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‘मैने फिल्म‘व्हाट!ए किस्मत’ में यादगार किरदार निभाया है..’-आनंद मिश्रा

आनंद मिश्रा अब तक हृषिकेष मुखर्जी,सईद मिर्जा,कुंदन शाह, राजकुमार संतोषी, शंकर, डेविड धवन, कुंदन शाह, भरत रंगाचार्य, राज कंवर सहित कई निर्देशकों के निर्देशन में कई टीवी सीरियलों व फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.

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Anand Mishra

एंटरटेनमेंट  : मूलतः जबलपुर निवासी आनंद मिश्रा की बॉलीवुड में अपनी अलग शख्सियत है. वह रंगकर्मी, नाट्य निर्देषक,अभिनेता,व अभिनय प्रषिक्षक भी है. आनंद मिश्रा अब तक हृषिकेष मुखर्जी,सईद मिर्जा,कुंदन शाह, राजकुमार संतोषी, शंकर, डेविड धवन, कुंदन शाह, भरत रंगाचार्य, राज कंवर सहित कई निर्देशकों के निर्देशन में कई टीवी सीरियलों व फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.  घातक, दामिनी, बरसात, वक्त हमारा, अतंर्नाद, सरदार पटेल, अंदाज अपना अपना, मुझसे शादी करोगी, हर दिल जो प्यार करेगा, चाइना गेट, पुकार, नायक सहित कई फिल्मों में उनके अभिनय को सरहा जा चुका है. वह कई कलाकारों को एक्टिंग की टेनिंग भी दे चुके हैं. इन दिनों एक मार्च को प्रदर्षित होने वाली मोहन आजाद निर्देषित फिल्म ‘‘व्हाट! ए किस्मत’’ को लेकर सूर्खियों में हैं...

प्रस्तुत है आनंद मिश्रा से हुई बातचीत के अंश

आप काफी चुनिंदा फिल्में करते हैं. ऐसे में फिल्म‘‘ व्हाट! ए किस्मत’’ करने के पीछे क्या वजह रही?

-मेरे मित्र मोहन आजाद और उनकी पत्नी मधु मेरी अच्छी दोस्त हैं.मोहन आजाद पुराने रंगकर्मी हैं. उन्होने मधुर भंडारकर की फिल्म ‘चांदनी बार’ भी लिखी थी. एक दिन मधु जी का मेरे पास फोन आया कि मोहन आाजद एक फिल्म निर्देषित करने जा रहे हैं. जिसकी षूटिंग सिहोर,मध्यप्रदेष में होनी है. इसमें दादा का किरदार पहले सुरेंद्र राजन निभाने वाले थे, पर वह बहुत ज्यादा बूढ़े हो गए हैं. अब वह चाहते हैं कि आप वह किरदार उनकी फिल्म में कर लें. उन्होने बताया कि छोटे बजट की फिल्म है.. फल्म में टीकू तलसानिया को छोड़कर सभी नए कलाकार हैं.  लेकिन दादा का किरदार अति महत्वपूर्ण है. तो मैने यह फिल्म की. इस फिल्म को करने के पीछे मेरा मोह यह था कि मैं लंबे समय से भोपाल,मध्यप्रदेष नहीं गया था. तो मैने सोचा कि इसी बहाने भोपाल घूम आउंगा. यह अलग बात है कि मैं सिहोर में ही फंसा रह गया, भोपाल नही जा पाया.

आपके अनुसार फिल्म ‘व्हाट ए किस्मत’’ क्या है?

