ये बहुत हैरान करने वाली मगर सच्ची बात है कि कुछ बेहतरीन डायरेक्टर्स ने अपने जीवन में एक से बढ़कर एक फिल्म दी मगर उनकी पहचान सिर्फ एक फिल्म से होकर रह गयी. मेहबूब खान ने और भी बहुत सी अच्छी-अच्छी फ़िल्में बनाई लेकिन उन्हें लोग याद हमेशा 'मदर इंडिया' की वजह से ही करते हैं. के आसिफ ने भी कई बेहतरीन फ़िल्में बनाई लेकिन उनका नाम हेमशा मुग़ल-ए-आज़म के साथ लिया जाता रहा है. वी शांताराम ने एक बढ़कर एक कलरफुल फिल्मों का निर्माण किया लेकिन उनको लोग आज भी जानते हैं तो 'दो आँखें बारह हाथ' के नाम से ही. ऐसे ही, गुरु दत्त हमेशा 'प्यासा' के लिए याद रखे जाते हैं. यश चोपड़ा ने तो हर तरह की ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत फिल्में बनाई लेकिन याद वो आज भी 'सिलसिला' के लिए होते हैं. डॉ. बीआर चोपड़ा ने एक फिल्मकार होने के नाते नायाब क्लासिक फिल्में बनाई हैं लेकिन कोई फिल्म अगर उन्हें दुनिया की सारी फिल्मों से अलग करती है तो वो है 'साधना', जिसे उम्दा, सिग्नीफिकेंट फिल्मों की शुरुआत कही जा सकती है. वहीं टीवी की दुनिया में बीआर चोपड़ा हमेशा महाभारत जैसे कालजयी सीरियल के लिए जाने जायेंगे. वहीं कमाल अमरोही को हमेशा दुनिया 'पाकीज़ा' के फिल्ममेकर के तौर पर याद रखेगी.
रमेश सिप्पी ने अंदाज़, सीता और गीता, सागर और शान जैसी जानदार-शानदार फिल्में बनाई थीं, बुनियाद जैसा टीवी सीरियल बनाया था मगर उनकी पहचान हमेशा शोले वाले रमेश सिप्पी से ही होती है.
हर कोई जो शोले के बारे में कुछ भी जानता है उसे शोले से जुड़ी बहुत सारी छोटी-बड़ी कहानियां भी याद आ जाती है, लेकिन मैं यहाँ वो तारीख याद करता हूँ, 15 अगस्त 1975, जिस दिन शोले का मिनर्वा थिएटर बॉम्बे में प्रीमियर था. तब पूरे थिएटर में, या मैं कहूं पूरे देश में ही अभूतपूर्व उत्सुकता थी कि फिल्म कैसी होगी, फिल्म हालांकि औसत से लम्बी थी और उसमें उस दौर के लीडिंग सितारे मौजूद थे और इनमें 'अमज़द खान' नाम का एक नया लड़का भी शामिल था. 3 बजे तक एक्साइटमेन्ट एक अलग लेवल पर पहुँच चुका था, लेकिन जो लोग अभी भी थिएटर के अंदर थे जिनमें तकरीबन पूरी इंडस्ट्री शामिल थी; ने फिल्म को इंटरवल होने से पहले ही नकार दिया. फिर आख़िरकार छः बजे फिल्म देख चुकी भीड़ बाहर आई और स्टोरी के बारे में बताना शुरु किया कि फिल्म बहुत बुरी तरह फ्लॉप होने वाली है. बहुत से आलोचकों और ट्रेड एक्सपर्ट्स ने भविष्यवाणी की कि फिल्म 3 दिन भी परदे पर नहीं टिक पायेगी. इस ख़बर से पूरी फिल्म इंडस्ट्री पैनिक हो गयी क्योंकि शोले को बनने में बहुत पैसा लगा था. उसमें उस दौर के सारे बड़े सितारे थे जिनमें धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और एक्सपर्ट लेखकों का जोड़ा सलीम-जावेद, आनंद बक्शी, संगीत के धुरंधर आर-डी बर्मन, द्वारका दिवेचा और नामी-गिरामी टेक्निशियंस भी शामिल थे.
