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विश्वविद्यालयों में Mohammed Rafi की आवाज के नमूनों पर हो रहे हैं शोध

महान गायक मोहम्मद रफी का निधन हालांकि कई दशक पहले हो गया, लेकिन आज भी जब हम उनके गाए हुए गीतों को सुनते हैं तो अपना दुख–दर्द भूल जाते हैं. आखिर उस आवाज में ऐसी क्या खासियत है...

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By Mayapuri Desk
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महान गायक मोहम्मद रफी का निधन हालांकि कई दशक पहले हो गया, लेकिन आज भी जब हम उनके गाए हुए गीतों को सुनते हैं तो अपना दुख–दर्द भूल जाते हैं. आखिर उस आवाज में ऐसी क्या खासियत है. उस आवाज में कौन सा क्या राज छुपा है? मशहूर फिल्म लेखक विनोद कुमार ने बहरीन में रहने वाले रफी साहब के ग्रैंडसन इन लॉ फिरोज अहमद से बात की जिन्होंने बताया कि रफी साहब आवाज के नमूनों को लेकर दुनिया के कई मशहूर और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में अध्ययन किए जा रहे हैं और उच्चतर अध्ययन के छात्र इन नमूनों के जरिए आवाज की बारीकियां सीख रहे हैं. 

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Rafi sahab's grandson in law Feroz Ahmed

बहुमुखी संगीत प्रतिभा के धनी मोहम्मद रफी ने संगीत के उस शिखर को हासिल किया, जहाँ तक कोई भी गायक पहुँच नहीं पाया. उनकी आवाज़ के आयामों की कोई सीमा नहीं थी. मद्धिम अष्टम स्वर वाले गीत हों या बुलन्द आवाज़ वाले 'याहू' शैली के गीत, वह हर तरह के गीत गाने में माहिर थे. उन्होंने भजन, गजल, कव्वाली, देशभक्ति गीत, दर्द भरे तराने, जोशीले गीत, सुगम एवं शास्त्रीय संगीत तथा गैर फिल्मी गाने पूरी महारथ के साथ गाये और हर उम्र, हर वर्ग और हर रुचि के लोगों को अपनी आवाज़ के जादू में बाँधा. 

मोहम्मद रफी की आवाज़ के जादू को शब्दों में बयान करना असंभव है. उनकी आवाज में सुरों को केवल महसूस किया जा सकता है. उनकी आवाज कभी किसी शान्त और विशाल मनोरम झील में ढलती शाम की तरह, कभी उन्मुक्त प्रबल प्रपात की तरह, कभी हिमालय से निकलती गंगोत्री की कल-कल धारा की तरह तो कभी मुलायम मखमली गुलाबी गलीचे में लिपटी ठंडी रात की तरह महसूस होती है. 

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मोहम्मद रफी संभवतः हिन्दी फिल्म संगीत के एकमात्र ऐसे गायक थे, जिन्हें आरोह-अवरोह के इस्तेमाल में महारत हासिल थी. यह क्षमता आज के समय के अत्याधुनिक हैरियर जेट के सीधे ऊपर उठने और नीचे आने के (वर्टिकल टेक ऑफ एण्ड लैंडिंग) के समान थी. मोहम्मद  रफी के गाये अनेक गानों में आरोह-अवरोह का खूबसूरत इस्तेमाल मिलता है. 

मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज़ की विविधता की विशेष क्षमता का मुजाहिरा आवाज़ की गुणवत्ता में कमी किये बगैर अलग-अलग अभिनेताओं के साथ अपनी आवाज का मिलान करके किया. जिन फिल्मों में उनके गाये हुए गाने होते थे, उन फिल्मों के रिलीज होने से पहले ही यह पता चल जाता था कि कौन सा गाना किस अभिनेता पर फिल्माया गया है. स्वर कोकिला लता मंगेशकर भी नूतन और मीना कुमारी के लिये अलग-अलग तरीके से गाती थीं. बहुमुखी प्रतिभा वाली गायिका आशा भोंसले भी गाते समय हेलेन और आशा पारेख के लिये फर्क करती थीं. मुकेश की आवाज राज कपूर के लिए जबकि किशोर कुमार की आवाज राजेश खन्ना और बाद के दौर के कई अभिनेताओं के लिए फिट बैठती थी लेकिन मोहम्मद रफी की आवाज की वृहद् रेंज और विविधता हर मायने में श्रेष्ठ थी. 

