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आज जब फिल्म 'धुरंधर' की कामयाबी की गूंज हर तरफ सुनाई दे रही है तब उस बुलंदी के बीच एक बेहद सुकून देने वाली, मृदु लेकिन मजबूत कहानी भी साथ साथ दोहराई जा रही है। एक ऐसी कहानी, जो पोस्टर, बॉक्स ऑफिस नंबर या सुर्खियों से ज्यादा, आपसी प्यार,भरोसे, सब्र और एक होने की ताकत पर टिकी है। यह कहानी है आदित्य धर और यामी गौतम की।
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आदित्य धर की डेब्यू फिल्म ' उरी द सर्जिकल स्ट्राइक ' में अभिनेत्री यामी गौतम एक रोशनी बनकर आई थीं और फिर आदित्य ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आदित्य हमेशा से ही कम बोलने वाले फिल्ममेकर रहे हैं। वो अपने काम को बोलने देते हैं। लेकिन आज जब उनकी निर्देशित फिल्म 'dhurandhar ' की विश्व तौर पर तूती बोली जा रही है तो जाहिर है मिडिया के हर प्लेटफॉर्म से उन्हें बधाई के साथ साथ ढेर सारे साक्षात्कार से भी दो चार होना पड़ रहा हैं। उनकी फिल्में और निर्देशन को लेकर तो जितनी मुंह उतने प्रश्न पूछे जा रहे है लेकिन हाल के इंटरव्यूज़ में जब उनसे यामी के बारे में पूछा गया, तो उनके शब्दों में एक अलग ही नरमी दिखाई दी। उन्होंने बिना किसी भारी-भरकम बात के, बहुत सादगी से कहा कि यामी उनकी जिंदगी में बहुत लकी साबित हुई हैं। आदित्य ने माना कि शादी के बाद उनके जीवन में एक स्थिरता आई है, एक ठहराव आया है, जिससे वो अपने काम पर और ज्यादा फोकस कर पाए। उन्होंने यह भी कहा कि यामी उनके लिए एक सुकून, एक शांति की तरह है, और एक निर्देशक के लिए जीवन में सुकून और शांति उनके सबसे महत्वपूर्ण सीढियां होती है। (Dhurandhar film success story)
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आदित्य ने स्वीकार किया कि धुरंधर जैसे बड़े, दबाव भरे प्रोजेक्ट के दौरान यामी का साथ उनके लिए बेहद अहम रहा। शूटिंग के लंबे दिन, फैसलों का तनाव, रिलीज़ से पहले की बेचैनी। इन सबके बीच यामी ने कभी उन्हें जज नहीं किया, कभी सलाह थोपने की कोशिश नहीं की। वो बस उनके पास रहीं। आदित्य के शब्दों में, “वो मुझे समझती हैं, बिना कहे।” यही वजह है कि उन्होंने खुले तौर पर कहा कि यामी उनके लिए सिर्फ पत्नी नहीं, बल्कि उनके अच्छे दौर की वजह हैं।
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उधर यामी गौतम की बात करें तो उनके शब्दों में आदित्य के लिए हमेशा सम्मान और शुक्रिया झलकता है। यामी ने कई इंटरव्यूज़ में कहा है कि आदित्य ने उन्हें कभी किसी रोल के लिए मजबूर नहीं किया, कभी करियर को लेकर दबाव नहीं डाला। बल्कि जब यामी ने मां बनने के बाद फिल्मों से थोड़ा ब्रेक लिया, तब भी आदित्य ने उनसे सिर्फ इतना कहा कि जब तुम्हारा मन करे, जब तुम्हें लगे कि तुम तैयार हो, तभी अपने पैशन को फिर से खंगालना।
यामी ने साफ कहा, "बच्चे के जन्म के बाद फिल्मों में लौट पाना (फिल्म हक़) आसान नहीं था। शारीरिक थकान भी थी, भावनात्मक जिम्मेदारियां भी। लेकिन आदित्य ने बिना शोर किए, बिना एहसान जताए, हर जिम्मेदारी बांटी। रात की नींद से लेकर बच्चे की देखभाल तक, आदित्य ने बराबर हिस्सा लिया ताकि आगे चलकर मैं फिर से अपने अभिनय पर ध्यान दे सकूं।" यामी ने यह भी माना कि आदित्य ही थे जिन्होंने उन्हें याद दिलाया कि अभिनय सिर्फ उनका पेशा नहीं, बल्कि उनकी पहचान है। (Aditya Dhar Yami Gautam relationship)
