-कमाल अमरोही और अरुण कुमार शास्त्री की बातचीत
कमालिस्तान स्टूडियो एक लम्बे अरसे बाद आया हूँ। जिन दिनों ‘रजिया सुल्तान’ बन रही थी तो यूँ कहे कि यह घर आंगन सा हो गया था। कमाल अमरोही को मैं नहीं-सभी उन्हें कमाल साहब कहते हैं। कमाल अमरोही एक ऐसा नाम हैं जिसे परिचय की आवश्यकता नहीं। मुझे फिल्म पत्रकारिता में जो धोड़े से सुख मिले है वह है कमाल साहब का सानिध्य हैं।
अगर हर कोई लेखक बन गया तो सोसायटी का ढ़ाचा कैसे चलेगा?
वे मुझे बेहद स्नेह देते हैं और मैं बतांऊ मैं अक्सर उन्हें वक्त बेवक्त मिलता रहा हूँ और उनके अमन में सवाल पैदा करता रहा हूँ। मैं यह भी लिखना चाहता हूँ कि उन्होने संभवतः एक आदमी के रूप में जितना प्रभावित किया है शायद फिल्मों की पूरी दुनिया में मैं किसी से उतना प्रभावित नहीं हूँ। यह गंदे लोगों की बस्ती बनी है इन दिनों जो थोड़े से अच्छे लोग हैं उनके नाम पते लिखने का यह मौका नहीं। यूँ कमाल साहब बदनाम भी रहे है और उन्होंने इसे स्वीकार भी किया है उन्होने कहा था-अगर मैं एक आम आदमी की तरह होता तो शायद कमाल अमरोही नहीं होता। मैं भी अगर नौ बजे घर से निकल कर दफ्तर से पांच बजे लौटने के बाद रात दस बजे सो जाता तो लिखता कैसे-लेखक कैसे बनता? लेखक अपनी रातें आंखो में काटता है और तब वह जीवन का मुक्कमल सच लिखता है। लेकिन मेरा सच हिन्दुस्तान की गरीबी नहीं बल्कि मेरे हिस्से में जो सच आया है वह अमीरो की शानो-शोकत का सच आया यही मेरी फिल्मो के विषय भी रहे है। लेकिन इतना भी कहूँगा कि सामान्य जीवन जीने वालों के लिए भी मेरे मन में बेहद इज्जत है अखिर यह भी तो है कि अगर हर कोई लेखक बन गया तो सोसायटी का ढ़ाचा कैसे चलेगा? हिसाब-किताब कौन रखेगा कि कहाँ क्या हो रहा है?
कमाल अमरोही की इन बातो से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। मैं कंमालिस्तान जब इस बार आया हूँ तो वाकई देखता हूँ कि जैसे स्वर्ग के एक छोटे-टुकड़े में आ गया हूँ-मेरी धकान दूर हो गयी थोड़ी देर के लिए। अल्तुनिया के महल के बाहर जो फव्वारे बने थे वे अब निर्माताओं के द्वारा अपनी शूटिंग के लिए इस्तेमाल करते हंै। अभी भी गोविन्दा-फरहा और इसके बाद मिथुन-डिम्पल एक दूसरे की बाहो में झूमते हुए शूटिगं कर रहे है। पहली फिल्म के निर्देशक है स्वरूप कुमार और दूसरी के निर्देशक थे राज कुमार कोहली, फूलो के विविध रंगों में डूबी कमालिस्तान के आखिरी छोर पर कमाल अमरोही अपने दफ्तर में बैठे और मैं पहुँच कर उनकी खामोशी तोड़ रहा हूँ।
किन्हीं वजहों से बादशाह को औरतों से घृणा हो जाती है
पिछले दिनों अखबारों में खबर छपी थी कि अमाल अमरोही दूरदर्शन के लिए ‘अलिफ लैला’ - औ लैला’ के नाम से धारावाहिक निर्माण कर रहे है। अलिफ का अर्थ होता है एक हजार और लैला की मतलब होता है रात अरबियन नाइट्स की इस कहानी के लेखक अनाम है। यह कहानी बगदाद के शंहशाह की है। किन्ही वजहों से बादशाह को औरतों से घृणा हो जाती है और इस घृणा के प्रतिशोध के क्रम में वह अपने साम्राज्य की किसी भी हसीन औरत को अपने बिस्तर का सामान बनाता है यानि रात