/mayapuri/media/media_files/hfUsXvhgobJCRzBX27Ik.jpg)
रेटिंगः एक स्टार
निर्माताः जी स्टूडियो और एम्मी इंटरटेनमेंट
लेखकः असीम अरोड़ा
निर्देशकः निखिल अडवाणी
कलाकारः जॉन अब्राहम, शरवरी वाघ ,अभिषेक बनजी, तमन्ना भाटिया, आशीष विद्यार्थी, कुमुद मिश्रा, राजेंद्र चावला, दानिश हुसैन, परितोष सैंड, तान्या मल्हारा व अन्य.
अवधि: दो घंटे 31 मिनट
/mayapuri/media/media_files/ZnNU6LUAFcM5ZVzitTL3.jpg)
फिल्म "वेदा" के ट्रेलर लांच के अवसर पर जब एक पत्रकार ने जॉन अब्राहम से सवाल किया था कि वह हमेशा एक्शन फिल्में ही क्यों करते हैं? तो इस सवाल पर जॉन अब्राहम भड़क उठे थे और उस पत्रकार को 'स्टूपिड' यानी कि मूर्ख कहते हुए उसे धमकाया भी था. फिल्म 'वेदा' देखने के बाद अहसास हुआ कि उस पत्रकार ने उस दिन जॉन अब्राहम की दुःखती रग पर हाथ रख दिया था. दूसरी बात जॉन अब्राहम को बाक्स आफिस पर फिल्म 'वेदा' का क्या हश्र हो सकता है, इसका अंदाजा भी था, इसलिए उस दिन वह फ्रस्ट्रेशन के शिकार होने के चलते उस पत्रकार के साथ दुव्र्यहार कर बैठे. पर जॉन अब्राहम को उम्मीद थी कि 15 अगस्त के अवसर पर लगातार चार दिन की छुट्टी का फायदा उनकी एक्शन व संदेश परक फिल्म 'वेदा' को मिल गया, तो उनकी फिल्म सौ करोड़ कमा लेगी. मगर ऐसे आसार नजर नही आ रहे हैं. फिल्म में दावा किया गया है कि फिल्म "वेदा" दो सत्य घटनाओं, 2007 के बहुचर्चित मनोज-बबली और मीनाक्षी (2011) ऑनर किलिंग से प्रेरित है, पर इसे सेंसर प्रमाण पत्र मिलने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था.
/mayapuri/media/media_files/vBgIuVw9DgoMjZSsb1Sj.jpg)
कहानीः
फिल्म की कहानी राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली वेदा बेरवा (शरवरी वाघ) व आर्मी आफीसर अभिमन्यू के इर्द गिर्द घूमती है. वेदा बरवा जिंदगी में आगे बढ़ने के सपने देखती है, लेकिन गांव के दबंग सरपंच जीतेंद्र प्रसाद व उनका पुरा परिवार उसे बार-बार दबाते हैं. जी हां! इलाके का स्वयंभू प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह (अभिषेक बनर्जी) और उसका परिवार जात-पात के नाम पर लोगों पर तरह -तरह के जुल्म ढाते हैं. बॉक्सिंग सीखने की चाहत में वेदा की मुलाकात भारतीय सेना में मेजर रह चुके अभिमन्यु कंवर (जॉन अब्राहम) से होती है, जो उनके कॉलेज का नया बॉक्सिंग कोच है. गांव के प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह (अभिषेक बनर्जी) का छोटा भाई सुयोग प्रताप सिंह (क्षितिज चैहान) अपने दोस्तों के साथ अक्सर अभिमन्यू को अक्सर परेशान करता रहता है. जिले के 150 गांवों का प्रधान जितेंद्र गांव के मामलों को लेकर फैसला, कार्रवाई और पेशी खुद ही करता है. अपने विद्रोही स्वभाव के चलते उसका कोर्ट मार्शल हो चुका है. अभिमन्यू ने अपनी पत्नी राशि (तमन्ना भाटिया) के हत्यारे आतंकवादी को अपने वरिष्ठ की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए खुद ही मौत के घाट उतार देता है. इसलिए अब अभिमन्यु वेदा की मदद करता है. उधर जात पात के भेदभाव को समझने के साथ ही बार बार अपने पिता (उत्कृष्ट राजेंद्र चावला) द्वारा सावधान किए जाने के बावजूद वेदा का भाई विनोद, एक ऊंची जाति यानी कि अग्रवाल परिवार की लडकी आरती से प्रेम करता है. उसका भेद खुल जाने पर सामाजिक विरोध को देखते हुए दोनों घर से भाग जाते हैं. पर सरपंच जीतेंद्र प्रसाद सिंह उन्हें शादी कराने का लालच देकर वापस बुलाता है, शादी होने के बाद विनोद व अगवाल की लड़की आरती की सभी के सामने हत्या करवा दी जाती है. फिर प्रधान का कहर वेदा और उसकी बहन पर टूटता है. अपनी आंखों के सामने भाई व बड़ी बहन की दर्दनाक मौत देखकर वेदा भीतर से टूट जाती है. लेकिन अभिमन्यु का साथ मिलने पर वह गलत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला करती है. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.
