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Film Review Sweet Dreams: सपनों का हकीकत से वास्ता..?

जे आर आर टाल्किन ने कहा था- "एक सपना हजारों वास्तविकताओं से अधिक शक्तिशाली होता है." इसमें कौन कितना यकीन करता है, पता नही... मगर लेखक व निर्देशक विक्टर बनर्जी...

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Film Review Sweet Dreams सपनों का हकीकत से वास्ता..

रेटिंगः तीन स्टार
निर्माता: ज्योति देशपांडे, नेहा आनंद, प्रांजल खधड़िया
पटकथा: विक्टर मुखर्जी
संवादः अलका शुक्ला, विक्टर मुखर्जी
निर्देशकः विक्टर मुखर्जी
कलाकारः मिथिला पालकर, अमोल पराशर, मियांग चांग, सौरा सेनी मैत्रा, मोहिनी सिंपी, आयशा अदलखा, फेय डिसूजा, वंदना पाठक, प्रगति मिश्रा, निशा बजाज, व अन्य
अवधि: एक घंटा उन्चास मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिजनी

जे आर आर टाल्किन ने कहा था- "एक सपना हजारों वास्तविकताओं से अधिक शक्तिशाली होता है." इसमें कौन कितना यकीन करता है, पता नही... मगर लेखक व निर्देशक विक्टर बनर्जी ने अपनी फिल्म 'स्वीट ड्रीम्स' में सपनों में देखे गए पात्रों की तलाश के इर्द गिर्द एक कहानी बुनी है. यूथ ओरिएंटेड यह फिल्म 24 जनवरी से हॉट स्टार डिजनी पर स्ट्रीम हो रही है.

स्टोरीः

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फिल्म की शुरुआत से पहले  जे आर आर टाल्किन का कहा हुआ उपरोक्त वाक्य ही आता है. उसके बाद फिल्म शुरू होती है. दो इंसानों केनिथ फर्नाडिश (अमोल पराशर) और दिया जय सिंह (पालकर) से. यह दोनो सपने में एक काफी शॉप में  मिलते हैं, बातें करते हैं... पता चलता है कि पिछले एक सप्ताह से यही सपना दोनो देख रहे हैं. इससे परेशान होकर केनिळा फर्नाडिश एक मनोवैज्ञनिक डाक्टर (फेय डिसूजा)  के पास पहुँचता है, तो वहीं दिया राज सिंह अपनी सहेली तनुश्री दीक्षित (मोहिनी सिंपी) से इस सपने के बारे में बात करती है. केनिथ सोशल मीडिया पर छाया रहता है, वह एक सोशल मीडिया इंफ्यूलेंसर है. जबकि दियाराज सिंह कई तरह के काम करती है. उसकी मां ने दूसरी शादी कर रखी है. इधर दिया का रोमांस  ईशान (मियांग चांग ) से चल रहा है. ईशान के पिता कनाडा से मुबई आते हैं, तो वह अपने माता पिता से दिया को होटल में मिलवाता है. तब दिया को पता चलता है कि ईशान और उसके माता पिता ने योजना बना ली है कि शादी के बाद ईशान व दिया भी कनाडा में ही रहेगें. केनिथ अपने दोस्तों के साथ खुली जीप मे बैठकर अलीबाग वीकेंड मनाने जाता है. जहां सड़क पर उसे बाइक पर ईशान के साथ पीछे बैठी दिया नजर आती है. केनिथ जीप से उतर कर उस बाइक के पीछे कुछ दूर तक भागता है, पर फिर बाइक आँखों से ओझल हो जाती है. दिया भी केनिथ को देखकर आश्चर्य चकित होती है, पर वह ईशान से बाइक रोकने के लिए नहीं कह पाती. अब केनिथ अपने तरीके से दिया को तलाशना चाहता है. तभी अलीबाग में केनिथ की मुलाकात रूप (सौरासेनी मैत्रा) से होती है, जो कि एक ज्वेलरी ब्रांड में मार्केटिंग मैनेजर है और वह सोशल मीडिया पर केनिथ को फालो करती है. केनिथ रूप को अपने सपने व उस लड़की यानी कि दिया राज सिंह की तलाश के बारे में बताता है. वह यह भी बताता है कि वह उसका नाम वगैरह कुछ नही जानता. रूप उसका साथ पाने के लिए सपनों की लड़की की तलाश करने के उपाय बताती रहती है. उधर दिया को उसकी सहेली तनुश्री राय देती रहती है. अंततः सोशल मीडिया पर दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए एक काफी हाउस में मिलने का समय देते हैं. दिया व केनिथ दोनो उसी काफी शॉप पर मगर अलग अलग शहरों की शाखाओं में पहुंचते हैं. इसलिए दोनों की मुलाकात नही हो पाती. उधर ईशान को दिया पर शक हो जाता है. दिया उससे सपना और सपने वाले लड़के की तलाश की बात करती है. इसी पर दोनों के बीच अलगाव हो जाता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः केनिथ की मुलाकात पुणे शहर में एक कार्यक्रम के दौरान दिया राज सिंह से होती है... फिर क्या होता है? रूप का क्या कदम उठाती है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए तो फिल्म ही देखनी पड़ेगी.