मे निकाह करने के बाद और सुबह उसे कत्ल करके दगला नदी में फेंक दिया जाता है। यह एक खतरनाक हादसा है किदगला के पानी को खून पीने की आदत हो गई है। एक दिन पता चलता है बगदाद की सबसे अछूती चीज यानी उनके वजीर की लड़की (वजीर जादी) हुस्न की बेपनाह खूबसूरत तस्वीर उसकी रातों के हावले अब तक नहीं हुई। नाटकीय घटनाओं के बाद वजीर जादी भी बादशाह के साथ निकाह कर देती हैं, लेलिन वजीर जादी की शर्त यह है कि वह उसे कोई एक कहानी सुनाईगी ाअैर जब तक कहानी खत्म न हो जाये उसका कत्ल न किया गए। वजीर जादी की कहाँनियां इतनी दिलचस्प होती है कि सुबह हो जाती है और वह कहानी खत्म करने के लिए कई दिन और जीवन पाती है इस तरह वह बादशाह को एक हजार एक रात तक कहानियाँ सुनाती है और बादशाह इस तरह कत्ल करने की आदत छोड़ देता है। इस दूर दर्शन धारावाहिक को अमूमन 4 किश्तों में समाप्त करना चाहते थे। वीडियो विजन वालो ने इस धारावाहिक के लोवन निर्देशन और पूरे प्रारूप की योजना कमाल साहब के जिम्मे सौंपा और सब से मजेदार बात यह है जब स्क्रिप्ट दूर-दर्शन को दी गयी तो कमाल साहब का सम्मान इस रूप में हुआ कि बड़ी बेरहमी से उनकी स्क्रिप्ट को ठुकरा दिया गया। ऐसा सम्मान राजीव जी की हकूमत में संभव हो सकता हैं। मैंने कमाल साहब से पूछा आप सच बतायें किस आधार पर आपकी स्क्रिप्ट रद्द की गयी। और इस संबंध में आप क्या कहना चहेगे? कमाल अमरोही कहते है-सच तो यह है कि मैं स्वंय इस धारावाहिक के साध जुड़ने में दिल चस्पी नहीं ले रहा था। ये विडियो विजन वालो ने मुझसे काम लिया स्क्रिप्ट कैंसल क्यो हुई। इसे दूरदर्शन के अफसरों को अच्छी तरह मालूम होगा। यह सवाल उन्ही से पूछा जाना चाहिए। . मैं इसमें दिलचस्पी इसलिए नहीं लेना चाहता था कि इसमें उलझ गया तो फिल्मों का काम मेरा पीछे छूट जायेगा-और लोगो को यह कहने का मौका मिलेगा कि ‘रजिया सुल्तान’ जैसी फ्लॉप फिल्म से तंग आकर मैंने टेलिविजन से समझौता किया। मेरा आज भी यह यकीन हैं रजिया सुल्तान एक हिट फिल्म है और मैंने यह फिल्म बड़ी तबियत से बनायी थी।
कमाल अमरोही ने मुझे ‘सातवां आसमान’ का एक दृश्य सुनाया
इन दिनों मैं ‘सांतवां आसमान’ बनाने की तैयारी में हूँ और यह मुझे आज के बड़े सितारे नहीं चाहिये। ये लोग दो घंटे की शूटिंग करेंगे-ये लोग लंच के बाद आयेगे-मुझे व मेरे स्टाॅफ इनकी डेट्स के लिए इतनी भाग दौड़ करनी पड़ेगी कि मेरी फिल्म की रूह मर जायेगी। मेरी कहानी बहुतों ने सुनी है। दिलीप साहब इसमें काम करने को तैयार थे। शाहिद तालीफ और विमल राॅय जैसे लोगों ने उसमें बेहद दिलचस्पी ली कई वजहों से यह फिल्म नहीं बन पाई। सोचता हूँ उम्र अब काफी हो गई है और उसे बनालेने के बाद ही रिटार्यड होऊं। आज के दौर की फिल्मों के बारे में कमाल अमरोही का कहना है-आज सितारों की मनमानी चल रही है और फिल्म मेकर की हैसियत आज एक चपरासी से ज्यादा नहीं! मैं फिल्में में नहीं बनाऊंगा लेकिन चपरासी नहीं बनूंगा-मैं फिल्म मेकर हूँ चपरासी नहीं। मैंने जानना चाहा कि आखिर यह स्थिति आयी क्यों? कमाल अमरोही बताते है-आज के दौर में