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श्रावण का महीना भगवान शिव का महीना माना जाता है. इस पावन मास के पहले मंगलवार पर धीरज जी शिवलोकवासी हो गए हैं. याद आती है हमें उनके शिव भक्ति की बातें...
बात कोई 1982-83 के दिनों की है. धीरज कुमार के पर्सनल प्रचारक ब्रजेश दुबे हुआ करते थे. जब कभी हम जुहू के लिडो सिनेमा के आसपास हुआ करते थे, दुबे जी हमें अपने साथ धीरज कुमार के ऑफिस लेकर चले ही जाते थे. संगीता अपार्टमेंट से लगा हुआ था ब्लू डायमंड बिल्डिंग, जिसमे धीरज जी का ऑफिस था. संगीता में बहुत से फिल्म वाले रहा करते थे जहां हमसब प्रेस वाले जाया करते थे और ब्लू डायमंड में एक कमरा कपड़े के पर्दे से दो हिस्से में बंटा था जिसमें आधे में धीरज जी का ऑफिस था. ब्रजेश दुबे बिना पेमेंट पाए धीरज जी के दोस्त- पीआरओ थे, इसलिए जब जाते थे वहां धीरज जी भजिया और चाय मंगाते थे. अखबार के पन्ने में लिपटी तेल की भजिया या फिर भजिया-पाव हम बड़े चाव से खाते थे. धीरज जी खुद नहीं खाते थे. कहते थे उन्हें सुट नहीं करता. जूबी जी (उनकी पत्नी जूबी कोछर) ने बताया था कि वह "ऐसे ही हैं. इनके भाई साहब ने बताया था कि ये बचपन में बीमार हुए थे, बीमारी से आजतक डरे हुए हैं और खाना-पीना फूंक फूंक कर करते हैं."
हां, जो मैं कहना चाहता था वो बात यह थी कि आधे कमरे के उस ऑफिस में भी धीरज जी की एक लकड़ी की साधारण सी टेबल पर एक किनारे भगवान शिव की प्रतिमा हुआ करती थी. धीरज जी बात करते थे और बीच बीच मे भगवान शिव की फोटो को निहारकर कहा करते थे- "सब इनकी कृपा है. जब चाहेंगे सब हो जाएगा." आस्था की ही बात थी कि सब हो गया, होता गया. उनका लिडो के पास का छोटा सा ब्लू डायमंड का ऑफिस वीरा देसाई स्थित कैलास बिल्ड़िंग में बड़े दफ्तर में तब्दील हो गया. न सिर्फ इस बिल्डिंग का नामकरण शिव के दूसरे नाम कैलाश पर किया गया था बल्कि शिव की तस्वीर भी दीवाल की नक्काशियों पर है. फिल्मों में छोटे बड़े रोल करते हुए वो समय आ ही गया जब वह दूरदर्शन चैनल के किंग मेकर कहे जाने लगे थे. एक टाइम में उनकी स्थिति भगवान भोलेनाथ की कृपा से ऐसी बनी जैसी बाद में उनके ही बगल की बिल्डिंग में भगवान बाला जी की कृपा से एकता कपूर की बालाजी टेली फिल्म्स की बनी. शायद यह गॉड की ब्लेसिंग ही है जिसपर बॉलीवुड से टॉलीवुड तक फिल्म वाले विश्वास करते हैं. धीरज कुमार का अपार विश्वास था भगवान शिव पर.
धीरज जी के किये गए कामों की लंबी फेहरिस्त है. क्रिएटिव आई के निर्देशक व मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारियों से पहले वह एक अभिनेता थे. उनपर मनोज कुमार का असर था. मनोज कुमार ही उनके आदर्श थे. जिसकी छाप उनके कामों पर दिखाई देती है. मनोज कुमार भारत भक्त थे और धीरज शिव भक्त. ब्लू डायमंड के आधे ऑफिस में एकबार ब्रजेश दुबे ने धीरज जी को बताया था कि वे सिद्धि विनायक मंदिर दर्शन करने जा रहे हैं, धीरज जी ने उनको 101 रुपए दिए, बोले- "दुबे जी इसका प्रसाद लेकर चढ़ा देना." बात जो भी रही हो उसदिन, धीरज कुमार ने 101 रुपए अपना गुलक तोड़कर निकाला था. उसके बाद तो लक्ष्मी उनपर बरसती चली गयी थी.
'ओम नमः शिवाय' की शूटिंग गोरेगांव पूर्व में सेट लगाकर होती थी. जब हम वहां जाते, धीरज जी हंसी में हमें छेड़ने वाले अंदाज में कहते थे- "भगवान का दर्शन किया?" इंट्रेंस पर ही एक शिव की बड़ी सी प्रतिमा बनवाकर रखी गयी थी. जहां अंदर घुसनेवाले हर किसी को भगवान की पूजा करते हुए जाते देखना धीरज जी को प्रसन्न कर देता था. कैलाश बिल्डिंग के बड़े ऑफिस में धीरज कुमार के बैठने की जगह बगल में भगवान शिव की एक बड़ी प्रतिमा रखी हुई थी. बात करते हुए वह बीच बीच मे मूर्ति को छूकर प्राणाम कर लिया करते थे- "ये चाहेंगे तो जरूर हो जाएगा." और उनके पास सब कुछ आगया जो वह चाहते थे.
शिव-मास सावन के महीने में उनका 80 वर्ष की उम्र पूरी करके चले जाना, दुखद जरूर है, पर उनके संस्थान से जुड़े कर्मियों का कहना है कि "साहब सीधे स्वर्ग जाएंगे इसीलिए भगवान ने उन्हें इस माह में बुलाया है.
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