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REVIEW Stree 2: फैक्ट्री में बनी अविश्वसनीय फिल्म...

फिल्म 'स्त्री 2' की कहानी वहीं से शुरू होती है,जहां 'स्त्री' की कहानी खत्म हुई थी. पहले भाग में  एक अनाम युवती ने असीमित शक्तियां पाने के लिए 'स्त्री' की चोटी काटकर अपनी चोटी में मिला ली थी...

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रेटिंगः डेढ़ स्टार
निर्माताः दिनेश विजन और ज्योति देशपांडे
लेखकः निरेन भट्ट (राज और डीके के 'स्त्री' में रचे किरदारों पर आधारित)
निर्देषक: अमर कौषिक
कलाकारः श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी, वरुण धवन और अक्षय कुमार
अवधिः दो घंटे तीस मिनट

हज

लेखक व निर्देशक जोड़ी राज और डीके ने लेखक सुमित अरोड़ा के साथ मिलकर निर्माता दिनेश विजन और निर्देशक अमर कौशिक के लिए एक हॉरर कॉमेडी युनिवर्स के लिए फिल्म 'स्त्री' लेकर आए थे,जिसके किरदारों ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली थी. 'स्त्री' कहानी में एक स्त्री छोटे शहर चंदेरी के पुरुशों को उठा ले जाती है. उसका अतीत मार्मिक है. उसके प्रेमी के साथ उसे जिंदा जला दिया गया, उसकी अपनी बेटी के सामने. और, जब 'स्त्री' का क्रोध शांत होता है और वह खुद ही उस नगर की रक्षक बन जाती है. जिन दीवारों पर पहले लिखा होता, 'ओ स्त्री कल आना', उन दीवारों पर लिखा रहने लगा, 'ओ स्त्री रक्षा करना'! पर पहले भाग में ही 'स्त्री' चंदेरी छोड़कर चली गयी थी. अब जब लोगों को पता चला कि छह साल आयी फिल्म 'स्त्री' के पात्र फिर से फिल्म 'स्त्री 2' में नजर आएंगे,तो लोगो ने जमकर एडवांस बुकिंग की. वैसे इन दिनों किस तरह से निर्माता कॉर्पोरेट बुकिंग कराता है,किस तरह से बाक्स आफिस के आंकड़े पेश करता है,इस पर बहुत कुछ कहा व लिखा जा चुका हैं हम इस पर बात करने की बजाय यह कहना चाहेंगे कि निर्माता इस फिल्म से बाक्स आफिस पर चाहे जितनी कमायी के दावे करे,पर सच यही हे कि 'स्त्री 2', 'स्त्री' के सामने काफी कमजोर फिल्म है. जब फिल्म निर्माण में कारपोरेट हावी होता है, तो बहुत कुछ बदलता है. जी हां! 'स्त्री 2' के साथ राज एंड डीके के अलावा सुमित अरोड़ा का कोई जुड़ाव नही है. इस बार 'स्त्री' के ही किरदारों को आगे बढ़ाते हुए कहानी लिखने की जिम्मेदारी निरेन भ्रट्ट ने सभाली है. और हम तो यही कहेंगे कि वह अजेंडे के साथ काम करते हुए सफल नही हो पाए. इस बार यह फिल्म डराती नही है.