फिल्म मेंकिंग में लोगो को यह भरोसा नहीं है कि नये आर्टिस्ट्स के साथ वह हिट फिल्म बना सकते है-स्टार्स को भी यह फीलिंग है कि मेकर नहीं बिकता मैं बिकता हूँ-जिस वक्त स्टार को यह मालूम होगा कि वह सिर्फ एक्टर है, वह मनमानी नहीं करेगा। लेकिन ऐसे लोग है कहां जो स्टार के बिना हिट फिल्म बना सकते है ? आज सारी फिल्में एक जैसी ही है-कोई नयापन नहीं। कमाल अमरोही ने मुझे ‘सातवां आसमान’ का एक दृश्य सुनाया। मैं पाठको के लिया उसे उस ढ़ग से बयान नहीं कर सकता जैसा उन्होने बयान किया। वो सुनते है-मंसूरी की सबसे ऊंची चोटी पर एक आलीशान बंगला है। रात के अधेरे में हम देखते है आसमान से दो चांद आहिस्ता आहिस्ता नीचे उतर रहे है-आड़ी तिरछी पहाड़ियो की सड़क से नीचे उतरते चांद दर्शको के लिए रहस्यःका विषय रहेगा उसके याद हम दिखाते है कि दरअसल वे दो चांद नहीं थे बल्कि एक बड़ी गाड़ी के दो हेडलाइट्स थे। कैमरा जब क्लोज में आता है तो कार की हेड लाइट्स एक करीब सौ साल पुराने यतीम खाने पर पड़ती है जिसमें एक बेइंतहा खूबसूरत लड़की सहमी दिखायी पड़ती है। इस लड़की को गाड़ी में बैठे दो लोग कई बार देखते है-अलग-अलग पोजेज में। एक सुबह वह लड़की देखती है कि वह गाड़ी जिसे वह रात में कई बार देख चुकी है उस यतीम खाने के पास रूकती है। गाड़ी से दो साहब बाहर निकलते है। एक निम्रो साहब दूसरे इसी इलाके का एक युवक निग्रो साहब एक फॉरेस्ट ऑफिसर है जो जंगलो में रहते हैं और अकेले जंगल में रहने के लिए बीवी के रूप में कोई भी लड़की तैयार नहीं। दोबीवीयं तले उसकेे पाससे पहले ही भाग चुकी है-और उन्हें तीसरे की तलाश है। निग्रो साहब को वह युवक कहता है कि यह लड़की उनकी बीवी बन सकती है जबकि युवक कहता हैं कि इसके माँ-बाप का पता नहीं यह नहीं भाग सकती। निग्रों साहब का कहना है यह लड़की आजादी से पली है और इसे गुलामी पसंद नहीं। युवक कहता है कि नूरजहाँ भी यतीम थी और वह जहाँगीरकी बीवी बनकर शौहर के लिए सही पंसदसांबित हुई थी।
अगले दिन वह लड़की किसी से पूछती है “जहाँगीर कौन था?
उसे बताया जाता है कि जहाँगीर एक बादशाह था जवानी में उसे सलीम कहा जाता था। वह लड़की ख्यालों में खो जाती है और खुद को नूर जहाँ मानकर उस युवक को सलीम मानती हैं। तो यह है ‘सातवां-आसमान’ की ओपनिंग कमाल साहब की भाषा मेरे पास नहीं उनके बयान करने की शैली भी मेरे पास नहीं। बातें खत्म हुई थी। कमाल साहब से फिर कभी और बातें करूंगा। उन्होेंने मायापुरी के लिए विशेष तौर पर जो अपने बारें में खबर दी है, समझ में नहीं आता उनका शुक्रिया कैसे अदा करूं। एक ‘दायरा’ में मिले कमाल और मीना आखिरी सांस तक एक दूजे के हो गए। मीना कुमारी जी हिरोईन थी इसी फिल्म के दौरान दोनों ने शादी कर ली। कमाल अमरोही साहब सोहराब मोदी से मिले तो वह हैरान हो गए कि 19 साल का लड़का क्या लिखेगा? कमाल साहब ने बोला (मेरी उम्रमत देखिये, मेरी लेखनी को पिढ़ये) इस तरह पुकार फिल्म बनी।
यह लेख दिनांक 08-05-1988 मायापुरी के पुराने अंक 711 से लिया गया है!
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