आज के दौर में गिने चुने फिल्मी दीवाने ही हैं जो उत्तम कुमार को जानते होंगे पर सन 50 से 70 के दशक तक उत्तम कुमार को बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री का शहंशाह कहा जाता था। ऐसा नहीं है कि उत्तम कुमार ने सिर्फ बांग्ला फ़िल्में ही कीं, उन्होंने कुछ हिन्दी फिल्में भी बनाई जिनमें छोटी सी मुलाकात, अमानुष, आनंद आश्रम, किताब, देश प्रेमी आदि शामिल हैं।
बात शुरुआत से करें तो कलकत्ता बंदरगाह पर अरुण कुमार चैटर्जी क्लर्क की नौकरी करते थे और साथ ही साथ एक्टिंग का शौक उन्हें स्टार थिएटर ज्वाइन करने के लिए मजबूर कर चुका था। ये बात 1945-48 की है जब फिल्मी दुनिया बंगाल से मुंबई की तरफ धीरे-धीरे शिफ्ट हो रही थी। अरुण कुमार उस वक़्त अपना कैरियर फिल्मों में शुरु करने वाले थे। उस दौर में थिएटर में जिस तरह लाउड एक्टिंग होती थी, उसी तरह कलाकार फिल्मों में भी करने लगे थे। हर बार ओवरड्रामेटिक होकर, हल्ला मचाकर कहना ट्रेंड बन गया था। लेकिन अरुण कुमार का स्टाइल कुछ और ही था। उन्होंने मायादुरे नाम की एक बांग्ला फिल्म में एक्स्ट्रा आर्टिस्ट के तौर पर कैरियर की शुरुआत तो की पर फिल्म रिलीज़ ही न हो सकी। फिर उन्होंने दृष्टिदान (1948) नामक फिल्म में बतौर हीरो काम किया, ये भी फ्लॉप हो गयी। तब उनको किसी ने सुझाया कि ये अरुण कुमार चैटर्जी नाम कुछ सूट नहीं कर रहा है, कोई स्टेज नाम लेकर आओ।
अरुण कुमार जबतक उस बात पर गौर करते, तबतक उनकी दूसरी फिल्म कामोना (1949) भी रिलीज़ हो गयी और ये भी फ्लॉप हो गयी। हालाँकि अरुण कुमार की एक्टिंग की तारीफ ज़रूर हो रही थी फिर भी, फिल्म का ना चलना भला कितने दिन तक उन्हें इंडस्ट्री में टिकाये रखता?
अपने नाम को वहम मानते हुए अरुण कुमार चैटर्जी बन गये उत्तम कुमार, और ये नाम उनके कैरियर में ऐसा उत्तम मार्ग लेकर आया कि अगली ही फिल्म मर्यादा हिट हो गयी। इसके बाद सहयात्री और बासु परिवार तो सिर्फ हिट हुईं लेकिन साढ़े चौहत्तर ने तो उन्हें बांग्ला स्टार बना दिया।
आप उत्तम कुमार की एक्टिंग देखें तो पायेंगे कि वो कहीं से भी एक्टिंग करते लगते ही नहीं थे। वो करैक्टर में ऐसे घुसते थे जैसे वो रोज़ ख़ुद उस करैक्टर को जीते हों।
यही ख़ासियत थी उनकी कि जब उन्होंने बांग्ला में निशि पद्मा की तो बॉलीवुड में शक्ति सामंत ख़ुद को रोक नहीं पाए और उस फिल्म का हिन्दी रीमेक बनाने की ठान ली। अब सोचिये उस हिन्दी रिमेक फिल्म का नाम क्या होगा?