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कहानीः

फिल्म 'स्त्री 2' की कहानी वहीं से शुरू होती है,जहां 'स्त्री' की कहानी खत्म हुई थी. पहले भाग में  एक अनाम युवती ने असीमित शक्तियां पाने के लिए 'स्त्री' की चोटी काटकर अपनी चोटी में मिला ली थी, जिसे विक्की चाहने लगा था. वह उसे अब भी चाहता है. उसके सपने भी देखता है और इस चक्कर में इतना पिट चुका है, कि असल में उसके सामने आने पर भी उसे यकीन नहीं होता. पर पहले भाग में स्त्री बस में बैठकर चली गयी थी. अब दीवारों पर लिखा है, 'ओ स्त्री रक्षा करना'. पहले भाग में स्त्री ने पुरुशों का अपहरण किया था, मगर इस बार 'सरकटा' नामक दानव उन युवा महिलाओं का अपहरण कर रहा है जो कि स्वतंत्र व आधुनिक जीवन जीने मे यकीन करने लगी है. गांव में सब कुछ ठीक ही चल रहा होता है, तभी अचानक एक दिन विक्की के सामने ही बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) की गर्लफ्रेंड चिट्टी को सरकटा तबाही मचाकर अपने साथ ले जाता है. विक्की (राजकुमार राव) को आज भी उस अनाम रहस्यमयी अनाम लड़की (श्रद्धा कपूर) का इंतजार है. तभी रूद्र(पंकज त्रिपाठी) को एक खत द्वारा चंदेरी पुराण के फटे हुए पन्ने मिलते हैं, जिससे निष्कर्ष निकलता है कि दिल्ली में रहने वाले जना (अभिषेक बनर्जी) की मदद से सरकटा का पता लगाया जा सकता है. पर जना असफल हो जाता है. इसी बीच रहस्यमयी अनाम लड़की(श्रद्धा कपूर) भी चंदेरी वापस आ गई है, मगर जब सरकटा रूद्र की नर्तक प्रेमिका शमा (तमन्ना भाटिया) का भी अपहरण कर लेता है और गांव के बिट्टू सहित कई मर्दों को अपने वश में करके महिलाओं की आजादी पर बंदिश लगवा देता है. तब रूद्र, श्रद्धा, बिक्की और जना सरकटा के संहार के लिए कमर कस लेते हैं.अब यह चैकड़ी चंदेरी को दानव से सुरक्षा देने में सफल होगी या नहीं, इसके लिए फिल्म देखनी ही पड़ेगी. वैसे फिल्म खत्म होने के बाद भी खत्म नहीं होती है, इसका ध्यान रखिएगा. क्योंकि, इसके बाद फिल्म में दो गाने और हैं. एक परदे पर श्रद्धा कपूर गाती दिखती हैं राजकुमार राव के साथ और दूसरा वरुण धवन के साथ, ऐसा क्यों? ये भी फिल्म देखकर ही समझना ज्यादा ठीक रहेगा.

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रिव्यूः

जब पटकथा कमजोर हो,तो कोई क्या कर सकता है. इंटरवल तक लगता है कि फिल्म की कहानी को लेखक व निर्देशक जबरन खींचने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके चलते यह फिम सिरदर्द बन जाती है. निर्देशक ने पटकथा पर ध्यान देने की बजाय साउंड इंजीनियर की मदद से अति लाउड साउंड परोसकर लोगों को जबरन हंसने पर मजबूर करते हुए नजर आए हैं. 'स्त्री' के मुकाबले 'स्त्री 2' में ठहराव की जबरदस्त की है,इसके अलावा इस बार नेचुरल हंसी का भी अभाव है. यह फिल्म एक फैक्ट्री में बनी फिल्म लगती है. इस बार चंदेरी वालों को परेशां करने दानव के रूप में 'सर कटा'आ गया है,पर 'सरकटा' की बैक्ग्राउड कहानी को ठीक से नही गढ़ा गया. कहानी दर्शकों को बांधकर नही रख पाती. दर्शकों को टकटकी लगाए फिल्म देखने पर मजबूर करने के लिए कहानी में टर्न व ट्विस्ट होने चाहिए,जो कि इसमें नही है. इतना ही नहीं फिल्म ''स्त्री 2'' की जो एडवास बुकिंग हुई है,उसके पीछे तमन्ना भाटिया पर फिल्माया गया 'रात बाकी है..' गाना है,मगर फिल्म के अंदर इस गाने को पूरा नही रखा गया है,इतना ही नही गाने के बीच में श्रृद्धा कपूर को कहीं 'सरकटा' की तलाश करते हुए दिखाकर पूरे गाने का मजा ही खराब कर दिया गया. फिल्म देखते समय 'मुंज्या' के घने जंगल और 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' की गुफाओं की याद आती है. इसमें जो 'जलते हुए लावा' की परते हैं, उसे डरवाना बताने में वीएफएक्स कमजोर साबित हुआ है.