इस खबर से शोले की पूरी टीम शॉक हो गयी. रमेश सिप्पी ने तुरंत एक मीटिंग बुलाई, मीटिंग प्लेस अमिताभ बच्चन का घर बना. यहाँ सलीम जावेद, रमेश सिप्पी और अमिताभ मौजूद थे. सबने मिलकर सिर धुनना शुरु कर दिया कि आख़िर ऐसा क्या हुआ जो लोगों को हज़्म न हो सका. फिर ये फैसला हुआ कि फिल्म का एन्ड बदल देते हैं जहाँ धर्मेंद्र की गोद में अमिताभ की डेथ का सीन है, उसे हटा देते हैं और ये तय हुआ कि अमिताभ को ज़िंदा रखा जायेगा और अमिताभ-जया के बीच जो सीन्स हैं उन्हें काट देते हैं क्योंकि शायद पब्लिक एक विधवा को किसी के प्यार में पड़ने वाला सीक्वेंस पचा नहीं पाई है. फिर ये फाइनल हुआ कि फिल्म का कुछ हिस्सा उसी रामपुर लोकेशन पर रीशूट किया जाए और ये शूट दो दिन बाद बंगलौर के बाहरी हिस्से में स्टार्ट होने वाली थी. दो दिन बाद सोमवार था. शूट के लिए साजोसामान चेन्नई से आना था. रमेश सिप्पी ने सोचा कि चलो एक काम करते हैं, सोमवार तक देखते हैं क्या होता है और फिर रीशूट करने चलते हैं. सब इस बात के लिए राज़ी हो गए. और सोमवार जब आया तो इतिहास साथ लेकर आया, फिल्म हिट डिक्लेअर हो चुकी थी और आने वाले पांच साल तक पर्दे से न उतरने की तैयारी भी कर चुकी थी. इतिहास के पन्नों में शोले का नाम लिखा जा चुका था.
लेकिन रमेश 'द शोले वाला' सिप्पी अब एक नई हिट की तैयारी में थे. शोले ने उन्हें एक और फिल्म की प्रेरणा दे डाली थी.
शोले के बाद उन्होंने 'शान' शुरु की और सिवाए अमिताभ बच्चन के किसी भी दूसरे स्टार को रिपीट नहीं किया. अमिताभ के अलावा इस फिल्म में शशि कपूर, परवीन बाबी और बिंदिया गोस्वामी के साथ रमेश सिप्पी इस उम्मीद में थे कि वो एक और गब्बर सिंह जैसा किरदार दे सकते हैं. रमेश सिप्पी ने कुलभूषण खरबंदा को विलन के रूप में इंट्रोड्यूस किया और नाम दिया 'शाकाल' और एक और करैक्टर इंट्रोड्यूस किया 'मज़हर खान', लेखक डुओ वही सलीम जावेद ही रहे लेकिन फिल्म को बहुत सी रुकावटें झेलनी पड़ी और तब तो हद हो गयी जब परवीन बाबी महेश भट्ट और अपने गुरु यूजी कृष्णामूर्ति के चार्म में उलझकर न सिर्फ शान को मझधार में छोड़ बल्कि देश ही छोड़कर चली गयीं. फिर वो वापस लौटी या ज़बरदस्ती बुलाई गयी कि शान की शूटिंग पूरी कर सकें, पर ये परवीन बाबी उस परवीन की परछाई भी नहीं थी जो इंडिया छोड़कर चली गयी थी.
इस फिल्म का भी शोले जैसा ही प्रीमियर हुआ लेकिन इस बार रमेश सिप्पी का जादू पहले ही शो में फेल साबित हुआ. शोले फ्लॉप होने के बाद उठी थी लेकिन शान हर तरह से फुसस्स साबित हुई. और जो दो लोग सबसे ज़्यादा इस फिल्म के फ्लॉप होने से आहत हुए वो रमेश सिप्पी और कुलभूषण खरबंदा थे जो ये माने बैठे थे कि अमजद खान जैसा करैक्टर दूसरा आ गया है, यहाँ तक की फिल्म रिलीज़ से पहले ही अपनी फीस भी बढ़ा चुके थे और एक स्टार की तरह ही बिहेव कर रहे थे. लेकिन ऐसा कुछ भी न हो सका..... आज शोले को 45 साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं और रमेश सिप्पी ने बहुत सी फिल्में इस दौरान बनाई है जिनमें सलमान खान के साथ फिल्म भी शामिल है जब वो अपनी जगह बनाने की जंतोजहद में उलझा था. लेकिन सिप्पी हमेशा शोले वाले रमेश सिप्पी के नाम से ही जाने जाते हैं. शोले वो फिल्म थी जिसे कॉर्पोरेट कंपनी से प्रोजेक्ट सुनते रिजेक्ट कर दिया था. और जिस शख्स ने शोले बनाई थी उसकी लास्ट फिल्म थी 'शिमला मिर्च'. आज रमेश सिप्पी अपनी पत्नी किरण जुनेजा के साथ रिटायरमेंट लाइफ जी रहे हैं और गाहे-बगाहे कभी किसी अवार्ड शो में तो कभी कहीं ज्यूरी में जुड़े नज़र आ जाते हैं.
ऐसे ही कभी आग लगती है और ऐसे ही वही आग बुझती है, क्या ये जीवन की रीत है या सिर्फ इस फ़िल्मी दुनिया की अजीब सच्चाई है?
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