-यह फिल्म एक मध्यमवर्गीय इंसान की पैसा कमाने की लालसा,प्रेम पाने की लालसा,पत्नी के होते हुए भी दूसरी लड़की के प्रति आकर्षण की कहानी है,जिसमें कई छोटी छोटी घटनाएं हैं. कैसे एक व्यक्ति के जीवन में कभी कभी किस्मत अपना निराला खेल दिखाती है, जिसके चलते इंसान जो सोचता है, वह नही होता है. जो नही होना चाहिए,वह हो जाता है. सोच के विपरीत जो चीजें घट जाती हैं, वही इस फिल्म में देखने को मिलेगा. मैं आपको बताउं कि जब मेरे मित्र ने एक फिल्म बनाई, जिसे मेरे एक मित्र ने ही निर्देषित किया ,यह फिल्म सफल हो गयी और इरफान खान स्टार बन गए थे, तो मेरे मंुॅह से निकला था -‘व्हाट ! ए किस्मत’. इसी तरह मेरे साथ टीवी सीरियल ‘सर्कस’ में ं षाहरुख खान काम करते थे. हम लोग हर दिन एक साथ ही आते जाते थे. साथ में ही खाना खाते थे. पर षाहरुख खान को एक फिल्म मिली और वह स्टार बन गए. तो व्हाॅट ! ए किस्मत..कई बार ऐसा होता है. कई बार हमें किसी को देखकर नही लगता कि यह इंसान सफलता की इस बुलंदी पर चला जाएगा, पर जब वह उंचाई पर पहुॅच जाता है, तो उसे ही ‘व्हाट ! ए किस्मत’ कहते हैं. ऐसा ही कुछ इस फिल्म के नायक के साथ भी होता है. मैने मंुबई में तमाम ऐसे लोग देखे हैं, जिन्हे तकदीर का धनी ही कहा जाएगा. आप अनुराग कष्यप को ही देखिए. वह मेरे साथ पृथ्वी थिएटर पर नाटकों में अभिनय किया करते थे. मेरे द्वारा निर्देषित एक नाटक ‘‘बाबू जी’’ में अनुराग कष्यप ने अभिनय किया. मगर एक दिन उन्हे राम गोपाल वर्मा ने फिल्म ‘सत्या’ लिखने का मौका दिया. इस फिल्म के सफल होते ही उनकी तकदीर बदल गयी और एक दिन वह बहुत बड़े फिल्म निर्देषक भी बने. रूमी जाफरी भी मेरे साथी रहे हैं. मेरे दो  नाटकों में उन्होने अभिनय किया, बाद मंे वह भी बड़े लेखक व निर्देषक बने.

क्या सही बात निर्देषक मोहन आजाद के साथ लागू होती है?

-मोहन आजाद ने बीस साल पहले ‘‘चांदनी बार’ जैसी सफल व पुरस्कृत फिल्म लिखी. पर बाद में उन्हे भी काफी संघर्ष करना पड़ा. तो किस्मत हर जगह अपना काम करती है. बहुत सी चीजें हम लोगों को दिखायी नही देती. आप कितने प्रतिभाषाली हैं, कितने ज्ञानी हैं,कितना अचछा लिख सकते हैं अथवा कितना अच्छा निर्देषन कर सकते हैं,यह सब बाॅलीवुड में मायने नही रखता,मायने यह रखता है कि आप कितने बड़े मैन्यूप्युलेटर हैं. यहां सफलता का खेल बहुत अलग है. मोहन आजाद ने तो रिलायंस में नौकरी भी की. जीवन यापन के लिए इंसान को बहुत कुछ करना पड़ता है. उम्मीद है कि अब उनका भी वक्त बदलेगा. आप मान कर चलें कि वक्त ढलता सभी का है.

फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगें?

-मैंने दादा का किरदार निभाया है.  जो कि फिल्म की कहानी का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है. फिलहाल इससे अधिक बताना संभव नही है. इस फिल्म से जुड़े सभी कलाकार अपने किरदार के बारे में बता रहे हैं,मगर मेरे किरदार को लेकर चुप रहने के लिए कहा गया है. लेकिन जब आप फिल्म देखकर बाहर निकलेंगे,तो मेरा किरदार जरुर याद रहेगा.मेरा किरदार यादगार है.

इन दिनों बाॅलीवुड में कलाकारों का चयन कास्टिंग डायरेक्टर करने लगे हैं?