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यामी ने कहा, "आदित्य मेरी हर सीन पर चर्चा करते हैं, हर किरदार को लेकर ईमानदार राय देते हैं, लेकिन कभी निर्देशक बनकर नहीं, बल्कि दर्शक बनकर।" और शायद यही वजह है कि यामी के हालिया काम में एक अलग आत्मविश्वास, एक अलग सच्चाई दिखती है। उन्होंने माना कि अगर आदित्य का भरोसा और प्रोत्साहन नहीं होता, तो मां बनने के बाद कैमरे के सामने लौटने का हौसला शायद इतना मजबूत नहीं होता।
धुरंधर की सफलता ने इस रिश्ते की मजबूती को और साफ कर दिया। यह फिल्म सिर्फ आदित्य धर की बतौर निर्देशक जीत नहीं थी, बल्कि उस मानसिक संतुलन की भी जीत थी, जो उन्हें घर से मिला। फिल्म ने यह साबित किया कि जब एक इंसान को घर में समझ और सहारा मिलता है, तो वो बड़े से बड़ा जोखिम भी उठा सकता है।
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इसी धुरंधर की कहानी में एक और खूबसूरत समानता दिखाई देती है — रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की। रणवीर सिंह का धुरंधर में काम करना सिर्फ एक रोल नहीं था, बल्कि उनके करियर के एक बेहद अहम दौर का हिस्सा था। उनके चाहने वाले तो यह भी मानते है कि रणवीर और दीपिका की बेटी 'दुआ' उनके लिए वाकई में एक दुआ, एक तकदीर बनकर आई है। दुआ के जन्म के बाद दोनों के जीवन में एक आशीर्वाद जैसा प्रकाश, एक उज्ज्वल भविष्य जैसी रौनक आई। दीपिका ने भी इस फिल्म के दौरान, रणवीर के लिए जिस तरह से निजी तौर पर सपोर्ट किया, वह कई इंटरव्यूज़ और सार्वजनिक मौकों पर, खुद रणवीर ने स्वीकार किया है।

जब सुकून बना सफलता की नींव: आदित्य धर और यामी गौतम की कहानी
रणवीर ने कहा है कि पिता बनने के बाद उनकी सोच बदली है, और इस बदलाव में दीपिका और उनकी बेटी दुआ की सबसे बड़ी भूमिका रही। उन्होंने माना कि दुआ उनके जीवन में सौभाग्य बनकर आई हैं। रणवीर ने यह भी कहा कि जिस तरह दीपिका ने मां बनने के बाद खुद को संभाला और फिर धीरे-धीरे अपने काम की तरफ वापसी की, वो उन्हें हर दिन इंस्पायर करता है।
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दीपिका ने भी यह स्वीकार किया कि रणवीर ने उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि करियर और मातृत्व के बीच कोई द्वंद है। उन्होंने कहा कि रणवीर हर दिन उन्हें याद दिलाते हैं कि वो पहले एक इंसान हैं, फिर मां और फिर अभिनेत्री। यही सोच उन्हें आगे बढ़ने की ताकत देती है।
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यहां यामी और दीपिका की कहानियां एक दूसरे से जुड़ जाती हैं। दोनों ही महिलाओं के लिए उनके पति सिर्फ जीवनसाथी नहीं, बल्कि वो सुरक्षा कवच हैं, जिनकी वजह से वो बिना किसी दुविधा, बिना किसी चिंता के आगे बढ़ सकती हैं। और आदित्य धर और रणवीर सिंह दोनों के लिए उनकी पत्नियां सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि सौभाग्य हैं। (Behind the success of Dhurandhar)