शक्ति सामंत ने सबसे पहले उस फिल्म के लिए एक्ट्रेस फाइनल की, जो बांग्ला बाला शर्मिला टैगोर थीं। लेकिन शर्मिला टैगोर को एक ऐसे रोल के लिए तैयार करना बहुत मुश्किल था जिसमें उन्हें हीरो के साथ रोमांस तो करना ही था, पर बाद में एक बच्चे की माँ भी बनना था। शर्मिला पहले तो बालों में वाइटनर लगाने के लिए राज़ी ही न हुईं, लेकिन फिर जब शक्ति सामंत ने उन्हें कुछ सीन शूट करके दिखाए तो उन्हें लगा कि हाँ, इस रोल को मच्योर दिखाने के लिए कुछ बदलाव तो करने होंगे।
वहीं जब उत्तम कुमार का करैक्टर प्ले करने के लिए राजेश खन्ना को ये रोल सुनाया तो राजेश खन्ना ने तुरंत हाँ कर दी। पर उनके पास डेट्स नहीं थी। शक्ति सामंत बोले, “काका तुम एक काम करो, साढ़े छः तक शूटिंग करते हो न, तुम्हारे सारे बिज़ी शेड्यूल साढ़े छः तक है न, मुझे इसके बाद का टाइम दे दो, मैं शर्मिला के साथ 2 बजे से शूटिंग शुरु कर दूंगा”
इस तरह मात्र छः महीने की जद्दोजहद में शक्ति सामंत ने ‘अमर-प्रेम’ जैसी मास्टर क्लास फिल्म बनाई और फिल्म ऐसी सुपरहिट हुई कि राजेश खन्ना सुपर डुपर स्टार हो गये।
राजेश खन्ना इस रोल की कामयाबी के बाद बोले थे कि “मैंने शक्ति दा को कहा था कि उत्तम कुमार जी ने जो एक्ट किया है, मैं उसका 50% भी कर सका तो मैं ख़ुद को धन्य समझूंगा”
उत्तम कुमार के लिए ऐसे ही हर बड़े स्टार ने जो कमेंट किये हैं, वो गौर फरमाने लायक हैं –
महान फिल्मकार सत्यजीत रे के साथ उत्तम कुमार ने सिर्फ दो फिल्में की थीं, ‘नायक’ और चिड़ियाखाना, लेकिन सत्यजीत रे का उत्तम कुमार कके निधन के बाद कथन था कि “बंगाली फिल्म इंडस्ट्री का एक रौशन चिराग आज बुझ गया, उस जैसा हीरो न आज कोई है, न कभी कोई इंडस्ट्री में हो सकेगा”
Satyajit Ray With Uttam Kumar
उत्तम कुमार ने हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने के लिए एक फिल्म ख़ुद प्रोड्यूस की थी, जिसका नाम था ‘छोटी सी मुलाकात’ (1967), इसमें उनके साथ वैजन्तीमाला भी थीं। शंकर जयकिशन के संगीत में सजी ये फिल्म रिलीज़ तो बड़ी धूम धाम से हुई लेकिन हिन्दी भाषी दर्शकों को ये फिल्म बिल्कुल हज़म नहीं हुई और फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गयी। उत्तम कुमार की एक्टिंग की जमकर तारीफ हुई लेकिन वैजंतीमाला की बहुत आलोचना हुई लेकिन उत्तम कुमार ने कभी उन्हें दोष न दिया। वैजंतीमाला उत्तम कुमार के बारे में कहती थी कि “उत्तम कुमार सबसे प्रोफेशनल और गिफ्टेड एक्टर्स में से एक थे। लिप सिंक करने में तो उन्हें महारत हासिल थी। जितने भी क्रिटिक थे सबने छोटीसी मुलाकात फ्लॉप होने का दोष मुझे दिया था पर उत्तम कुमार ने कभी मेरी आलोचना नहीं की”
हालाँकि सुनने में ये भी आया था कि इस फिल्म के लिए उत्तम कुमार ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था और इस फिल्म के फ्लॉप होने की वजह से ही उन्हें पहली बार दिल का दौरा भी पड़ा था। लेकिन इन अफवाहों पर ध्यान न दें तो उत्तम कुमार इसके तुरंत बाद ही बंगाल सिनेमा में वापस चले गये थे। उन्हें फिर एक बाद हिन्दी सिनेमा में उनकी एक्टिंग के सबसे बड़े फैन शक्ति सामंत ही लेकर आए।