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रफी साहब विभिन्न संगीतकारों के लिये भी अपनी आवाज़ में विविधता रखते थे. उनके गानों को सुनकर यह बताया जा सकता है कि किस गाने का संगीत किस संगीत निर्देशक ने दिया है. नौशाद, ओ. पी. नैयर, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन और एस. डी. बर्मन के लिये गाये गये मोहम्मद रफी के गानों में फर्क साफ तौर पर पहचाना जा सकता है.

यह रफी साहब की खास प्रतिभा थी कि वह फिल्म में गाने के मूड, भाव, अर्थ, शब्द और गीत के सम्पूर्ण सार को आत्मसात कर फिल्म में उस गीत के लिये पैदा की गयी परिस्थितियों को अपनी आवाज में परिलक्षित कर सकते थे.

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आखिर उनकी आवाज में क्या खासियत है और उनकी आवाज में क्या बारीकियां हैं इसके बारे में अध्ययन करने के लिए दुनिया के कई मशहूर विश्वविद्यालयों में उनकी आवाज के नमूनों पर शोध किए जा रहे हैं. पिछले दिनों बहरीन में रहने वाले रफी साहब के ग्रैंडसन इन लॉ फिरोज अहमद से मेरी बातचीत हुई तब उन्होंने बताया कि कुछ समय पूर्व उनको नीदरलैंड की राजधानी ऐम्स्टर्डैम में एक संगीत समारोह में बुलाया गया था. वहां संगीत समारोह में भाग लेने वाले जो भी कलाकार थे वे सभी अलग–अलग देशों से आए थे और उनमें से किसी को हिन्दी या उर्दू या कोई अन्य भारतीय भाषा नहीं आती थी. लेकिन वे सभी रफी साहब के गाने गा रहे थे और उन गानों को गाते समय वो इमोशनल हो रहे थे. कई तो रो रहे थे. जब फिरोज अहमद साहब उन कलाकारों से मिलने के लिए ग्रीन रूम में गए तो वे सब बहुत खुश हुए यह जानकर कि वे रफी साहब के परिवार के किसी सदस्य से मिल रहे हैं. 

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फिरोज अहमद साहब ने बताया कि जब उन्होंने इन गायकों से पूछा कि आपको हिन्दी या उर्दू नहीं आती है तो आप कैसे इन गीतों को इतने बेहतर तरीके से गा पाते हैं और कैसे इन गीतों को गाते समय भावनाओं में बह जाते हैं. उन्होंने पूछा कि क्या आप सब भारत की फिल्में देखते हैं या वहां के गानों को सुनते हैं. तब उन्होंने कहा नहीं. तब फिरोज अहमद साहब ने पूछा कि फिर आप सब रफी साहब के गाने कैसे गाते हैं. तब उन कलाकारों ने बताया कि वे सारे संगीत में डॉक्टरेट हैं और जब वे डॉक्टरेट कर रहे थे तब उनके पाठ्यक्रम में वॉयस कल्चर के अध्याय  थे और उस अध्याय में रफी साहब की आवाज के विभिन्न नमूनों का विश्लेषण किया गया था. उन्हें मोहम्मद रफी की आवाज के सैम्पल्स के आधार पर वॉइस के बारे में समझाया जाता था कि शुद्ध आवाज क्या होती है.

श्री फिरोज अहमद ने बताया कि यह बात उनको भी पता नहीं थी कि विदेशों में कई विश्वविद्यालयों में रफी साहब के वाॅयस के सैम्पल्स के आधार पर वॉइस कल्चर के बारे में पढ़ाया जाता है. 

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इन कलाकारों ने बताया कि पीएचडी की पढाई के दौरान ही वे रफी साहब की आवाज के ऐसे दीवाने हो गए कि वे उन्हीं के गाने सुनते हैं और उन्हीं के गाने गाते हैं. 

