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फेमस स्टूडियो में ओ. पी. रल्हन के दफ्तर में ओ. पी. रल्हन से भेंट हुई मैंने कहा:-
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रल्हन साहब आप इतने अच्छे काॅमेडियन हैं कि आपकी कमी महसूस होती है. क्योंकि आप केवल अपनी ही फिल्मों में नजर आते हैं. आप काॅमेडियन से निर्माता-निर्देशक क्यों बन गए?
मेरे पास कहानी थी जिसे मैं अपने ढंग से बनाना चाहता था किन्तु जितने भी निर्माताओं को सुनाई वह उनके पल्ले ही नहीं पड़ी. इस दौरान मेरा पैसों का प्रबंध हो गया और फिर मैंने वह कहानी 'गहरा दाग' के नाम से बनाई जिसे काफी सफलता मिली और इस प्रकार मैं फिल्म-निर्माण में जुट गया. रल्हन ने बताया.
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जीनत अमान ने 'हलचल' के बाद आपके बारे में बड़े सख्त रिमार्क पास किये थे कि आपने उनका कैरियर नष्ट कर दिया. फिर आपने 'पापी' के लिए जीनत अमान को किस प्रकार राजी किया? मैंने पूछा.
जीनत के नाम से लोगों ने मेरे और उसके आपसी संबंध खराब करने की कोशिश की थी किन्तु वे सफल नहीं हुए. जीनत को मैंने ब्रेक दिया था इसलिए वह आज भी मेरी इज्जत करती है. उसे मैं घंटों ऑफिस बिठाकर अभिनय और इन्डस्ट्री की ऊंचनीच समझाया करता था. मैंने उसे देवआनंद की फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' दिलवाई थी. दरअसल वह उस रोल के लिए एकदम फिट थी. 'पापी' का रोल भी ऐसा ही था कि जीनत अमान के अलावा वह कोई और अभिनेत्री कर ही नहीं सकती थी. मैंने सिमी आदि का टेस्ट भी लिया था. आपने 'पापी' देखी होगी तो आप भी इससे सहमत हो गए होंगे. 'पापी' अब तक की जीनत की अभिनय के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ फिल्म है. रल्हन ने बताया.
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आपने 'पापी' में जीनत अमान, 'फूल और पत्थर' में धर्मेन्द्र को एक नया स्वरूप दिया किन्तु 'बंधे हाथ' में अमिताभ बच्चन को लेकर सफल न बना सके. इसका क्या कारण है? मैंने पूछा.
'बंधे हाथ' से पूर्व अमिताभ की वह इमेज न थी जो 'जंजीर' और 'दीवार' के बाद बनी. उससे पूर्व उसे लेकर जो फिल्में बनीं वह असफल रही थीं. लेकिन मेरे कैरेक्टर को वह सूट करता था इसलिए मैंने रिस्क लिया. मैं फिल्म इस ख्याल से नहीं बनाता कि वह सफल हो जायेगी. इस लिए जब कोई फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर असफल होती है तो निराशा नहीं होती और सफल होती है तो उसकी खुशी अधिक होती है. मैं केवल फिल्म बनाने के लिए फिल्म बनाता हूं उससे समझौते-बाजी नहीं करता. रल्हन ने कहा.
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फिल्म मेकिंग में आप किसे अपना गुरू मानते हैं? यह कला आपने किससे सीखी? मैंने पूछा.
स्व. महबूब खान को मैं गुरू मानता हूं. वह मेरे लिए गुरू से भी ज्यादा थे. केवल कैमरा लगाकर डिब्बे भरने में विश्वास नहीं रखते थे. फिल्म का संकलन, उसका प्रदर्शन, उसकी कमर्शियल सफलता आदि पर पैनी नजर रखना आदि मैंने उन्हीं से सीखा है. वह एक महान फिल्मकार ही नहीं महान इन्सान भी थे. फिल्म जगत के त्राहित और उपेक्षित आदमियों के लिए उनके दिल में असीम दया थी. अगर फिल्म में किसी ऐसे व्यक्ति का रोल होता था तो वह अभिनेता और अभिनेत्री से कह देते थे, 'जाओ पहले गरीबों की दशा जाकर देखो. उनकी झोंपड़ी में दो-एक दिन रह कर आओ. गरीब के घर की रूखी-सूखी रोटी खाकर ही तुम्हें पता चलेगा कि गरीबी क्या चीज है. तब ही उसको परदे पर सजीव कर सकोगे.' यही वजह है कि मैं कलाकारों को हावी नहीं होने देता. उनसे कोई समझौता नहीं करता. तभी तो मैं फिल्म बनाने के उद्देश्य में सफल हो पाता हूं. रल्हन ने बताया.
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