-हमारे यहां के फिल्मकार हाॅलीवुड फिल्में देखते हुए उन फिल्मों के टाइटल देखते रहते हैं. वहां पर कैमरामैन को डीओपी लिखा जाता है, तो वही अब बाॅलीवुड में भी हो गया. इसी तरह डांस डायरेक्टर की जगह कोरियोग्राफर आ गया. यह कास्टिंग डायरेक्टर भी हाॅलीवुड फिल्मों की देन है. मेरा तो कास्टिंग डायरेक्टरों से बहुत कम तालुकात पड़ा है. मैने कास्टिंग डायरेक्टरों के कहने पर कुछ एड फिल्में जरुर की हैं. मुझे लगता हे कि जो मंुबई में अभिनेता बनने आए थे,वह अभिनेता नहीं बन पाए,तो कास्टिंग डायरेक्टर बन गए. कई तो दूसरे कलाकार की बजाय खुद को ही किसी न किसी किरदार में कास्ट कर लेते हैं. मेरी समझ में नही आता जिस कहानी को मैने लिखा है,उसके किरदार को मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है? अगर मैं किसी से कहता हॅूं कि वह मुझे इस तरह का किरदार निभाने वाले कलाकार का नाम सुझाए और कास्टिंग डायरेक्टर अपनी पसंद के पांच कलाकारों के नाम मुझे देता है, तो वह मेरी पसंद के कैसे हो सकते हैं? पर मुझे तो उसके द्वारा भेजे गए पंाच में से किसी एक को मजबूरन ही चुनना पड़ेगा. इसके अलावा निर्माता जो पैसा देगा, वह पूरे पैसे उस कलाकार को नही मिलेगें, उसमें से कास्टिंग डायरेक्टर अपनी दलाली काट कर उसे देगा,तो यह दलाली वाला काम हो गया. तो यह कास्टिंग डायरेक्टर पूरी तरह से आयातित संस्कृति है. हाॅ! इससे निर्माता के अपने फायदे हैं,अन्यथा वह कास्टिंग डायरेक्टर को तीस से पचास लख रूपए क्यों दे रहा है? क्या पहले बिना कास्टिंग डायरेक्टर के राज कपूर,बी आर चोपड़ा या षक्ति सामंता ने फिल्में नही बनायी. ‘दो रास्ते’ ,‘अराधना’?मुगल ए आजम’ सहित हजारों फिल्मों के निर्माण के वक्त कास्टिंग डायरेक्टर नही थे. निर्देषक को अपने आप पर भरोसा होना चाहिए. यदि निर्देषक को अपने आप पर भरोसा नही है तो फिर वह कैसा निर्देषक..? कास्टिंग डायरेक्टर तो लड़के व लड़कियों दोनो से कम्प्रोमाइज करने के लिए कहते हैं.

आप तो कई कलाकारों को टेनिंग भी देते हैं?

-जी हाॅ! मेेरे मित्र व लेखक निर्देषक रूमी जाफरी ने एक बार मुझे जैकी भगनानी को ट्ेनिंग देने के लिए कहा था. तभी से यह काम कर रहा हॅूं. यहां से वॉयस मॉड्यूलेशन, एक्सप्रेशन, स्पीच, डिक्शन, डायलॉग डिलीवरी, बॉडी लैंग्वेज आदि सिखाने -पढ़ाने का काम शुरू हुआ. फिल्म स्टार से लेकर न्यू कमर तक को ट्रेनिंग देने लगा. कटरीना कैफ जब नई-नई भारत आई थीं, तब डेविड  धवन और रूमी जाफरी ने उन्हें हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी मुझे दी थी. राम गोपाल वर्मा की फिल्म के लिए निशा कोठारी को, मैं तेरा हीरो के लिए नरगिस फाखरी को, नो एंट्री के लिए सेलिना जेटली सहित जान्हवी कपूर, नीतू चंद्रा, हेजल कीथ, ताहा शाह, रिया सेन, एवलिन शर्मा, पत्रलेखा सहित 25 कलाकारों को ट्रेनिंग दे चुका हूं. वरुण धवन को तो जयशंकर प्रसाद की रचना इसलिए याद कराता था ताकि उनका वाणी दोष खत्म हो. इस समय अमेरिका से लेकर साउथ इंडिया के दो-तीन शिक्षित एक्टर को लैंग्वेज और एक्टिंग की ट्रेनिंग दे रहा हूं.

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