श्री फिरोज अहमद साहब ने जो जानकारी दी वह हम भारतीयों के लिए चौंकाने वाली हो सकती है कि जिस गायक को अपने देश में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे लेकिन उसी गायक की आवाज की दुनिया दीवानी है और उनकी आवाज उनके लिए अध्ययन का शोध का विषय है. 

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मोहम्मद भारत के एकमात्र ऐसे गायक हैं जिन्होंने लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी या स्पैनिश, फारसी, अरबी और डच जैसी कई विदेशी भाषाओं में गाया है. दुनिया में ऐसे इक्के दुक्के गायक होंगे, जिन्होंने इतनी अधिक भाषाओं में गीत गाए हैं. ऐसे में वह सही मायने में विश्व गायक या अंतरराष्ट्रीय गायक हैं, जिन्होंने अलग अलग भाषाओं में गीत गाकर अलग अलग भाषा भाषी लोगों को लुभाया और उनके दिलों को जीता.

मोहम्मद रफी के अंग्रेजी में गाए हुए कुछ गीत रिकार्ड हुए और ये रेकॉर्ड जारी भी हुए और इसकी हजारों प्रतियां बिकीं थी. इन अंग्रेजी गीतों में पहला गीत 'द शी आई लव' है जो 'गुमनाम' (1965) फिल्म के मशहूर 'हम काले हैं तो क्या हुआ' के संगीत पर नए लिरिक्स चढ़ाता है. दूसरा गीत यही काम कालजयी गीत 'बहारो फूल बरसाओ' (1966) के साथ करता है और इसमें रफी साहब का अंग्रेजी शब्दों का उच्चारण एकदम सटीक नहीं है. लेकिन 'ऑल्दो वी हेल फ्रॉम डिफरेंट लैंड्स...द वर्ल्ड इज वन' नामक यह 49 साल पुराना गीत आश्चर्यजनक रूप से हमारे मौजूदा समय का सटीक मूल्यांकन करता है.

द शी आई लव

हम काले हैं तो क्या हुआ

बहारो फूल बरसाओ

ऑल्दो वी हेल फ्रॉम डिफरेंट लैंड्स...द वर्ल्ड इज वन

जब ये रेकॉर्ड जारी हुए तो सुनने वालों ने यह सोचकर हैरत में पड़ गए कि कैसे रफी साहब ने पूर्ण निपुणता के साथ और अंग्रेजी के बिल्कुल सही एक्सेंट के साथ उन गीतों को गाया है मानो अमरीका और ब्रिटेन में पला बढ़ा कोई गायक गा रहा हो या गीत उस समय भी खूब लोकप्रिय हुए थे.

इन गीतों को सुनकर सुनने वाले भी आश्चर्य में पड़ जाते हैं क्योंकि रफी साहब ने अंग्रेजी या अन्य भाषाओं के ऐक्सेंट का ही पूरा ध्यान रखा है. 

रफी साहब की इन्हीं खासियतों के कारण लोग उनको विलक्षण प्रतिभा वाला गायक कहते हैं. लेकिन हमारे लिए यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि आवाज के इस जादूगर को, जिसकी आवाज की दुनिया दीवानी है और जिसकी आवाज को दुनिया भर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों अध्ययन के लिए सुरक्षित रखा गया है और जिस गायक की आवाज पर प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र अध्ययन और शोध कर रहे हैं उस गायक को हमने महज पद्मश्री के लायक समझा. सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न तो दूर की बात है, सरकार उनको दादा साहेब फाल्के पुरस्कार तक नहीं दे पाई है, जबकि मोहम्मद रफी के गानों के बल पर शोहरत हासिल करने वाले संगीतकारों, फिल्म निर्देशकों और अभिनेताओं को कहीं अधिक महत्वपूर्ण पुरस्कार मिल चुके हैं. 

लेखक के बारे में : 

विनोद कुमार मशहूर फिल्म लेखक और पत्रकार हैं जिन्होंने सिनेमा जगत की कई हस्तियों पर कई पुस्तकें लिखी हैं. इन पुस्तकों में "मेरी आवाज सुनो", "सिनेमा के 150 सितारे", "रफी की दुनिया" के अलावा देवानंद, दिलीप कुमार और राज कपूर की जीवनी आदि शामिल हैं.

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