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आदित्य धर के लिए यामी का आना उस समय हुआ, जब उनका करियर एक निर्णायक मोड़ पर था। रणवीर सिंह के लिए दुआ का आना उस समय हुआ, जब वो अपने काम को नई गहराई देना चाहते थे। दोनों ही मामलों में यह कहना गलत नहीं होगा कि प्यार और परिवार ने उनके काम को और मजबूत किया।
धुरंधर की सफलता इसलिए भी खास लगती है क्योंकि यह सिर्फ एक फिल्म की जीत नहीं, बल्कि उन रिश्तों की जीत है, जो कैमरे के पीछे खामोशी से खड़े रहते हैं। आदित्य धर का आत्मविश्वास, यामी गौतम की शांत मौजूदगी, रणवीर सिंह की ऊर्जा और दीपिका पादुकोण का संतुलन — ये सब मिलकर यह साबित करते हैं कि आज का सिनेमा सिर्फ स्क्रिप्ट और स्टारडम से नहीं, बल्कि इंसानी रिश्तों से भी बनता है।
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और शायद यही वजह है कि धुरंधर सिर्फ पर्दे पर नहीं, दिलों में भी जगह बना पाई, (Yami Gautam support in Aditya Dhar life)
और जब पर्दा गिरता है, तब असल कहानी शुरू होती है।
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धुरंधर की कामयाबी नए नए रिकॉर्ड्स ब्रेक कर रही, विश्व तौर पर आश्चर्यजनक और अकल्पनीय आंकड़े बना रही है। लेकिन अगर गौर करें तो इस बुलंदी में पहुंचकर भी आदित्य धर कहीं भी बहुत ज़्यादा शो शा करते दिखाई नहीं दे रहे हैं। कोई लंबी सेलिब्रेशन नहीं, कोई शोर नहीं। लेकिन सिनेमा यूनिवर्स में यह बात सब जानते हैं कि फिल्म ' उरी, द सर्जिकल स्ट्राइक ' के बाद इस फिल्म ' धुरंधर ' ने आदित्य को सिर्फ एक हिट डायरेक्टर नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद कहानीकार के रूप में और मजबूत किया है। ऐसे फिल्ममेकर के रूप में, जो सिर्फ ट्रेंड नहीं पकड़ता, बल्कि अपने वक्त की धड़कन सुनता है।
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यामी ने एक बातचीत में कहा था, "आदित्य को सबसे ज़्यादा खुशी तब होती है जब उनके आसपास के लोग आगे बढ़ते हैं। वो अपनी जीत को भी बहुत निजी तरीके से जीते हैं।" शायद इसी वजह से ' धुरंधर' की सफलता के बाद यामी ने कहा कि आदित्य का आत्मविश्वास शुरू से ही इतना ही मजबूत रहा है, अब बस उनके भीतर एक सुकून आया है। वो सुकून जो तब आता है जब इंसान जानता है कि उसने ईमानदारी से काम किया है।
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यामी ने यह भी कहा, "आदित्य को कभी भी बाहरी तारीफ की जरूरत नहीं रही। उनके लिए सबसे बड़ी बात यह होती है कि घर लौटकर पाए कि सब ठीक है या नहीं। शूटिंग से लौटने पर बच्चे की एक मुस्कान, घर की शांति, और बिना किसी सवाल के साथ बैठ जाना — यही आदित्य की असली जीत है।"
यामी ने बहुत सादगी से कहा, "आदित्य मुझे जमीन से जुड़ा हुआ रखते हैं। जब भी मैं किसी रोल को लेकर बहुत ज्यादा सोचने लगती हूं, तो आदित्य बस इतना कहते हैं कि अपने दिल की सुनो, बाकी सब कुछ अपने आप, खुद पीछे आ जाएंगे।" यह बात यामी के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि इंडस्ट्री में जहां हर दिन तुलना और प्रतिस्पर्धा होती है, वहां कोई अपना अगर आपको आपकी काबिलियत की याद दिला दे, तो वो बहुत बड़ी बात होती है।
