इस कोशिशों और मुसीबतों के दौर में, जहाँ इंसानी रिश्तों में अमूमन खटास ही देखने को मिल रही है, जहाँ औलादें अपने माँ-बाप की इज़्ज़त करना भूल रही हैं वहीँ प्रेम सागर को अपने पिता के लिए इतना समर्पित देखना बहुत दिलचस्प और ख़ुशनुमा एहसास देता है। प्रेम अपने सुपर
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Siddharth Arora 'Sahar'
साल 2020 covid-19 के चलते यूँ तो दुनिया भर के व्यापार के लिए बुरा रहा है लेकिन फिल्म इंडस्ट्री पर इसकी कुछ ख़ास ही गाज गिरी है। एक से बढ़कर एक फिल्में थिएटर बंद होने की वजह से रिलीज़ नहीं हो पाईं लेकिन, फ़िल्मकेर्स ने भी हार न मानते हुए OTT प्लेटफॉर्म पर अपनी
वंडर वुमन देखने के बाद आप ख़ुद से पूछते हो कि क्या हो अगर जो आप चाहो, जो भी दिल में दबी ख्वाहिश हो वो बिना किसी मेहनत के पूरी हो जाए। ऐसा जानकार भी बहुत अच्छा लगने लगता है न? लेकिन क्या आपके मन में भी एक मिनट को ये ख़याल आया कि सबकी ख़्वाहिश पूरी होना कितनी
सोचिये एक दिन में कितनी बार आपको किसी के सामने ये साबित करना पड़ता है कि आप सांस ले रहे हो? मुश्किल सवाल है न? ऐसे ही मुश्किल से सवाल का जवाब ला रही है पंकज त्रिपाठी अभिनीत, सतीश कौशिक द्वारा निर्देशित और सलमान खान प्रोडक्शन द्वारा निर्मित फिल्म ‘कागज़’ ज
सोचिए आपको कैसा लगे अगर आपके ज़िंदा होने का आपसे प्रमाण माँगा जाए। आपको एक कागज़ दिखाया जाए जिसमें आप मृत घोषित हों और सारा गाँव आपके साथ ऐसा बर्ताव करे जैसे आप कोई गैर हो। कुछ ऐसी ही कहानी है पंकज त्रिपाठी अभिनीत फिल्म कागज़ की जिसे सतीश कौशिक ने निर्देशित
जितनी तेज़ी से कोरोना केसेज़ बढ़ रहे थे अब उतनी ही होड़ कोरोना वैक्सीन लाने वाली कम्पनीज़ के बीच मची हुई है. जहाँ विश्व की सबसे बड़ी अमेरिका बेस्ड दवा कम्पनी pfizer ने अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडन को अपनी पहली वैक्सीन लगाई, वहीं लोगों ने इसमें भी भारतीय क्रिकेट
सयोनी इस हफ्ते सिनेमा हॉल में रिलीज़ हुई है. हमारा नया हीरो राजदीप रंधावा (तन्मय सिंह) एक हैंडसम सा शार्प शूटर होने के अलावा गिटार भी बजाता है और गाने भी गाता है. वो गाना गाते हुए दुनिया भर की लोकेशंस पर अपनी नायिका माही (मुस्कान) के साथ यहाँ-वहाँ घूम भी ल
सिनेमा लवर्स की जानकारी में आना ज़रूरी है कि आज राज कपूर की बहुचर्चित फिल्म मेरा नाम जोकर को 50 साल पूरे हो चुके हैं. 18 दिसंबर 1970 में ये फिल्म पहली बार पर्दे पर आई थी. इस फिल्म में राज कपूर ने तीन अलग-अलग पीढ़ियों में होती मुहब्बत को बहुत अच्छे अंदाज़ म
गुलज़ार की दुलारी बोस्की के लिए: वो 13 दिसंबर 1973 का दिन था और दुनिया, ख़ासकर मुंबई की क्वीन ऑफ सबर्ब्स (उपनगर) कहलाई जाने वाली जगह बांद्रा में क्रिसमस का इंतज़ार बड़े ज़ोर शोर से हो रहा था. माहौल में आने वाले जश्न की रवानगी महसूस की जा सकती थी. पहले से ही हि
जब भी मौसम बदलता है तब हमारा मिज़ाज भी बिना हमें ख़बर किए करवट बदल लेता है। सर्दियों में गर्मियों वाले गानों की प्लेलिस्ट ज़रा सी तब्दील होकर हमें फिर बीते पुराने, बॉलीवुड म्यूजिक के स्वर्ण युग कहे जाने वाले दौर में ले जाती है। आज सुबह जैसे-जैसे तापमान गिरता
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