Kavita Chaudhary: 'उड़ान' की तरह 'योर ऑनर' भी दर्शक को पसंद आयेगा पिछले दिनों सोनी टी.वी की 'उड़ान' नामक धारावाहिक ने एक बार फिर निर्मात्री, निर्देशिका तथा अभिनेत्री कविता चैधरी की याद ताजा करवा दी थी. दर्शकों के सामने कुछ साल पहले डी. डी. पर जारी इस धारावाहिक की इन्सपेक्टर कल्याणी सिंह उभर आयी थी By Mayapuri Desk 16 Feb 2024 in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर -श्याम शर्मा पिछले दिनों सोनी टी.वी की 'उड़ान' नामक धारावाहिक ने एक बार फिर निर्मात्री, निर्देशिका तथा अभिनेत्री कविता चैधरी की याद ताजा करवा दी थी. दर्शकों के सामने कुछ साल पहले डी. डी. पर जारी इस धारावाहिक की इन्सपेक्टर कल्याणी सिंह उभर आयी थी, जो उस वक्त दर्शकों में लोकप्रिय हुई थी. 'उड़ान' में कविता ने एक ऐसे पुलिस ऑफिसर की भूमिका निभाई थी, जो फर्ज के प्रति निष्पक्ष, ईमानदार और दृढ़ निश्चय की स्वामीनी थी. इस धारावाहिक के बाद कविता एकाएक छोटे पर्दे से गायब हो गई. और बरसों बाद सोनी पर रिटेलीकास्ट 'उड़ान' में उन्हें देख, एक बार फिर दर्शकों के दिमाग में कल्याणी सिंह की याद ताजा हो उठी. और अब कविता चैधरी अपने नये धारावाहिक 'योर ऑनर' को लेकर एक बार फिर सोनी पर ही दर्शकों के समक्ष आ रही है. लेकिन इस बार वे पुलिस ऑफिसर की बजाये एक वकील के रूप में दिखाई दे रही है. कविता चैधरी नैशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से ग्रेजुऐट रही हैं. बाद में एन. एस. डी. और एफ.टी.आई के कोर्स भी किये. उसके बाद वे स्टेज पर आ गई. और उन्होंने 'खामोश अदालत जारी है' तथा 'राइडर्स टू द सी' जैसे विख्यात नाटकों का निर्देशन तथा उनमें अभिनय भी किया. बाद में उन्होंने कुछ विज्ञापन फिल्मों में काम किया. बाद में उन्होंने कुछ विज्ञापन फिल्मों में काम किया. उनमें से 'सर्फ' के एड में वे ललिताजी के नाम से लोकप्रिय हुई. साथ ही उन्होंने बाद में विज्ञापन तथा वृतचित्रों की निर्माण तथा निर्देशन शुरू कर दिया. उनकी बहुमुखी प्रतिभा का नया उदाहरण था धारावाहिक 'उड़ान'. इस धारावाहिक के बाद वे लेखन में जुट गई. उन्होंने कुछ फिल्में भी लिखी. उनकी ताजा लिखी फिल्म का नाम है 'बधाई हो बधाई' जिसमें अनिल कपूर तथा ऐश्वर्य राय जैसे एक्टर काम कर रहे है. और इस फिल्म का निर्देशन कर रहे सतीश कौशिक. हाल ही में कविता से हुई बातचीत का सारंाश प्रस्तुत है. आपका नया धारावाहिक 'योर ऑनर' किन किन तथ्यों पर आधारित है? कविता कहती है.'ये कहानी हैं उन तमाम लोगों की, जो इस समाज की, और इस देश की न्याय व्यवस्था से जाने अनजाने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए है. तीन मुख्य पात्रों द्वारा कही जाने वाली ये कहानी विधि, समाज और जीवन के प्रति उनके अलग अलग रवैये को टटोलती है. कानून और न्याय व्यवस्था को ये कहानी, हम इन तीन पात्रों के नजरिये से देखेंगे, जिनमें से एक है, कौशल्या, एक आदर्शवादी होनहार वकील जिसके लिए सफलता जीत पाना नहीं बल्कि न्याय पाना है. दूसरा पात्र विकास मेहता, एक अवसरवादी शातिर दिमाग नौजवान है, जो अपनी महत्वकांक्षाओं को हर हाल में पूरा करना चाहता है. और जिसका एकमात्र मकसद है 'जीतना' किसी भी कीमत पर. तीसरा पात्र है सब इन्सपेक्टर सूरज कुमार, जो एक बुद्धिमान, पर उलझा हुआ नौजवान है. जो अपने जीवन के रहस्यों को और उसकी गुत्थियों को ही सुलझा नहीं पा रहा. अंत में मैं कहूंगी कि 'योर ऑनर' की कहानी लोगों के और समाज के उन सब पहलुओं से होकर गुजरती है, जिसकी नींव एक न्यायिक समाज है. क्या ये सच्ची घटनाओं पर आधारित धारावाहिक है? नही. ऐसा कतई नही है. जैसा कि आज कुछ प्रोग्राम चल रहे है, जो सत्य घटनाओं पर आधारित है. इसमें ऐसा कुछ नही. इसमें हम एक कहानी को लेकर चले है. और उसे कुछ इस तरह से प्रस्तुत कर रहे है. और उसे कुछ इस तरह से प्रस्तुत कर रहे हैं, जो एक आम आदमी को अपनी या