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रेटिंग- 2.5 स्टार
निर्माता- गौतम और रोहिणी एलबी सिंह
कलाकार:- सुबोध भावे, शिवा सूर्यवंशी, शीना चौहान, संजय मिश्रा, अरुण गोविल, शिशिर शर्मा, हेमंत पांडे, गणेश यादव, ललित तिवारी, ट्विंकल कपूर
फिल्म के बारे में:
छोटे और सरल संवाद फिल्म को और भी यथार्थवादी बनाते हैं. तुकाराम ने जीवन के दर्शन को सरल शब्दों में समझाया है, जो फिल्म के विभिन्न दृश्यों में देखा जा सकता है.
कहानी:
प्रसिद्ध फिल्म निर्माता चंद्रकांत कुलकर्णी द्वारा निर्देशित 'तुकाराम' आपको तुकाराम बोल्होबा अंबिले के 'संत तुकाराम' बनने के सफ़र के बारे में बताती है. अपनी घोषणा के बाद से ही इस फिल्म की तुलना प्रभात बैनर की 'संत तुकाराम' से की जा रही थी और इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या यह फिल्म अपने 1936 के क्लासिक संस्करण से मेल खा पाएगी.
समीक्षा:
यह फिल्म बताती है कि कैसे एक साधारण व्यक्ति तुकाराम अपने साधारण जीवन और 'भगवान विट्ठल' में दृढ़ विश्वास के साथ एक 'संत' बन जाता है. पटकथा लेखक अजीत और प्रशांत दलवी के लिए इस फिल्म को बड़े पर्दे के अनुकूल बनाना एक बड़ा काम था. तुकाराम के बड़े भाई सावजी, छोटे भाई कान्हा, तुकाराम की दोनों पत्नियाँ रखमा और आवली, सभी किरदारों की अपनी अलग पहचान है, जिसका श्रेय पटकथा लेखकों को जाता है! छोटे और सरल संवाद फिल्म को और भी यथार्थवादी बनाते हैं. तुकाराम जीवन के दर्शन को सरल शब्दों में समझाते हैं, जो फिल्म के विभिन्न दृश्यों में देखा जा सकता है. फिल्म के कलाकार इन सरल संवादों की तारीफ़ करते हैं.
जितेंद्र जोशी द्वारा अभिनीत मुख्य पात्र 'तुकाराम' का विशेष उल्लेख आवश्यक है. जितेंद्र की तुलना विष्णुपंत पगनीस से करना अनुचित होगा, जिन्होंने 1936 की पिछली क्लासिक फिल्म में 'तुकाराम' का किरदार निभाया था. जितेंद्र द्वारा निभाया गया 'तुकाराम' पूरी तरह से निर्देशक की दृष्टि से बनाया गया है. अन्य कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाएँ बखूबी निभाई हैं. मंगेश धाकड़े द्वारा दिया गया बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को बहुत ज़्यादा शोरगुल से बचाता है. संक्षिप्त और कुशल संपादन के कारण फिल्म की कुल अवधि 2 घंटे 30 मिनट है, जो इसे देखने लायक बनाती है!
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