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Guru Dutt जन्मशती पर विशेष स्क्रीनिंग: ‘Pyaasa’ से ‘Chaudhvin Ka Chand’ तक फिर चमकेगा क्लासिक सिनेमा

इस साल भारतीय सिनेमा के उस महान अभिनेता, निर्देशक और संवेदनशील रचनाकार गुरु दत्त (Guru Dutt) की 100वीं जयंती मनाई जा रही है. उनके फिल्मी सफर को केवल ‘क्लासिक’ कहना शायद कम होगा...

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Guru Dutt Pyaasa to Chaudhvin Ka Chand
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इस साल भारतीय सिनेमा के उस महान अभिनेता, निर्देशक और संवेदनशील रचनाकार गुरु दत्त (Guru Dutt) की 100वीं जयंती मनाई जा रही है. उनके फिल्मी सफर को केवल ‘क्लासिक’ कहना शायद कम होगा — उन्होंने सिनेमा को जिया, उसमें दर्द, प्रेम, अकेलापन और विद्रोह को पिरोया, और परदे पर एक ऐसी संवेदनशील भाषा गढ़ी जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है.

गुरु दत्त जिनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था (Vasanth Kumar Shivashankar Padukone), का जन्म 9 जुलाई 1925 को बैंगलोर (अब बेंगलुरु) में हुआ था. उन्होंने महज कुछ ही वर्षों के करियर में जो रचनात्मक ऊंचाइयां छूईं, वो आज भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील के पत्थर के रूप में दर्ज हैं. उनकी फिल्मों में न सिर्फ तकनीकी उत्कृष्टता थी, बल्कि वे इंसानी भावनाओं की गहराई को छूती थीं — जैसे कोई कविता, कोई नज़्म.

Mr. Vasanth Kumar Shivashankar Padukone, Bengaluru, Karnataka Tribute, Mr. Vasanth  Kumar Shivashankar Padukone Life History

Childhood of Guru Dutt

जन्मशती पर 4K में लौट रही हैं कालजयी फिल्में

गुरु दत्त की 100वीं वर्षगांठ (9 जुलाई,1925) को विशेष बनाने के लिए एनएफडीसी (राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम) और एनएफएआई (नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया) के सहयोग से अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट ने उनकी फिल्मों के 4K रिस्टोर वर्ज़न को देशभर के बड़े पर्दों पर प्रदर्शित करने का निर्णय लिया है. यह आयोजन 8 से 10 अगस्त 2025 के बीच देशभर के चुनिंदा सिनेमाघरों में किया जाएगा. 

Guru_Dutt_and_Dev_Anand_with_co-workers_of_Film_Jaal

इस दौरान जिन कालजयी फिल्मों को प्रदर्शित किया जाएगा, वे हैं:

Aar-Paar (1954): क्राइम और रोमांस का अनोखा मेला. 

Mr. & Mrs. 55 (1955): आधुनिक सोच और पारंपरिक मूल्यों की भिड़ंत. मधुबाला और गुरु दत्त की केमिस्ट्री आज भी दर्शकों को आकर्षित करती है. 

Pyaasa (1957)एक संवेदनशील कवि की आत्मा को झकझोर देने वाली कहानी. साहिर लुधियानवी के गीत और एस. डी. बर्मन का संगीत इसे अमर बनाते हैं. 

Chaudhvin Ka Chand (1960): लखनऊ की मोहब्बत और नज़ाकत से भरी प्रेमकथा. इसका टाइटल सॉन्ग ‘चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो...’ आज भी रोमांटिक गानों की सूची में शीर्ष पर है.

Sahab Bibi Aur Ghulam (1962): जमींदारी पतन और महिला की पीड़ा पर आधारित मार्मिक चित्रण. मीना कुमारी की बेमिसाल अदाकारी और दर्दभरे संवाद इसे क्लासिक का दर्जा देते हैं. 

इन सभी फिल्मों को 4K तकनीक में इस तरह संवारा गया है कि आज की पीढ़ी भी इनकी भावनाओं को उसी शिद्दत से महसूस कर सके, जैसी उनके समय में दर्शकों ने की थी.

Gauri Dutt and Karuna Dutt ने खुशी जाहिर की

Gauri Dutt and Karuna Dutt

गुरु दत्त के पोतियों गौरी दत्त और करुणा दत्त ने ‘प्यासा’ जैसी कालजयी फिल्म को फिर से बड़े पर्दे पर देखने की खुशी जाहिर की. उनके लिए यह सिर्फ पुनःप्रदर्शन नहीं, बल्कि गुरु दत्त की आत्मा को आज की पीढ़ी से जोड़ने का जरिया है. 

Sushil Kumar Agarwal ने बताया

Ultra Media CEO Sushil Kumar Agarwal Shares Insights

अल्ट्रा मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के सीईओ सुशील कुमार अग्रवाल ने बताया कि ये फिल्में जुलाई में भी रिलीज की जा सकती थीं, लेकिन तकनीकी रूप से 4K संस्करण को संपूर्ण रूप से तैयार करने के बाद ही रिलीज़ का निर्णय लिया गया. उनका मानना है कि क्लासिक फिल्मों के तीन तरह के दर्शक होते हैं — पारंपरिक प्रेमी, नए फिल्मकार और युवा दर्शक, जो इन फिल्मों की तारीफें सुनते आए हैं पर देखने का अवसर नहीं मिला. 

समाज को पर्दे पर उतारा

Guru Dutt and Dev Anand — Google Arts & Culture

Guru Dutt, Johnny Walker & Tun Tun - Mr. & Mrs. 55 (1955)

गुरु दत्त न केवल एक अभिनेता और निर्देशक, बल्कि एक द्रष्टा भी थे. उन्होंने अपने सिनेमा के ज़रिए समाज, रिश्तों और आत्मिक संघर्षों को परदे पर उतारा. उनका सिनेमा मनोरंजन से कहीं आगे जाकर दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता था.

दुख की बात यह है कि इतनी प्रतिभा से भरे इस कलाकार ने केवल 39 वर्ष की उम्र में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 10 अक्टूबर 1964 को उनका निधन हो गया. उनके जाने से भारतीय सिनेमा ने एक ऐसा रचनात्मक चिराग खो दिया, जिसकी लौ आज भी जल रही है.

गुरु दत्त अमर हैं

The restless artist

गुरु दत्त की फिल्में महज दृश्य नहीं, एक अनुभव हैं. उनकी 100वीं जयंती पर उनकी फिल्मों की बड़े पर्दे पर वापसी इस बात का प्रमाण है कि असली कला कभी मरती नहीं, वह समय के साथ और गहराई पाती है. उनका सिनेमा आज भी हमारे साथ सांस लेता है — एक शायर की तरह, जो कैमरे की भाषा में ज़िंदगी बयां करता है.

मायापुरी परिवार की ओर से गुरु दत्त जी को शत-शत नमन! आपका सिनेमा हमारे दिलों की धड़कन और भावनाओं की जुबान बनकर हमेशा जीवित रहेगा.

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