रिव्यूः

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सबसे पहली बात सपना, प्रेम व यूथ ओरिएंटेड यह एक साफ सुथरी फिल्म कही जा सकती है. इसमें कहीं भी सेक्स का तड़का नही डाला गया है. 'लव लस्ट एंड कंफ्यूजन' तथा "लकड़बग्घा" के बाद बतौर लेखक व निर्देशक विक्टर मुखर्जी की 'स्वीट ड्रीम्स' तीसरी फिल्म है. लेखक व निर्देशक एक बेहतरीन कांसेप्ट को चनुा, मगर वह इसे ठीक से एक्जक्यूट नही कर पाए. जरुरत से ज्यादा इंस्टाग्राम यानी कि सोशल मीडिया पर निर्भरता ने कहानी की रोचकता पर ब्रेक लगाने का काम किश है. इस कहानी में कई अन्य लेअर हो सकते थे,जो कि लोगो के दिलो तक ज्यादा जल्दी पहुँचते. फिल्मकार ने प्यार, आकांक्षाओं और आधुनिक जीवन की जटिलताओं पर एक अंतर्दृष्टिपूर्ण प्रतिबिंब इस फिल्म में पेश करने का प्रयास किया हैं. वास्तव में फिल्मकार ने हर इंसान को एक संकेत दिया है कि खुद को खोजना आसान नही होता. कई बार लोग खुद को खोजते हुए सपनों की दुनिया में खोकर अपना सर्वस्व लुटा बैठते हैं. पर वह जमीनी सतह पर सच्चाई के साथ चलते हुए अपनी तलाश करें, तो वह बहुत कुछ पा सकते है. यह जिंदगी का सकून भी हो सकता है. बतौर निर्देशक विक्टर मुखर्जी ने फिल्म का अंत बहुत सही किया है, मगर वह दिया के मन की उलझनों को ठीक से परदे पर नही ला सके. इसके अलावा फिल्म दिया के पिता और दिया के माता पिता के बीच अलगाव, दिया की मां की दूसरी शादी किस तरह के इंसान साथ हुई है, उस पर रोशनी नही डालती, जबकि इसका मनोवैज्ञानिक असर हर बच्चे पर पड़ता है. और उसका जीवन प्रभावित होता है. फिल्म की खूबसूरती है कि यह कोई बासी और उबाउ रोम कॉम वाली प्रेम कहानी नही है. कम से कम यह आम हीरो हीरोईन व विलेन की कहानी नही है.

एक्टिंगः

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भरोसेमंद नई पीढ़ी के युवक केनिथ फर्नाडिश के करेक्टर में अमोल पराशर छा जाते हैं. जिस संसार में सब कुछ परिवर्तनशील है, उसी में मायावी निश्चितताओं का पीछा करती दिया राज सिंह के करेक्टर में मिथिला पालकर बहुत क्यूट नजर आयी हैं. उनकी अभिनय प्रतिभय से लोग उनकी तरफ खींचे चले जाते हैं. रूप के किरदार में सौरासेनी मैत्रा अपनी सहायक भूमिका को दिए गए फ़ुटेज से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बनाती है. दिया की दोस्त तनुश्री के किरदार में मोहिनी सिंपी अपनी अभिनय क्षमता की छाप छोड़ जाती है. अन्य कलाकारों ने भी अच्छा अभिनय किया है!

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