यही वो शख्स है, जो मंच पर होता है तो अपनी जादू भरी आवाज से लाखों दिलों की धड़कन बनता है। बहुत सी शामें ऐसी होती हैं जहाँ स्वंय जगजीत नहीं होते लेकिन उनके गजलों के कैसेट से उनकी शख्सियत वहाँ मौजूद होती. है। हमने उनसे यह भी पूछा कि गजल तो उर्दू की चीज है, जबकि हिन्दी गीतों का अपना महत्व शायद अधूरेपन में सफर कर रहा है?
वे कहते हैं-मैं जो गाता हूँ वह हिन्दी की चीजें ही गाता हूँ! उर्दू और हिन्दी दीवार मेरे गानों में बाधक नहीं! अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर बताते हैं-बहुत शीघ्र ही भजनों की रिकाॅर्डिंग के मेरे कैसेट बाहर आयेंगे और यह भी मेरे ही अंदाज में होगी! जगजीत सिंह से अपनी बातों को यहीं विराम देता हूँ और एक निहायत सादगी में डूबे सुरीले गायक-संगीतकार को करीब से महसूस करते यह कहना चाहूंगा कि जगजीत की आवाज में जो मिठास है, वही उनके व्यक्तित्व में भी है!
यह लेख दिनांक 1.1.1984 मायापुरी के पुराने अंक 484 से लिया गया है!
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