/mayapuri/media/media_files/TihIR3BDgaQxRsUgwwo5.jpg)
रिव्यूः
पत्रकार के सवाल पर नाराज होने वाले जॉन अब्राहम की 'एक विलेन रिटन्र्स' व 'पठान' के बाद "वेदा' भी एक हार्डकोर एक्शन फिल्म है, जिसकी प्रष्टभूमि में एक सामाजिक मुद्दा भी है. पर उस दिन जॉन अब्राहम ने पत्रकार को बुरा भला कह कर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया था. दूसरी बात फिल्म 'वेदा' में जाति पात व सामाजिक भेदभाव का मुद्दा है, पर वह अंततः एक्शन, बदले की कहानी के साथ ही वर्चस्व को कायम रखने की लड़ाई में बदल जाता है. फिल्म 'वेदा' का सब्जेक्ट नया नही है. ऊंच-नीच, सामाजिक भेदभाव, ऑनर किलिंग और स्त्री उत्पीड़न जैसे विषयों पर सैकड़ो फिल्में बन चुकी हैं. बाड़मेर, राजस्थान के एक गांव की एक युवा दलित लड़की वेदा बेरवा जाति उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ खड़े होने का साहस जुटाती है. मगर कमजोर कहानी व पटकथा के चलते यह बात उभरकर नही आ पाती. लेखक असीम अरोड़ा ने इस पर गहन रिसर्च करने की जरुरत नही समझी. जिसके चलते जाति पांत, सामाजिक भेदभाव या ऑनर किलिंग कुछ भी सही ठंग से उभरकर नही आ पाया है. यहां तक कि बेरवा परिवार, जिसे सब कुछ झेलना पड़ता है, उसकी व्यथा,पीड़ा का अहसास दर्शकों को नही हो पाता है. फिल्म में यह साफ नही है कि कोर्ट मार्शल के बाद अभिमन्यू बाड़मेर क्यों आता है? इतना ही नही शुरुआत में करीबन पंद्रह मिनट का एक आतंकवाद विरोधी एक्शन द्रश्य है, जिसका फिल्म की मुख्य कहानी से कोई सीधा संबंध नहीं है. फिल्म को देखते हुए लगता है कि कालेज में सिर्फ वेदा एकमात्र लड़की है, जिसे इस प्रकार छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. तो वहीं कॉलेज में होली के गाने होलिया में उड़े रे गुलाल... देखकर लगता ही नहीं वहां पर किसी प्रकार का भेदभाव है. वेदा के भाई विनोद व अग्रवाल की लड़की आरती का प्रेम संबंध जग जाहिर होने पर सरपंच पंचायत में वेदा के पूरे परिवार को अपने सिर पर जूते रखकर खड़ा कर अपमानित किया जाता है. पर इस द्रश्य के अलावा इस कुप्रथा पर यह फिल्म मौन रहती है. यह लेखक की कमजोरी का नतीजा है. अफसोस कई सफल फिल्मों के लेखक व निर्देशक निखिल अडवाणी इन सारी गलतियों पर आंख बंद किए क्यो रहे?
/mayapuri/media/media_files/6NF2IAuyhCR9NzeVquV9.jpg)
/mayapuri/media/media_files/HdzK5mVIj925ArRMFDHi.jpg)
लेखक व निर्देशक की कमजोर उस वक्त एक बार फिर उजागर होती है जब क्लायमेक्स से पहले वेदा का यह कथन कि उसके पापा ने उसे कानून सिखाया है, तब सवाल उठता है कि वह अपने परिवार के साथ इसेस पहले कभी गांव से निकलने का प्रयास क्यों नहीं किया? फिल्म का क्लायमेक्स भी अति घटिया है. शुरुआत के तीस मिनट तक फिल्म यथार्थवादी होने का अहसास कराती है,फिर पूरी तरह से काल्पनिक व अविश्वसनीय घटनाक्रमों से युक्त हो जाती है. फिल्म के क्लामेक्स में भरी अदालत में सरपंच और उसके आदमी गोलियां चलाते हैं, बम फोड़ते हैं और अदालत के जज कमरा बंद कर छिपे रहते हैं? यह सब अविश्वसनीय ही लगता है. फिल्म नाम के अनुसार महिला प्रधान है, मगर पूरी फिल्म में जॉन अब्राहम का एक्शन ही हावी रहता है. यही वजह है कि वेदा खलनायकों से निपटने के लिए अपने मुक्केबाजी कौशल का बमुश्किल उपयोग करती है.
/mayapuri/media/media_files/WzKgvbCFrLBnq8eGFdKJ.jpg)
/mayapuri/media/media_files/sBo1CS9xtBc6QoHdgFoi.jpg)
एक्टिंगः
वेदा के किरदार में शरवरी वाघ निराश करती है. अभिमन्यू के किरदार में जॉन अब्राहम महज एक्शन करते ही नजर आए है. एक दो द्रश्यों में वह अपनी आंखों के भावों से काफी कुछ कहने की कोशिश करते हैं, पर जॉन अब्राहम को फिल्मों का चयन करते समय कंटेंट पर ध्यान देने की जरुरत है. वेदा के चाचा के अति छोटे किरदार को करने के लिए कुमुद मिश्रा क्यों तैयार हुए, यह तो वही जाने. फिल्म के खलनायक सरपंच जीतेंद प्रसाद सिंह के किरदार में अभिषेक बनर्जी अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे है. उनके चेहरे पर अक्सर प्लास्टिक की मुस्कान नजर आती है. गेहना के किरदार में तान्या मल्हारा का अभिनय ठीक है. आशीष विद्यार्थी की प्रतिभा को भी जाया किया गया है.
Read More:
Amitabh Bachchan ने परिवार के साथ बिताया दिन, कहा- 'समय की मांग है...'
इंडस्ट्री की बेरुखी ने जॉन अब्राहम को बनाया निर्माता,एक्टर ने बताई वजह
Adipurush के फ्लॉप होने पर Kriti Sanon ने शेयर किया अपना दर्द
Follow Us
/mayapuri/media/media_files/UKNU0d1YoAZpWsAKgIOo.jpg)
/mayapuri/media/media_files/NH5P0jK6NO6hjVAm7hK0.jpg)
/mayapuri/media/media_files/2025/10/24/cover-2664-2025-10-24-21-48-39.png)