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यामी यह भी मानती हैं कि आदित्य ने उन्हें मां बनने के बाद खुद को लेकर अपराधबोध महसूस नहीं करने दिया। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि अब तुम्हें जल्दी लौटना चाहिए या अब रुक जाना चाहिए। आदित्य ने बस यह सुनिश्चित किया कि यामी को यह एहसास बना रहे कि उनका समय, उनका शरीर और उनका मन — सब उनका अपना है। और जब यामी कैमरे के सामने लौटीं, तो वह वापसी सिर्फ एक अभिनेत्री की नहीं थी, बल्कि एक आत्मविश्वासी मां की भी थी।
यही संतुलन हमें दीपिका और रणवीर के रिश्ते में भी दिखाई देता है। 'धुरंधर' की शूटिंग के दौरान रणवीर के लिए यह फिल्म इसलिए भी खास थी क्योंकि वह एक नए भावनात्मक दौर से गुजर रहे थे। पिता बनने के बाद रणवीर ने खुद स्वीकार किया कि उनका फोकस बदला है। अब वो हर किरदार को यह सोचकर देखते हैं कि वो अपने बच्चे के लिए कैसी दुनिया छोड़कर जाएंगे।
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दीपिका ने भी कहा कि रणवीर ने उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। मां बनने के बाद के महीनों में, जब भावनाएं बहुत तेज होती हैं, तब रणवीर ने घर को सुरक्षित जगह बना दिया। दीपिका ने माना कि रणवीर का यह साथ ही था जिसने उन्हें धीरे-धीरे फिर से अपने काम की ओर देखने का हौसला दिया।
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यहां एक बहुत खूबसूरत समानता उभरती है। यामी और दीपिका दोनों ने ही अपने-अपने जीवन में यह अनुभव किया कि सही साथी सिर्फ प्यार नहीं देता, बल्कि समय, धैर्य और समझ भी देता है। और आदित्य धर और रणवीर सिंह दोनों के लिए यह कहना गलत नहीं होगा कि उनकी ज़िंदगी में आई यह स्थिरता ही उनके काम को और गहराई देती है। (Bollywood power couple Aditya and Yami)
धुरंधर की सफलता को अगर सिर्फ बॉक्स ऑफिस की भाषा में देखा जाए, तो वह एक बड़ी हिट है। लेकिन अगर उसे इंसानी नजर से देखा जाए, तो वह उन रिश्तों की जीत है जो बिना दिखावे के एक-दूसरे को मजबूत बनाते हैं।
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आदित्य धर का शांत स्वभाव, यामी गौतम की सहज गरिमा, रणवीर सिंह की जुनूनी ऊर्जा और दीपिका पादुकोण की ठहरी हुई समझ — यह सब मिलकर यह एहसास दिलाते हैं कि सिनेमा सिर्फ पर्दे पर नहीं बनता, वह घरों में भी बनता है।
शायद इसलिए आज आदित्य यह कहने में हिचकते नहीं कि यामी उनके लिए लकी रही हैं। और यामी भी यह मानती हैं कि आदित्य के साथ उन्हें खुद पर भरोसा करना आया। जैसे दीपिका मानती हैं कि दुआ ने उनकी ज़िंदगी को नया अर्थ दिया, और रणवीर कहते हैं कि पिता बनकर उन्होंने खुद को बेहतर इंसान बनते देखा है।
इन सभी कहानियों के बीच एक बात बहुत साफ है। सफलता तब और खूबसूरत हो जाती है जब उसे अकेले नहीं, किसी अपने के साथ महसूस किया जाए। और शायद यही वजह है कि धुरंधर सिर्फ एक फिल्म नहीं लगती, बल्कि उस दौर की पहचान बन जाती है जहां रिश्ते, काम और इंसानियत एक-दूसरे के खिलाफ नहीं, एक-दूसरे के साथ चलते हैं। (Emotional support behind cinematic success)
और जब कैमरे बंद हो जाते हैं, तब जो बचता है, वही सबसे असली होता है —
एक घर,
एक साथ,
और एक ऐसा भरोसा
जो हर जीत को और गहरा बना देता है।
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