1974 में भारतीय गाँव में जातिवाद, अनाक्षरता आदि से जुड़ी समस्याओं को दर्शाती फिल्म अमानुष में उत्तम कुमार शर्मिला टैगोर के साथ स्क्रीन शेयर करते नज़र आए थे। यह फिल्म कोई बहुत बड़ी ब्लाकबस्टर तो नहीं हुई लेकिन उत्तम कुमार की एक्टिंग की जमकर तारीफ हुई। इतना ही नहीं, इस फिल्म के लिए उत्तम कुमार को स्पेशल फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला. वहीं उनके परम मित्र किशोर कुमार को फिल्म के टाइटल गीत – ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा, बर्बादी की तरफ ऐसा मोड़ा’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया. साथ ही गीतकार इन्दीवर को भी फिल्मफेयर ने बेस्ट लिरिसिस्ट का अवार्ड दिया।
बांग्ला फिल्मों में उनकी जोड़ी ‘सुचित्रा सेन’ के साथ सबसे ज़्यादा बनी और सबसे ज़्यादा पसंद भी की गयी। सुचित्रा सेन उनके लिए कहती थी कि “उत्तम मेरे दोस्त हैं, वो कमाल के हैं पर मुझे अब भी लगता है कि उनको उनके सही पोटेंशियल लायक रोल नहीं मिल सके”
द ग्रेट शो-मैन राज कपूर भी उत्तम कुमार के लिए मुक्त कंठ से कहते थे कि “मॉडर्न युग का सबसे स्मार्ट और सबसे बेहतरीन हीरो उत्तम कुमार है”
Raj Kapoor and Uttam kumar
सुनने में ये भी आता था कि दिलीप कुमार नहीं चाहते थे कि उत्तम कुमार हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमायें, हालाँकि उत्तम कुमार को बांग्ला फिल्मों का दिलीप कुमार ज़रूर कहा जाता था। पर दिलीप कुमार ने उनके लिए कहा था कि “उत्तम हमारे दौर का सबसे बेहतरीन एक्टर था, वो साफ़दिल का अपनी तरह का इकलौता इंसान था”
Dilip Kumar, VaijanthiMala and Uttam Kumar
एक्टर डायरेक्टर सुमित्रा चैटर्जी तो यहाँ तक कहते मिलते थे कि “अगर उत्तम कुमार कोई क्राइम करके आए और फिर मुस्कुराते हुए कह दे कि मैंने कोई क्राइम नहीं किया, तो मैं यकीनी तौर पर मान लूँगा कि वो इनोसेंट है”
ऐसे प्रतिभाशाली एक्टर, जो सिंगर भी थे और म्यूजिक कम्पोज़ करना भी जानते थे, जो कई बार डायरेक्टर से ज़्यादा फिल्म समझते थे और जब प्रोडक्शन में उतरते थे तो अपना आख़िरी सिक्का लगाने से भी नहीं चूकते थे।
फिल्मों के लिए डेडिकेटेड रहने वाले उत्तम कुमार की जितनी तारीफ की जाए कम है।
शक्ति सामंत के साथ ही उन्होंने फिर हिन्दी फिल्म आनंद आश्रम (1977) में काम किया तो इसी साल गुलज़ार की फिल्म किताब में भी उन्होंने लीड रोल किया। अफ़सोस की कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्चा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन आलोचकों की नज़र में दोनों ही फ़िल्में झोली भर भर के तारीफें ले गयीं।
1979 में भीमसेन की फिल्म दूरियां में वह एक बार फिर शर्मिला टैगोर के साथ आए और इस फिल्म ने भी तारीफें बटोरने में हर फिल्म को पीछे छोड़ दिया।
लेकिन 24 जुलाई 1980 में मात्र 53 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गयी। हालाँकि उन्हें 8 घंटे तक हॉस्पिटल ने ऑब्जरवेशन में रखा था लेकिन वो रिकवर न कर सके।
Amitabh bachchan and Uttam Kumar on sets of Desh Premee
इंडस्ट्री ने उस रोज़ एक ऐसा एक्टर खो दिया जिसकी एक्टिंग देख लगता ही नहीं था कि वह एक्टिंग कर रहा है, लगता था कि जैसे वो इस सीन को, इस करैक्टर को वाकई जी रहा है। उनके जाने के बाद भी उनकी कुछ फ़िल्में रिलीज़ हुईं जिनमें अमिताभ के साथ देश प्रेमी (1982) में वह नज़र आए तो धर्मेंद्र के साथ मेरा करम मेरा धरम में भी (1987) उनकी आख़िरी हाज़िरी दर्ज़ हुई।
ऐसे एक्टर को उनकी मृत्यु के 41 साल बाद भी दुनिया याद करती है और उनकी फ़िल्में देख आज भी एक्टिंग कैसे होती है ये सीखती है।
Rajesh Khanna, Shakti Samant, Uttam Kumar
Sujit Kumar, Uttam Kumar, Rajesh Khanna, Shakti Samantha, RD Burman
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