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इसी तरह भेड़िया का वीएफएक्स काफी खराब है. भेड़िया रूकरूकर भागता है. इतना ही अचानक 'सरकटा' की गुफाओं में भेड़िया कैसे आ गया, यह स्पष्ट नही है. वास्तव में लेखक गहराइयों में जाने की बजाय सभी को मूर्ख बनाए रखने में ही अपनी जीत समझते रहे. एक बिंदु पर तो फिल्म इस बात की ओर ही इशारा करती है कि फिल्म देखने के लिए दिमाग घर पर रखकर आएं. 'सरकटा' की गुफा में जिस तरह से अपहृत औरतों को दिखाया गया है, वह आपत्तिजनक ही है. फिल्म में काला जादू की बात कर अन्धविश्वास को बढ़ाने का काम करती है.मूल फिल्म में एक आकर्षक मासूमियत थी, साथ ही चीजों को चित्रित करने के तरीके में एक मूल लकीर भी थी. जो कि 'स्त्री 2'से गायब है. स्त्री 2 में रहस्मयी लड़की बार बार विक्की को याद दिलाती है कि जीवन में उनकी सबसे बड़ी ताकत 'सच्चाई और सरलता' है - सच्चाई और सादगी. पहली फिल्म के विपरीत, यह टेलर-मेड लगती है. लेखक व निर्देशक ने इस बार 'महाभारत' के संजय की तरह जना के किरदार को रचा है,जो कि गुफा के बाहर बैठकर रूद्र व बिट्टू को बताता है कि गुफा के अंदर क्या हो रहा है. यानी कि लेखक व निर्देशक ने नई व आधुनिक पीढ़ी को पूरी तरह से अन्धविश्वासी व मूर्ख समझ लिया है कि वह जो कुछ दिखाएंगे, उसे वह सच मान लेगी. इतना ही नही निर्देशक अमर कौशिक ने इस फिल्म भी पितृसत्ता और लैंगिक गतिशीलता का अजेंडा बरकरार रखा है. वह भूल गए कि अब दर्शक अजेंडा प्रधान फिल्मों से दूर रहना चाहता है.

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लेखक व निर्देशक के दीमागी दिवालियापन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकटा को लुभाने के लिए रूद्र, अपनी प्रेमिका के नृत्य का आयोजन करने का सुझाव देता है. निर्माता दिनेश वीजन ,लेखक निरेन भट्ट व निर्देशक अमर कौषिक की सोच की दाद देनी पड़गी ,उनकी नजर में हमारे यहां 'सुपर हीरो' कोई इंसान नही भूत ही हो सकता है. इस फिल्म में अविश्वस्निये चीजों व घटनाक्रमों की भरमार है. फिल्म के कुछ 'वन लाइनर्स' कमाल के हैं. लेखक ने कुछ द्विअर्थी संवाद भी रखे है. फिल्म में अक्षय कुमार के कैमियो के भोपाल में जो पागल खाना रचा गया है,वहां पहुँचते ही फिल्म अति खराब हो जाती है. फिल्मकार ने पागलखाना की जो पुरानी धारणाओं से परे नई धारणा विकसित करने का प्रयास किया है. मगर 'पागलखाना' के अंदर रहने वालों का चित्रण अत्यंत आपत्तिजनक है. अक्षय कुमार  जैसा कलाकार  यहां एक विशेष उपस्थिति रखता है, लेकिन वह उस दाग को नहीं मिटा सकता जो फिल्म पर विनाशकारी असंवेदनशीलता छोड़ती है. हम तो फिल्म के लेखक व निर्देशक को सलाह देना चाहेंगें कि हॉरर फिल्म बनाने के लिए उन्हे 'रामसे ब्रदर्स' की फिल्में देखकर कुछ सीखना चाहिए अथवा कम से कम सलाहकार के तौर पर 'रामसे ब्रदर्स' की नई पीढ़ी के दीपक रामसे को अपने साथ कर लिया होता,जिन्होने 'जी हॉरर' शो के ढाई सौ से अधिक एपीसोड निर्देशत कर अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी.  

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एक्टिंगः

इस फिल्म में रहस्मयी अनाम लड़की के किरदार में श्रृद्धा कपूर की प्रतिभा को जाया कि गया है. उनका करेक्टर काफी छोटा है. रूद्र के करेक्टर में पंकज त्रिपाठी अपने आपको दोहराते हुए नजर आते है. लगता है कि अब उन्होंने मान लिया है कि बॉलीवुड की फिल्मों में अभिनय को लेकर मेहनत करना बेकार है. राज कुमार राव के अभिनय को देखकर उनकी 'बरेली की बर्फी' सहित कुछ फिल्में याद आ जाती हैं. जना के किरदार में कास्टिंग एजंसी चलाने वाले अभिषेक बनर्जी निराश करते हैं. वैसे 'स्त्री 2' के साथ ही प्रदर्शित फिल्म ''वेदा'' में सरपंच के किरदार में हैं,और वहां भी वह निराश ही करते है. बिट्टू के किरदार में अपारशक्ति खुराना को मेहनत करने की जरुरत है. बन्य सह कलाकार ठीक ठाक हैं.

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