अपने आस-पास घटी घटना सी प्रतीत हो. कल्याणी सिंह से कौशल्या कितनी अलग है? कविता कहती है. कल्याणी सिंह उस समय की औरत थी. और कौशल्या आज की नौजवान पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती एक जीनियस लड़की है. लेकिन इनमें समानता ये है कि दोनों की आर्दशवादी है. इस धारावाहिक में ज्यादातर अनजाने चेहरे है. क्या ये कहानी को वास्तविकता प्रदान करने के लिए गढ़े हैं या बजट की खातिर? शायद ऐसा तो नहीं है. कविता कहती है. मैं भी दर्शकों के लिये अनजानी नहीं और सचिन खेडेकर भी जाने-पहचाने अदाकार है. और तीसरा पात्र विकास मेहता यानि अली रजा नामदार इससे पहले दर्जनों धारावाहिकों तथा विज्ञापन फिल्मों में काम कर चुके हैं. हां एक दो पात्र है जैसे याकूब पटेल जो इसमें माफिया डॉन बन है. ये भी काफी अच्छे अदाकार हैं. इसका हल्का सा नमूना आप एक एपिसोड में देख ही चुके है. इससे जहां तक बजट की बात है तो बजट के लिए हमने कहानी से समझौता नहीं किया है. हां हमने इतना जरूर किया है कि जिस तरह फिल्मों में या अन्य धारावाहिकों में कोर्ट या अन्य दृश्यों में लिबर्टी ली जाती है. वो हमने न लेते हुये, उन्हें वास्तविक रंग देने की कोशिश की है. शायद इसीलिये आपको पात्र भी नये-नये लग रहे हैं. फिल्मों में या धारावाहिकों में जो भाई (डॉन) दिखाये जाते है, वे बेशक कानून के दुश्मन होते है. लेकिन जनता के बीच मसीहा के रूप में जाने जाते है. क्या आपका 'डॉन' भी कुछ ऐसा ही है क्या? जो आप कह रहे हैं, वो दृष्टिकोण मेरा नहीं. मुजरिक, सिर्फ मुजरिम होता है. वो शातिर हो सकता है, समाज सेवक नहीं. लिहाजा इस धारावाहिक में भी याकूब पटेल एक शातिर 'डॉन' है. जो हमेशा कानून को धत्ता बताता रहता हैं. आप 'उड़ान' से 'योर ऑनर' के बीच के वक्फे में क्या करती रहीं? देखिये लिखना मेरा शौक रहा है. अब लिखना और फिर उसे निर्देशित करना दो अलग-अलग काम है, और इनमें वक्त भी लगता है. 'उड़ान' के बाद मैंने कुछ डाकूमेन्टरी लिखी और निर्देशित की. इसके अलावा कुछ फिल्में भी लिखी. बोनी कपूर की फिल्म 'बधाई हो बधाई' में लिखने के साथ-साथ डायरेक्ट भी करने वाली थी. लेकिन बाद में ऐसा हो नहीं पाया. दूसरे इस सीरियल पर भी मैंने काफी रिसर्च की, कितने ही कोर्टो में गई, कितनी ही कानून की किताबें पढ़ी. तथा कुछ मशहूर वकीलों से भी मशवरा किया है. लिहाजा इस धारावाहिक के कानूनी सलाहकार है वकील जय चिनाॅय (सिविल) तथा एडवोकेट श्रीकांत भट्ट (क्रिमिनल). श्रीकांत जी तो इसमें अपने ही रूप में नजर भी आयेंगे. बस यही सब काम थे, जो मैंने इस बीच किये. 'उड़ान' के बाद आज तक धारावाहिकों में क्रांतिकारी बदलाव आये हैं. और दर्शकों में भी. लिहाजा क्या इस पक्ष पर भी आपका ध्यान तो जरूर गया होगा? हां, आज बदलाव तो आया ही है. कविता के शब्दों में व्यंग्य आ गया. आज प्रोग्राम मशीनी हो गये हैं. उनमें ग्लैमर आ गया है. पाश्चात्यापन आ गया है. पहले धारावाहिकों का एक स्तर होता था. लेकिन आज सब कमर्शियल हो चुके हैं. लेकिन टेक्नीकली विकास हुआ है. एक्टिंग में वास्तविकता आयी है. लेकिन मैं इस दौड़ में शामिल नहीं हूं. मैंने इतना समय इसीलिये लिया है कि मैं अपने दर्शकों को कुछ नया दे सकूं. आजकल धारावाहिकों के शीर्षक भी फिल्मों से प्रेरित होकर रखे जाने लगे है. क्या 'योर ऑनर' दर्शकों को अपील कर पायेगा? देखिये जो शीर्षक कहानी से सूट होता हो, वही शीर्षक होना चाहिये. कविता कहती हैं. अब इस प्रोग्राम की कहानी कुछ और दर्शाती है. और इसका टाइटल कुछ और हो तो ठीक नहीं होगा. बल्कि ये शीर्षक भी मुझे एडवोकेट श्रीकांत भट्ट जी ने ही सुझाया था. जो कि कतई सटीक था. क्या उसमें अलग अलग घटनायें दर्शाइ गई हैं? नहीं, जैसा कि शायद मैंने पहले भी कहा था कि ये एक रनिंग स्टोरी है और बीच-बीच में इसमें पात्र आते रहेगें जाते रहेगें. 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